नैमिषारण्य: यहां किए गए तप, दान, श्राद्ध का विशिष्ट महत्व, 88000 ऋषियों की तपोभूमि

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नैमिषारण्य: यहां किए गए तप, दान, श्राद्ध का विशिष्ट महत्व, 88000 ऋषियों की तपोभूमि

naimishaarany: yahaan kie gae tap, daan, shraaddh ka vishisht mahatv, 88000 rshiyon kee tapobhoomiनैमिषारण्य: ऋषि- मुनियों और संतों की निवास भूमि के रूप में प्रसिद्ध यह पावनक्षेत्र उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से उत्तर – पश्चिम की दिशा में करीब पचपन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि गोमती नदी के पश्चिमी किनारे पर फैले इसी इलाके में महाभारतकाल के पहले से अनेक धर्मसभाओं का आयोजन किया गया तथा कई पुराणों की रचना की गई थी। आज भी यह माना जाता है कि यहां ब्राह्मण – ऋषि श्रेष्ठ कार्यों में लगे हैं। मार्कण्डेय पुराण में अनेक बार इसका उल्लेख 88000 ऋषियों की तपोभूमि के रूप में हुआ है। नैमिषारण्य, इसके नाम में ही अरण्य है। अर्थात् नैमिषारण्य एक वन था। इस अरण्य में वेद व्यासजी ने वेदों, पुराणों तथा शास्त्रों की रचना की थी तथा 88000 ऋषियों को इसका गूढ़ ज्ञान दिया था। ऐसा माना जाता है कि जब ब्रम्हाजी धरती पर मानव जीवन की सृष्टि करना चाहते थे, तब उन्होंने यह उत्तरदायित्व इस धरती की प्रथम युगल जोड़ी – मनु व सतरूपा को दिया। तदनंतर मनु व सतरूपा ने नैमिषारण्य में ही 23000 वर्षों तक साधना की। अमावस्या के दिन यहाँ पवित्र स्नान करना अत्यंत पावन माना जाता है। हिन्दू पञ्चांग के फाल्गुन मास में अमावस से पूर्णिमा तक नैमिषारण्य की 84 कोस की परिक्रमा आयोजित की जाती है।

चक्रतीर्थ की कथा

एक समय कुछ असुर ऋषियों की साधना भंग करने के उद्येश्य से उन्हें कष्ट दे रहे थे। उन सब ऋषियों ने ब्रम्हाजी के समक्ष जाकर अपनी समस्या व्यक्त की। तब ब्रम्हाजी ने सूर्य की किरणों से एक चक्र की रचना की तथा उन ऋषियों से इस चक्र का पीछा करने को कहा। उन्होंने कहा कि जहां भी यह चक्र रुक जाये वहां वे शान्ति से रह सकते हैं। जी हाँ! आपने सही पहचाना। ब्रम्हा का चक्र नैमिषारण्य में आकर रुक गया। नेमी का एक और अर्थ है किनारा। यहाँ इसका अर्थ है कुंड का किनारा। ऐसी मान्यता है कि कुंड का जल पाताल लोक से आता है। इस चक्र को मनोमय चक्र भी कहते हैं। चक्रतीर्थ को ब्रम्हांड का केंद्र बिंदु माना जाता है। नैमिषारण्य इस मायने में अद्वितीय है कि भुवनेश्वर के अलावा यह एकमात्र स्थान है, दावा करते हैं कि सभी तीर्थ स्थानों में सबसे पहला और सबसे पवित्र होने के नाते अगर कोई यहां 12 साल तक तपस्या करता है तो सीधे ब्रह्मलोक जाते हैं। यात्रा पर जाने वाले नैमिषारण्य सभी महत्वपूर्ण स्थानों पर जाने के समान है।

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महाभारतकाल की घटना के अनुसार पितामह ब्रह्मा ने पवित्रभूमि की खोज में मंत्र – संधान कर चक्र चलाया था, जो धरती पर अनेक स्थानों से घूमता हुआ यहां आकर गिरा था। फिर अनेक देवताओं और संतों ने इस स्थल की यात्रा की थी।

‘ वराहपुराण ‘ में वर्णित है कि भगवान द्वारा निमिषमात्र में दानवों का संहार करने के कारण यह नैमिषारण्य कहलाया।

( ‘ वराहपुराण ‘ 11/108 )

‘ वायु ‘, ‘ कूर्म ‘ आदि पुराणों के अनुसार भगवान के मनोमय चक्र की नेमि ( हाल ) यहीं विशीर्ण हुई थी, अतएव यह नैमिषारण्य कहलाया।

यहां लोमहर्षण के पुत्र सौति उग्रश्रवा ने वर्षों तक ऋषि – मुनियों को पौराणिक कथाएं सुनाई थीं। एक बार श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम भी यहां पधारे थे, किंतु व्यस्तता की वजह से सौतिमुनि उठकर उनका स्वागत नहीं कर सके। कुपित होकर बलराम ने सौति की हत्या कर दी और कारण बताया कि सौति निम्न जाति का होकर भी ब्राह्मणों को उपदेश देता है तथा शास्त्रार्थ करता है। किंत ब्राह्मणों की सभा ने प्रवचन में निपुण तथा विद्वान् होने के कारण सौति को ब्राह्मणस्वरूप होने का निर्णय दिया। फलस्वरूप बलराम को प्रायश्चित्त करना पड़ा और वह वहां पर पवित्र सरोवर में स्नान कर पापमुक्त हुए। यह सरोवर हत्याहरण – तीर्थ के नाम से मशहूर है।

‘ कूर्मपुराण ‘ में उल्लिखित है कि यह स्थान शंकर को प्रिय है तथा महापातकों को भी दूर करने की सामर्थ्य रखता है। यहां किए गए तप, दान, श्राद्ध का विशिष्ट महत्त्व है।

इदं त्रैलोक्य विख्यातं तीर्थं नैमिषयुत्तमम्।

महादेवप्रियकर महापातकनाशम् ॥

( ‘ कूर्मपुराण ‘ उत्तर . 42 / 1,14 )

आधुनिक युग में निमखर या निमसर के नाम से प्रसिद्ध इस क्षेत्र में अनेक मंदिर और तालाब हैं।

नैमिषारण्य की महिमा को उल्लेखित करता यह श्लोक

प्रथमं नैमिषं पुण्यं, चक्रतीर्थं च पुष्करम्।
अन्येषां चैव तीर्थानां संख्या नास्ति महीतले।।

दर्शनीय स्थल

  • चक्रतीर्थ : यहां का मुख्य तीर्थ पवित्र सरोवर है, जिसके मध्य में निरंतर जल निकलता रहता है और बाहरी भाग में तीर्थयात्रियों के स्नान हेतु चारों ओर सीढ़ियां निर्मित हैं। यहां के स्नान से मानव की आत्मा शुद्ध हो जाती है।
  • हनुमान मंदिर : यहां एक पहाड़ी के ऊपर हनुमानजी का भव्य मंदिर है, जिसमें भगवान हनुमान की दक्षिणमुखी अत्यंत भव्य स्वयंभू मूर्ति स्थापित है। इनके कंधे पर राम – लक्ष्मण भी बैठे दिखाई देते हैं।
  • मां ललिता देवी मंदिर: चक्र जिस स्थान पर गिरा था तो वह निरंतर घूम रहा था, अत . मां ललिता देवी ने उसे स्थिर कर दिया और उस स्थान पर पवित्र जलकुंड निर्मित हो गया। मां ललिता का एक छोटा प्राचीन मंदिर कुंड से दूर ही स्थित है, जहां मां ललिता की मूर्ति श्रद्धा से पूजी जाती है।
  • दधीचि कुंड : इस नगर में वित्रा नाम का बाह्मण असुर उत्पात मचाता रहता था, परंतु उसे साधारण अस्त्रों से नहीं मारा जा सकता था। अत : देवतागणों ने श्री विष्णुजी से सहायता मांगी तो उन्होंने कहा कि यह असुर हड्डियों के अस्त्र द्वारा ही मारा जा सकता है। अपनी हड्डियां दान करने हेतु दधीचि जी तुरंत तैयार हो गए। उससे पहले उनकी प्रार्थना पर संसार के समस्त तीर्थों का जल लाकर देवताओं ने उन्हें अर्पित किया, जिसमें उन्होंने स्नान किया और उसके पश्चात् गाय द्वारा अपना शरीर चटवा कर हड्डियां बज्र अस्त्र बनाने में दान कर दी, तब उसी से उस असुर का संहार किया गया। जिस कुंड में दधीचि जी ने स्नान किया, उसे दधीचि कुंड कहा जाता है और इसमें स्नान करने से समस्त तीर्थों का फल प्राप्त होता है।
  • व्यास – शुकदेव गद्दी : यहां एक मंदिर के अंदर शुकदेवजी व बाहर व्यासजी की गद्दी है। व्यास जी ने यहीं रह कर अनेक पवित्र ग्रथों का निर्माण किया था। इसके अतिरिक्त नीमसार में सुंदर वन के मध्य में अनेक आश्रम तथा मंदिर स्थित हैं और आज भी बाहरी सभ्यता से दूर, एक अति पवित्र रमणीय व दर्शनीय स्थान है।

यात्रा मार्ग

सीतापुर स्टेशन पर उतर कर प्राइवेट वाहन द्वारा इस तीर्थस्थल का भ्रमण कर सकते हैं। लखनऊ से यह स्थान लगभग 70 किलोमीटर है तथा अन्य दो स्थानों से और कम है।

 

 

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