पक्षीतीर्थ : ब्रह्मा के दो पुत्र प्रतिदिन दोपहर को यहां आते, पुजारी भोजन लेकर प्रतीक्षा करता है

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पक्षीतीर्थ : तमिलनाडु – प्रदेश के दक्षिण भाग में स्थित है सुप्रसिद्ध वेदगिरि पर्वत, जो अपने दक्षिणामूर्ति शिवलिंग के लिए महत्त्वपूर्ण है। शिवभक्त यहां महादेव शिव की पूजा – अर्चना करने के बाद इस पर्वत की परिक्रमा करते हैं। पर्वत की एक गुफा में देवी पार्वती की मूर्ति विराजमान है, जिसे अभिरामनायकी कहते हैं। यहां पार्वती का यही नाम है। इस क्षेत्र को रुद्रकोटिक्षेत्र कहा जाता है। वेदगिरि पर्वत के नीचे बाजार है और नजदीक में ही शंखतीर्थ नामक सरोवर है। ऐसी मान्यता है कि इस सरोवर में बारह वर्षों के बाद जब गुरु कन्याराशि में प्रवेश करता है, तब यहां एक शंख उत्पन्न होता है। उस तिथि पर यहां एक विशाल धार्मिक मेले का आयोजन होता है।

धार्मिक महत्त्व 

पहाड़ी के ऊपर मंदिर के पास एक शिला पक्षितीर्थ के नाम से मशहूर है। इसे गृधतीर्थ भी कहते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि सत्ययुग में ब्रह्मा के आठ पुत्रों को शिवजी ने शाप दे दिया और वे पक्षी बन गए। बाद में प्रायश्चित्त करने पर महादेव ने वरदान दिया कि प्रत्येक युग के अंत के साथ पक्षी बने दो पुत्रों को मोक्ष प्राप्त होगा। फलस्वरूप सत्ययुग की समाप्ति पर दो पुत्रों को मोक्ष मिला, फिर त्रेता में दो और द्वापर युग के अंत में दो मुक्त हो गए। अब कलियुग में शेष दो पक्षी हैं, जो प्रतिदिन दोपहर को यहां आते हैं ( दिन के दस बजे से दो बजे के बीच )। एक पुजारी वहां बर्तन में उनके लिए भोजन लेकर प्रतीक्षा करता रहता है। दो पक्षी कभी एक साथ या बारी – बारी से वहां आते हैं, अपना चारा खाते हैं, फिर पानी पीकर ऊपर आसमान में उड़ जाते हैं। यह परंपरागत कौतुक है, जिसे देखने के लिए वहां पर लोगों की भीड़ एकत्र हो जाती है।

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इन कांक ( एक प्रकार का चील से बड़ा पक्षी जो गंदा – सा रहता है ) पक्षी को मलगीधा या चमरगिद्दा भी कहते हैं। पक्षियों के बारे में पुजारी बतलाते हैं कि ये ब्रह्मा के मानसपुत्र चित्रकूट में तपस्या कर रहे हैं। ये प्रयागराज के संगम में स्नान करते हैं, फिर बदरीनाथ के दर्शन करते हैं, फिर वहां से उड़कर यहां भोजन ग्रहण करने आते हैं। निकट के पक्षितीर्थ बाजार से वेदगिरि पहाड़ी पर जाने के लिए लगभग पांच सौ सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। पर्वतशिखर पर भगवान शंकर का मंदिर है। मंदिर मार्ग संकीर्ण है। सीढ़ियों से ऊपर जाकर परिक्रमा करते हुए मंदिर में जाना पड़ता है। मंदिर में शंकर भगवान का लिंगविग्रह है। इसे यहां दक्षिणामूर्ति आचार्य विग्रहलिंग मानते हैं। इसे स्वयंभू – लिंग भी कहते हैं। यह लिंग भी कदलीस्तंभ की भांति है।

यात्रा मार्ग और ठहरने के स्थान

पक्षितीर्थ पहुंचने के लिए रेल तथा सड़क मार्ग की सुविधाएं उपलब्ध हैं। चेंगलपेट जिले में स्थित इस तीर्थ की दूरी चेन्नई से केवल 54 किलोमीटर है।

 

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