तिरुमलै तिरुपति बालाजी: कलियुग में भगवान वेंकटेश्वर के आशीर्वाद से ही मुक्ति संभव

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tirumalai tirupati baalaajee: kaliyug mein bhagavaan venkateshvar ka aasheervaad se hee mukti sambhavपुराण के अनुसार कलियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात ही मुक्ति संभव है।तिरुपति भारतवर्ष के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक है। यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। तिरुपति तमिल भाषा का शब्द है। तिरु का अर्थ ‘ श्री ‘ एवं पति का अर्थ ‘ प्रभु ‘ है। अत : तिरुपति का तात्पर्य श्रीपति यानी श्रीविष्णु हुआ। इसी प्रकार तिरुमले का अर्थ श्रीपर्वत है। तिरुमलै वह पर्वत है, जिस पर लक्ष्मी के साथ स्वयं विष्णु विराजमान हैं। तिरुपति इसी पर्वत के नीचे बसा हुआ नगर है। तिरुमलै पर्वत का नाम वेंकटाचल है। स्कंदपुराण ‘ में वेंकटाचल माहात्म्य खंड में इसकी महिमा वर्णित है। यहां भगवान शेष पर्वतरूप में स्थित हैं, इसलिए इसे शेषाचल भी कहा जाता है। प्राचीन काल में प्रहाद तथा अंबरीष ने भी इस पर्वत के दर्शन किए थे।

दक्षिण भारत में पवित्रतम् मंदिर 

तिरुपति में स्थित वेंकटेश्वर का यह मंदिर दक्षिण भारत में पवित्रतम् माना जाता है। कहा जाता है कि यह मेरु पर्वत के सप्तशिखरों पर बना हुआ है। हिंदुओं की धारणा है कि ये शिखर भगवान आदिशेष शेषनाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। वेंकटेश्वर की मूर्ति कब स्थापित की गई थी, यह बताना कठिन है। परंपरा से जनश्रुति है कि मूर्ति जमीन से प्रकट हुई थी। तब से संत, भक्त और धर्म – प्रेमी यहां की यात्रा करते हैं। मंदिर में की गई प्रतिज्ञा का पालन अवश्य किया जाता है। यात्री मूर्ति के सम्मुख जो भेंट चढ़ाने की प्रतिज्ञा करते हैं , वह जरूर अर्पित करते हैं। यदि वे स्वयं जीवित नहीं रहते , तो उनके उत्तराधिकारी उसको पूरा करना अपना कर्तव्य समझते हैं। मूर्ति सात फुट  के एक सीधे पत्थर से निर्मित है। मूर्ति के चार हाथ हैं, जो महाविष्णु का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस भयोत्पादक मूर्ति को देखकर साहसी – से – साहसी पुरुष भी डर जाता है। दर्शक पर इसकी अमिट छाप पड़ती है। भगवान वेंकटेश्वर को ही उत्तर भारतीय बालाजी कहते हैं।

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दर्शन

भगवान के मुख्य दर्शन तीन बार होते हैं। पहला दर्शन विश्वरूप दर्शन कहलाता है। यह प्रभातकाल में होता है। दूसरा दर्शन मध्याह्न में तथा तीसरा दर्शन रात में होता है। इन सामूहिक दर्शनों के अतिरिक्त अन्य दर्शन भी हो सकते हैं, जिनके लिए विभिन्न शुल्क निश्चित है। इन तीन मुख्य दर्शनों में कोई शुल्क नहीं लगता , किंतु इनमें भीड़ अधिक होती है। वैसे पंक्ति बनाकर मंदिर के अधिकारी दर्शन कराने की व्यवस्था करते हैं।

प्रथम द्वार : श्री वेंकटेश्वर का मंदिर तीन परकोटों से घिरा है। इन परकोटों पर गोपुर बने हैं, जिन पर स्वर्णकलश स्थापित हैं। स्वर्णद्वार के सामने ‘ तिरुमहामंडपम् ‘ नामक मंडप है। एक सहस्रस्तंभ मंडप भी है। मंदिर के सिंहद्वार को ‘ पडिकावलि ‘ कहते हैं। इस द्वार के भीतर वेंकटेश्वर स्वामी ( बालाजी ) के भक्त नरेशों एवं रानियों की मूर्तियां बनी हैं।

द्वितीय द्वार : प्रथम द्वार तथा द्वितीय द्वार के मध्य की प्रदक्षिणा को ‘ संपंगि प्रदक्षिणा ‘ कहते हैं। इसमें ‘ विरज ‘ नामक एक कुआं है। कहा जाता है कि श्रीबालाजी के चरणों के नीचे विरजा नदी है, उसी की धारा इस कूप में आती है। इसी प्रदक्षिणा में ‘ पुष्पकूप ‘ है। बालाजी को जो तुलसी, पुष्प चढ़ता है, वह किसी को दिया नहीं जाता है। वह इसी कूप में डाला जाता है। केवल वसंत पंचमी पर तिरुचानूर में पद्मावतीजी को भगवान के चढ़े पुष्प अर्पित किए जाते हैं।

तृतीय द्वार : द्वितीय द्वार को पार करने पर जो प्रदक्षिणा है, उसे विमान प्रदक्षिणा कहते हैं। उसमें योगनृसिंह, श्रीवरदराज स्वामी ( भगवान विष्णु ) , श्रीरामानुजाचार्य, सेनापति निलय, गरुड़ तथा रसोईघर में बकुलमालिका के मंदिर हैं।

चतुर्थ द्वार : तीसरे द्वार के भीतर भगवान के निज मंदिर ( गर्भ – गृह ) के चारों ओर एक प्रदक्षिणा है। उसे बैकुंठ प्रदक्षिणा कहते हैं। यह केवल पौष शुक्ला एकादशी को खुलती है। अन्य समय यह मार्ग बंद रखा जाता है। भगवान मंदिर के सामने स्वर्णमंडित स्तंभ है। उसके आगे तिरुमहामंडपम नामक सभामंडप है। द्वार पर जय – विजय की मूर्तियां हैं। इसी मंडप में एक ओर हुंडी नामक बंद थैला है, जिसमें यात्री बालाजी को अर्पित करने के लिए लाए गए द्रव्य एवं आभूषणादि गुप्तदान के रूप में डालते हैं।

पांचवां द्वार : मंदिर के भीतर चार द्वार पार करने पर 5 वें के भीतर श्रीबालाजी ( वेंकटेश्वर स्वामी ) की पूर्वाभिमुख मूर्ति है। भगवान की श्रीमूर्ति श्यामवर्ण है। वे शंख, चक्र, गदा, पद्म लेकर खड़े हैं। यह मूर्ति लगभग सात फुट ऊंची है। भगवान के दोनों ओर श्रीदेवी तथा भूदेवी की मूर्तियां हैं। भगवान को कपूर का तिलक लगता है। भगवान के तिलक से उतरा यह कपूर यहां प्रसादरूप में विकता है। यात्री उसे ( मंदिर से ) अंजन के काम में लेने के लिए ले जाते हैं।

श्रीबालाजी की मूर्ति में एक स्थान पर चोट का चिह्न है। उस स्थान पर दवा लगाई जाती है। कहते हैं, एक भक्त प्रतिदिन नीचे से भगवान के लिए दूध ले आता था। वृद्ध होने पर जब उसे आने में कष्ट होने लगा, तब भगवान स्वयं जाकर चुपचाप उसकी गाय का दूध पी जाते थे। गाय को दूध न देते देख उस भक्त ने एक दिन छिपकर देखने का निश्चय किया और जब सामान्य मानववेश में आकर भगवान दूध पीने लगे, तब उन्हें चोर समझकर भक्त ने डंडा मारा। उसी समय भगवान ने प्रकट होकर दर्शन दिए और यहीं रहने का आश्वासन दिया। वही डंडा लगने का चिह्न मूर्ति पर है।

वेंकटाचल पर्वत पर अनेक तीर्थ हैं , जो सभी दर्शनीय हैं। आकाशगंगा, जाबालि तीर्थ, पापनाशन तीर्थ, वैकुंठ तीर्थ, पांडव तीर्थ आदि ऐसे ही तीर्थ हैं, जिनका दर्शन कर श्रद्धालु स्वयं को धन्य हुआ मानते हैं।

तिरुमला तिरुपति देवस्थानम्

आजकल यहां के मंदिर सरकारी समिति ‘ देवस्थानम् समिति ‘ के अधीन हैं। देवस्थानम् द्वारा प्रमुख रूप से पांच मंदिरों का निर्वहण किया जाता है – ये पांच मंदिर इस प्रकार हैं:

  • तिरुमलै का सबसे प्रमुख मंदिर श्री वेंकटेश्वर का मंदिर है ।
  • तिरुपति के तीन मंदिर: गोविंदराज का मंदिर, कोदंड राम स्वामी का मंदिर, कपिलतीर्थ में श्री कपिलेश्वर का मंदिर।
  • तिरुचानूर में पद्मावती का मंदिर।

यहां पर मंदिरों के दर्शन एवं पूजा का नियम यह है कि तिरुपति शहर में, कपिल तीर्थ में स्नान करके सबसे पहले श्री कपिलेश्वर का दर्शन करें, फिर तिरुमलै पर्वत पर वेंकटाचलम् जाकर वेंकटेश्वर का दर्शन करें तथा ऊपर के अन्य तीर्थों का दर्शन कर नीचे आकर तिरुपति में गोविंदराज एवं कोदंड रामस्वामी (धनुर्धारी राम ) का दर्शन करें और फिर अंत में तिरुचानूर जाकर पद्मावती देवी का दर्शन करें।

अन्य दर्शनीय स्थल

मंदिर से तीन किलोमीटर की दूरी पर अरुणाचलम् की परिक्रमा में महर्षि रमण का आश्रम है। आश्रम में महर्षि द्वारा स्थापित देवी की भव्य मूर्ति है। यहां पर हर समय अनेक साधक रहते हैं। महर्षि रमण ने पर्वत पर जहां – जहां साधना की, उन स्थानों के चित्र इस आश्रम में प्रदर्शित हैं। आश्रम में ही महर्षि की समाधि है।

कल्याण कट्ट : इस स्थान पर केशमुंडन का माहात्म्य है। यहां तक कि सौभाग्यवती स्त्रियां भी अपने केश मुंडन करवा लेती हैं। देवस्थान कमेटी कार्यालय में निश्चित शुल्क देकर मुंडन कराने की चिट्ठी लेकर मुंडन कराया जाता है।

स्वामिपुष्करिणी : इस विशाल सरोवर में स्नान करके तिरुपति बालाजी के दर्शन किए जाते हैं। वराह भगवान के स्नान तथा श्रीपति भूदेवि की क्रीड़ा हेतु गरुड़जी इस पुष्करिणी को वेंकटाचल पर्वत पर लाए। मार्च – अप्रैल में यहां तेप्पोत्सव महोत्सव बहुत दर्शनीय है।

यात्रा मार्ग

हैदराबाद, चेन्नई, कांची, चित्तूर, विजयवाड़ा आदि स्थान से तिरुपति के लिए बस सेवाएं उपलब्ध हैं। तिरुपति से तिरुमलै पर्वत पर जाने के लिए दो मार्ग हैं – एक पैदल और दूसरा बस द्वारा। पैदल मार्ग 11 किलोमीटर का है और बस का मार्ग 22 किलोमीटर का। देवस्थानम् समिति की बसें तिरुमलै जाती रहती हैं। यात्रीगण चेन्नई में ठहरें व वहां वे बालाजी यात्रा हेतु लक्जरी बस लें। ये दर्शन का कान्ट्रेक्ट टूर होता है। इसमें बस प्रात : 6.00 चलकर मार्ग में नाश्ता कराती है और फिर सीधे देव स्थान पहुंच जाती है। वहां बस कंडक्टर द्वारा कुछ रुपए लेकर शीघ्र दर्शन की व्यवस्था की जाती है। इस प्रकार दर्शन कुछ घंटों में ही हो जाते हैं।

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