पालीताणा (शत्रुंजय ): जैन तीर्थ के स्पर्श मात्र से तीन लोकों के दर्शन का लाभ मिलाता है

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पालीताणा (शत्रुंजय ): जैन तीर्थ के स्पर्श मात्र से तीन लोकों के दर्शन का लाभ मिलाता है

palitaana (shatrunjay) : jain teerth ke sparsh maatr se teenon lokon ko dekhane ka laabh milata haiभावनगर के समीप शत्रुंजय गिरिमाला के अंचल में पालीताणा बसा हुआ है। यहां आठ करोड़ मुनियों को मोक्ष प्राप्त हुआ था। अतः यह सिद्धाचल जैन लोगों का प्रमुख तीर्थ तथा अत्यंत पवित्र स्थान माना जाता है।

शत्रुंजय की महिमा

  • अन्य तीर्थ पर उग्र तपस्या एवं ब्रह्मचर्य पलने में जो लाभ होता है वही लाभ गिरिराज पर रहने मात्र से मिलता है।
  • इस तीर्थ के स्पर्श मात्र से तीनलोकों के दर्शन का लाभमिलाता है।
  • गिरिराज को वंदन करने से जहां-जहां केवलज्ञानियों एवं साधुओ का निर्वाण हुआ है, उस सब स्थानों की वंदना स्वतः ही हो जाती है।
  • अष्टपद, सम्मेत शिखरजी, पावापुरी, गिरनार, चंपापुरी वगैरह तीर्थ के दर्शन वंदन से100 गुना अधिक फल इस तीर्थ के वंदन स्मरण मात्र से मिलता है।
  • जो यहाँ प्रतिमा भरवाता है वह चक्रवर्ती पद को पता है।
  • शत्रुंजय नदी में स्नान करने वाला भव्यात्मा होता है।(सारावली पयन्त्रा)
  • यहाँ पूजा करने से 100 गुणा फल, प्रतिमास्थापन करने से हजार गुणा व तीर्थ की रक्षा करने से अनंत गुणा फल प्राप्त होता है।
  • यहाँ एक ताप का100 गुणा फल मिलता हैएवं जो छठ (बेला) करके सात यात्रा करे वो तीसरे भव में मोक्ष पाता है।
  • शत्रुंजय तीर्थ में रथ अर्पण करने से चक्रवर्ती होता है। (श्राद्ध विधि)
  • यहां के रायण वृक्ष के हर पत्ते में, फल में, जड़ में देव का वास है।
  • रायणवृक्ष की पूजा करने से बुखार दूर हो जाता है।
  • पार्श्वनाथ भगवान के भाई हस्तिसेन ने संघ निकला उस समय रायण वृक्ष निकला था।
    आने वाली चौविशी के सभी तीर्थकर यहा विचरेगे।
  • अजितनाथ भगवान इस गिरि पर3000 बार आए थे।
  • दंडवीर्य राजा संघ लेकर इसा तीर्थ पर आए, उस समय उनके संघ में रहे हुए सात करोड़ श्रावक-श्राविकाओं को इस तीर्थ के ध्यान से मोक्ष प्राप्त हुआ था।
  • देवकी के छः पुत्र, जादव पुत्र, सुव्रत सेठ, मंडक मुनि, सेलक मुनि और आईमुत्ता मुनि ने इस तीर्थ पर मोक्ष पाया था।
  • सुधर्मागणधर के शिष्य चिल्लण मुनि संघ के साथ गिरि पर चढ़े, संघ अतीतष्णातुर हुआ, मुनि ने विचारशक्ति से पानी मंगवाया तब से चन्दन तलावडी प्रसिध हो गई।
  • ऋषभदेव प्रभु इस तीर्थ पर99 पूर्व बार पधारे।
  • शत्रुंजय के ध्यान में माणकचंद सेठ मरकर तपागच्छ के अधिष्ठायक देव मणिभद्र बने।
    कवड यक्ष शत्रुंजय केअधिष्ठायक देव है।
  • वस्तुपाल तेजपाल चतुर्विध संघ के साथ इस तीर्थ पर बारह बार यात्रथ पधारे।
    पद्लिप्त सूरी के नाम से पालीताणा नगर नाम पडा।
  • इस काल में भरत महाराजा ने सर्वप्रथम शत्रुंजय का संघ निकला था, जिसमें 32,000 मुकुट बध्द राजा, 32,000 नाटक वाले, 84 लाख वाध्य, 3 लाख मंत्री, 84 लाख हाथी, 5लाख दिवी धारण करने वाले 84 लाख घोड़े, 16,000 यक्ष, 84 लाख रथ, 10 करोड़ ध्वजा धारण करने वाले, सवा करोड़ भरत के पुत्र, 99 करोड़ संघपति एवं करोडो साथु – साध्वीजी थे। (शत्रुंजय कल्पवृति)
  • शत्रुंजय पर्वत को देखे बिना शत्रुजय यात्रा जाते संघ का वात्सल्य करे तो करोड़ गुना पूण्य प्राप्त होता है। (श्राद्ध विधि)
  • अन्य स्थान में करोड़ पूर्व तक क्रिया करने से जितना लाभ मिलता है उतना फल इसा तीर्थ में निर्मलता से कार्य करने वाले को अंतमुहुर्त में प्राप्त होता है।(श्राद्ध विधि)
    सिद्धगिरि की पवित्र भूमि पर 1 मुनि को दान देने से 10 करोड़ श्रावकों को जिमाने से भी ज्यादा लाभ मिलता है।

तीर्थस्थल विवरण

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यहां 1977 फुट की ऊंचाई पर 863 मंदिर बने हुए हैं। 11 वीं शताब्दी में यहां कुछ मंदिर बने थे। बाद में मुस्लिम आक्रमण से उनका विनाश हुआ। पुनः 16 वीं शताब्दी में ये मंदिर बनवाए गए, किंतु शिल्प शैली पूर्ववत् रखी गई । पालीताणा में शांतिनाथ भगवान का सुंदर देरासर है। पर्वत के मंदिरों में भगवान ऋषभदेवजी का मंदिर है। ऋषभदेव को यहीं पर कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ था तथा यहीं पर निर्वाण प्राप्त हुआ था।

मुख्य मंदिरों में भगवान आदिनाथजी तथा चौमुखी के मंदिर भी हैं। तदुपरांत कुमारपाल व विमलशाह के बनवाए यहां पर कई मंदिर हैं। पालीताणा को मंदिरों का शहर कहा जाता है। सबसे अधिक पवित्र माना जाने वाला, प्रथम तीर्थंकर भगवान आदीश्वर का मंदिर भी यहीं विद्यमान है। अन्य मंदिरों की अपेक्षा सादा दिखाई देने वाला यह मंदिर शिल्पकला का अनुपम नमूना बन पड़ा है। मूर्तियों में अमूल्य रत्न जड़े हुए हैं। यहां पर कार्तिक की पूर्णिमा, फागुन सुदी 13, चैत्र पूर्णिमा और और बैसाख सुदी 3 आखातीज अक्षय तृतीया के दिनों देश भर से हजारों भक्त यात्रार्थ आते हैं और दर्शन व प्रदक्षिणा का पुण्य प्राप्त करते हैं।

अन्य स्थल

भावनगर के समीप तलाजा नाम का छोटा नगर प्राचीनकाल में तालध्वजगिरि के नाम से प्रचलित था। यहां गिरिशिखर पर जैनमंदिर बने हुए हैं। चौमुखी मंदिर सबसे ऊंचाई पर है। सदियों से यह स्थान जैन लोगों का तीर्थधाम वना हुआ होने के साथ – साथ यहां पर बौद्धकालीन गुफाएं भी विद्यमान हैं। यहां से थोड़ी दूर गुप्तप्रयाग है।

भावनगर के नजदीक सोनगढ़ में कहानजी स्वामी का दिगंबर जैन मंदिर है। यहां का संगमरमर का कीर्तिस्तंभ अति सुंदर, आकर्षक व कलापूर्ण है।

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