वैशाली- महावीर की जन्मस्थली: जैन मंदिर मुख्य श्रद्धा के केंद्र

0
580
भगवान महावीर का जन्म क्षेत्र होने के अलावा वैशाली अनेक जैनतीर्थों का स्थान

vaishaalee- mahaaveer kee janmasthalee: jain mandir mukhy dvaar kendr: महावीर की जन्मस्थली ( वैशाली ): भगवान महावीर की पावन जन्मभूमि होने के कारण संघ द्वारा प्रतिवर्ष महावीर जयंती के अवसर पर विराट रूप में वैशाली महोत्सव का भव्य आयोजन किया जाता है। बिहार में हाजीपुर तक रेल से जाकर यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। भगवान महावीर का जन्म क्षेत्र होने के अलावा वैशाली अनेक जैनतीर्थों का स्थान है, जिससे इस क्षेत्र को जैनधर्म का धर्मक्षेत्र कहा जा सकता है। पवित्र गंगा से उत्तर में हाजीपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर पुरातन वैभव से युक्त वैशाली सर्वोच्च जैनतीर्थ है, क्योंकि यहीं के लिच्छवि राजवंश में वर्धमान महावीर का जन्म हुआ था। श्वेतांबरों के मतानुसार इनका जन्म ईसा पूर्व 540 में हुआ था। वर्धमान शुरू से ही सांसारिकता से दूर एक गंभीर व्यक्ति थे और तीस वर्ष की उम्र में ही वैभवपूर्ण सांसारिक सुख त्यागकर विरक्त हो गए। वर्षों ज्ञान की खोज में कई स्थानों पर भटकने के बाद दीर्घ तप और अपने पूर्व तीर्थंकर पार्श्वनाथ के सिद्धांतों द्वारा उन्हें ज्ञान की ज्योति मिली। ज्ञान प्राप्ति के बाद वर्धमान परमज्ञानी कहलाए तथा उन्होंने कई स्थानों पर धर्मोपदेश दिया और फिर वैशाली पधारे। वहीं बारह वर्ष तक रहकर तीर्थंकर ने प्रवचन के द्वारा अपने ज्ञानामृत का वितरण किया। प्राचीनकाल से ही महानगरी के  नाम से प्रसिद्ध वेशाली  अपने  उत्कर्ष काल में अत्यत समृद्ध थी और प्रतापी लिच्छवि राजाओं की राजधानी रही है। इतिहास के अनुसार वशाली  नगर की स्थापना इक्ष्वाकु वंश के राजा विशालदेव ने की थी। उन्होंने ही इसका नाम विशालपुरी रखा जो बाद में वैशाली में बदल गया। कहते हैं, अपने गुरु तथा अनुज के साथ श्रीरामचंद्रजी वैशाली आए थे और राजा विशाल की वंशजा सुमति ने उनका स्वागत सत्कार किया था।

स्थल की विशेषताएं 

वैशाली बौद्धधर्म का भी केंद्र रहा है। यह गौतमवुद्ध का प्रिय स्थान रहा है। बोधगया में ज्ञान की ज्योति प्राप्त करने के उपरांत बुद्ध कई बार यहां पधारे। विश्वसुंदरी ( आम्रपाली ) ने यहीं पर बौद्धधर्म की दीक्षा ली थी वौद्धविहार तथा स्तूपों के अवशेष अब भी वैशाली के निकट मौजूद हैं। वैशाली के दर्शनीय स्थानों में कोल्हुआ के निकट अशोक स्तंभ जगत् प्रसिद्ध है। यहां के प्राचीन स्थानों में उल्लेखनीय वावन पोखर है, जिसके निकट जैन मूर्तियों के भग्नावशेष पाए गए थे। उन्हीं के आधार पर अब वहां नूतन जैन मंदिरों का निर्माण किया गया है। इसके अलावा राजा विशाल का गढ़ कमलवन हरिकटोरा मंदिर, बौद्धस्तूप आदि वैशाली के अन्य दर्शनीय स्थल हैं। वैशाली को गणतंत्र को जन्मभूमि होने का श्रेय भी प्राप्त है। विश्व में सर्वप्रथम गणतांत्रिक शासन यही लागू हुआ था। विदेह और लिच्छवि एक गणराज्य था जिसे वन्जिसंघ कहा जाता था। वैशाली के संसद में 7707 प्रतिनिधि गण सदस्य थे। गणराज्य की कार्यपालिका शक्ति अष्टप्रधान समिति में निहित होती थी। इसके अलावा राजा का स्थान सर्वोच्च था।

Advertisment
सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here