स्वर्णमंदिर : सिक्खों के लिए सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थान

0
2180
swarn mandir

svarnamandir : sikkhon ke lie sarvashreshth teerthasthaan स्वर्णमंदिर :अमृतसर, दिल्ली तथा भारत के अन्य महत्त्वपूर्ण नगरों से रेल तथा सड़क मार्ग से जुड़ा है, जिसकी वजह से यहां साल भर यात्रीगण आते रहते हैं। अमृतसर, अंबाला, चंडीगढ़, दिल्ली, फिरोज़पुर, जम्मू आदि से अच्छी तरह जुड़ा है। स्वर्ण मंदिर अमृतसर में स्थित हैं और अपनी पावनता और सुंदरता के कारण हमेशा से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है।स्वर्णिम किरणें बिखेरने वाला यह मंदिर केवल सिक्खों के लिए ही नहीं, बल्कि अनगिनत श्रद्धालुओं व पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

एक सुंदर सरोवर के मध्य में स्थित यह स्वर्ण मंदिर संसार भर के सिक्खों के लिए सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थान है। अमृतसर नगर तथा यहां स्थित स्वर्ण मंदिर की स्थापना का श्रेय सिक्खों के चौथे गुरु रामदासजी को है। एक प्रचलित लोककथा के अनुसार भगवान राम के दोनों पुत्र लव – कुश यहां सरोवर के निकट विद्या अध्ययन तथा रामायण पाठ के लिए आए थे। ऐसा कहा जाता है कि इस सरोवर के जल में कई प्रकार के गुण हैं, जिससे रोगी भला – चंगा हो जाता है।

Advertisment

अमृतसर की स्थापना की कथा सन् 1574 ई . से आरंभ होती है। गुरु रामदासजी ने यहां पर एक पुराने सरोवर के किनारे डेरा डाला था। वहां पर भक्तों की भीड़ होने लगी। बाद में गुरु साहिब ने सरोवर और उसके आसपास की जमीन खरीद ली और भक्तों ने एक बड़ा सरोवर खोद दिया। वहां गुरु के निवास स्थान को गुरु का महल नाम दिया तथा बस्ती रामदासपुरा बस गई। अमृततुल्य जल से भरे इस विशाल सरोवर के पास बसी बस्ती का नाम अमृतसर रखा गया। गुरु रामदासजी की यह योजना थी कि यहां पर मंदिर बनवाकर एक विशाल धार्मिक केंद्र की स्थापना की जाए, लेकिन दो वर्ष बाद ही गुरु रामदासजी का देहावसान हो गया। बाद में उनके पुत्र और उत्तराधिकारी गुरु अर्जुनदेवजी ने सन् 1601 में सरोवर के मध्य मंदिर निर्माण का कार्य पूरा किया तथा यहां पर पवित्र गुरु ग्रंथ साहब को विराजमान किया, तभी से सिक्खों और अन्य धर्मावलंबियों के लिए यह महान् तीर्थस्थान बन गया। पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर के नीचे के कुछ हिस्से में संगमरमर लगवाया और शेष भाग को पहले तांबे से जड़वा कर उसके ऊपर शुद्ध सोना मढ़वाया। अनुमान है, इसमें करीब चार सौ किलोग्राम सोने का इस्तेमाल हुआ है। तभी से यह स्वर्ण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। स्वर्ण मंदिर का मुख्य मंदिर पवित्र सरोवर के बीच स्थित है तथा वहां पहुंचने के लिए एक 60 मीटर लंबा सुंदर पुल बना हुआ है। इस पुल के किनारे को दर्शनी इयोढ़ी कहते हैं। 52 मीटर ऊंचा हरिमंदिर वर्गाकार है। इसमें चारों दिशाओं में चार द्वार हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि यहां गुरु के दरवार में किसी भी दिशा से आने वाले हर किसी का स्वागत है।

तीन मंजिल के इस स्वर्ण मंदिर की निर्माण कला अद्वितीय है। रंग – बिरंगे झाड़ फानूसों की अपनी अलग ही शोभा है, जो दर्शकों को बरबस चमत्कृत कर देती है। पहली मंजिल में गुरु ग्रंथ साहिब विराजमान हैं, जिसके ऊपर रत्न जड़ित छत्र है। यहा पर सवेरे 3 बजे से रात तक गुरु ग्रंथ साहिब अखंड पाठ होता है। रात्रि 10 बजे पाठ की समाप्ति पर गुरु ग्रंथ साहिब को सम्मान पूर्वक कोठासाहब ‘ नामक पवित्र स्थान पर ले जाकर प्रतिष्ठित किया जाता है। इसके बाद हरिमंदिर साहिब की सफाई कर, इसे दूध से धोया जाता है तथा ठीक प्रकार पोंछकर, साफ कर चांदनी आदि बिछा दी जाती है।

प्रात : फिर 3 बजे से पाठ आरंभ हो जाता है तथा 4 बजे प्रात : कोठासाहिब से रणसिंघों के वादन व भक्ति संगीत के साथ ससम्मान सोने की पालकी में हरिमंदिर साहिब लाकर गुरु ग्रंथ साहिब को पवित्र आसन पर स्थापित किया जाता है। इसके बाद पूरे दिन श्रद्धालु यहां माथा टेकने आते हैं।

स्वर्ण मंदिर में आने वाले यात्री स्वच्छता का पूरा ध्यान रखते हैं। पवित्र सरोवर के निकट ही शताब्दियों से खड़ा हुआ ‘ दुखभंजन बेरी ‘ नाम का पेड़ है। सरोवर में स्नान करके मनुष्य के सब दुख दूर होते हैं। स्नान के बाद सरोवर की परिक्रमा कर श्रद्धालु दर्शनी ड्योढ़ी से होता हुआ हरिमंदिर साहिब पहुंचता है।

गुरुओं के जन्मदिन व अन्य पर्वो पर स्वर्ण मंदिर को रोशनी से खूब सजाया जाता है। तब श्रद्धालु भारी संख्या में उमड़ पड़ते हैं। दर्शनों के बाद लोग ‘ हरि की पैड़ी ‘ पर चरणामृत लेते हैं, ऐसी मान्यता है कि यहां व्यक्ति की मुरादें पूरी होती हैं।

स्वर्ण मंदिर के निकट ही संगमरमर का दूसरा भवन है – अकालतख्त। इसकी स्थापना छठे गुरु, गुरु हरगोविंदजी ने की थी। यह सिक्ख धर्म का सर्वोच्च सिंहासन है, जहां से महत्त्वपूर्ण धर्मोपदेश तथा हुक्मनामे सुनाए जाते हैं। यहां विभिन्न गुरुओं के अस्त्र – शस्त्र तथा कीमती आभूषण रखे हैं। यह ऐतिहासिक धरोहर भी दर्शनीय है।

गुरु का लंगर स्वर्ण मंदिर का विशेष आकर्षण है। यहां भोजन के समय हर किसी को भोजन मिलता है। सब लोग एक साथ पंक्ति में बैठकर लंगर करते हैं। लंगर में लोग निःशुल्क व बड़े उत्साह के साथ श्रद्धालुओं में दाल, चावल, सब्जियां तथा चपातियां बनाने व बांटने का कार्य सेवाभाव से करते हैं। इस प्रकार के कामों को ‘ कारसेवा ‘ जिसका शुद्ध रूप ( कर – सेवा ) है , कहते हैं। इसका सिक्ख धर्म में बहुत महत्त्व है।

इस मंदिर के निकट ही एक बहुत बड़ा हॉल है, जिसे मंजी साहब कहते हैं। यहां सिक्खों के महत्त्वपूर्ण धार्मिक सम्मेलनों का आयोजन होता है। मंदिर के पास ही यात्रियों के ठहरने के लिए ‘ गुरु रामदास सराय ‘, ‘ नानक निवास ‘ और ‘ अकाल भवन ‘ नामक बड़े- बड़े भवन हैं। यहीं पर तेजासिंह समुद्रहॉल और एक पुस्तकालय तथा म्यूजियम है, जिसमें अनमोल और दुर्लभ स्मृति चिह्न विद्यमान हैं तथा सार्वजनिक रूप से देखने के लिए उपलब्ध हैं।

Golden Temple: Best pilgrimage place for Sikhs

आस्था का अलौकिक केंद्र है स्वर्ण मंदिर

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here