आखिर मंगली के साथ विवाह क्यों नहीं करते हैं?

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मंगल और भूमि का सम्बन्ध पुत्र-माता का है। मंगल दूर से देखने में लाल रंग का दृष्टिगोचर होता है। मंगल ग्रह का नाम लोहितांग भी है। मंगल ग्रह को कुज के नाम से भी जाना जाता है। मंगल ग्रह का भूमि का पुत्र होने कुज और भूमि अर्थात पृथ्वी से अलग होने से भौम नाम से विख्यात हुआ है।

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मंगल के स्वरूप के सम्बन्ध में विद्बान मानते हैं कि मंगल चित्त प्रधान लाल वस्त्र धारण किए हुए है। मंगल का स्वभाव प्रचंड है और शरीर का वर्ण लाल है, लेकिन मंगल का स्वभावगत अति उदार हैं। मंगल तरुण अवस्था के हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि यदि मनुष्य की जन्म कुंडली में बलवान मंगल लग्न में पड़ा है तो जातक पचास की अवस्था में भी तीस का प्रतीत होता है। मंगल का आकार बड़ा है। वर्ण अशोक का किंशुक के फलों जैसा लाल होता है। कांति तपे हुए ताम्बे के समान होती है। यह 686 दिन बीस घंटों में राशि चक्र की परिक्रमा करता है। कर्क, वृश्चिक और मीन इन तीनों राशियों यानी जल राशियों पर इसका पूरा अधिकार है। पुरुष प्रकृति का राशि के समय का उग्र सूखा अग्नि जैसा ग्रह है। यह झगड़े, कलह और विरोध का प्रेरक है, तीखी रुचि हैं और मंगल के दिन के अधिपति हैं। मंूगा इनका प्रमुख रत्न है। मंगलवार को नवांश और दृकोण कुंडली में स्वग्रह मीन वृश्चिक कुम्भ मकर मेष राशियों में राशि में वक्री होने पर दक्षिण दिशा में और राशि के प्रारम्भ में मंगल बलवान होता है। मंगल के प्रभाव में उत्पन्न जातकों के केश छोटे, लहरीले घुंघराले और चमकीले होते है, लेकिन स्त्रियों के केश लम्बे, घने, काले व चमकदार होते है। इनके केश अत्यन्त आकर्षक होते हैं। विवाह के समय वधु-वर की जन्म पत्रिकाओं में मंगल का अत्यन्त गहनता से विचार किया जाता है।

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मंगल शनि, सूर्य, राहु, केतु यह पांच ग्रह क्रूर ग्रह हैं। लग्न चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्बादश भावों पर इन क्रूर ग्रहों का होना कष्टप्रद होता है। सप्तम मंगल का विवाह से गहरा सम्बन्ध है। सप्तम पत्नी का स्थान है। सप्तम में मंगल होने से जातक प्रबल मंगली होता है, लेकिन पत्नी भी मंगलीक हो तो दोनों पति-पत्नी के मंगलिक होने से यह दोष समाप्त हो जाता है। जिस जातक की कुंडली मंगलीक हो, उसे मंगलीक कन्या से ही विवाह करना चाहिए और जो कन्या मंगलीक हो, उसे मंगलीक वर से ही विवाह करना चाहिए।


लग्न से दूसरा घर कुटुम्ब स्थान कहलाता है। पत्नी का कुटुम्ब से विश्ोष सम्बन्ध है। पत्नी कुटुम्ब की प्रधान केंद्रीय स्तम्भ है। यदि केंद्रीय स्तम्भ ही टूट कर गिर जाए तो शामियाना गिरना स्वभाविक है। इस तरह यदि पत्नी नष्ट हो जाए तो कुटुम्ब कैसे बढ़ेंगा। चतुर्थ यानी सुख का स्थान होता है। चतुर्थ घर का विचार भी चौथ्ो घर से करते हैं। गृहणी घरवाली ही नहीं रहे तो घर कैसा। चतुर्थ में मंगल घर की सुख सम्पत्ति नष्ट करता है। सप्रम यानी पत्नी का स्थान अष्टम लिंगमूल से गुदाविधि अष्टम भाव होता है। इस भाग से पत्नी का सम्बन्ध स्पष्ट है। इसकी व्यख्या की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है। पत्नी की कुंडली में इस स्थान का सम्बन्ध सुस्पष्ट है। द्बादश यानी बारहवें घर भाव शयन सुख कहलाता है। शय्या का परम सुख कान्ता है। बारहवें में मंगल शयन सुख की हानि कराता है। इस कारण पाप स्थानों में सम्बन्धी सुख की हानि करने के कारण इनका विचार जन्म कुंडली व चंद्र कुंडली करना चाहिए। वैवाहिक सुख विचार से शुक्र का विश्ोष महत्व है। शुक्र काम का अधिष्ठाता है। सप्तम भाव का कारक है। पुरुष की काम वासना का विचार शुक्र से किया जाता है और स्त्रियों की काम वासना का विचार मंगल से किया जाता है।

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मंगल मकर राशि में उच्च का होता है और शुक्र मीन राशि में उच्च का होता है। इसी वजह से काम देव का नाम संस्कृत में मकर ध्वज कहा गया है। मकर जिसकी ध्वजा या झंडे भी है और मीन के तन अर्थात मीन के झंडे में है। वसन्त पंचिमी को प्राय: शुक्र उच्च का होता है। कामदेव का जन्म माना जाता है। वनस्पति जगत में पहले कहीं होती है। इससे जो पराग होता है। उसे रज करते है। कन्याओं में काम प्रकट होने का प्रथम लक्षण रजोदर्शन है। इसी कारण दोनों कलियों और कन्याओं के सम्बन्ध में रज शब्द का प्रयोग किया जाता है। पुष्प विकसित रूप है। इसलिए मासिक धर्म जब स्त्री होती है तो संस्कृत में उसे पुष्पि जी कहते हैं। आम तौर पर मंगल के वर के लिए मंगल की वधु उचित समझी जाती है या गुरु और शनि का बल देखा जाता है। जिसकी कुंडली में लग्न सप्तम, चतुर्थ, चतुर्थ, अष्टम या वाय भाव में मंगल होता है। उस कन्या के पति की मृत्यु होती है। इस योग के अपवाद भी हैं। लग्न में मेष चतुर्थ में वृश्चिक सप्तम में मकर अष्टम में कर्क और व्यय में धनु राशि हो तो यह मंगल वैधव्य योग अथवा द्बिभाषी योग नहीं करता है।

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