अयोध्या में राम मंदिर का सबूत देने वाले नहीं रहे
अयोध्या में राम मंदिर का जब भी जिक्र होगा तो प्रोफेसर बीबी लाल को जरूर याद किया जाएगा। बीबी लाल भारत के शीर्ष पुरातत्वविदों में शामिल रहे है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने राम जन्मभूमि से सम्बन्धित साक्ष्यों को एकत्र करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पुरातत्वविदों की चार पीढिय़ों को मार्गदर्शन किया और सनातन संस्कृति की ओर पुरातत्वविदों को आकर्षित करने में अहम भूमिका निभाई। देश शीर्ष पुरातत्वविदों में शामिल प्रोफेसर बीबी लाल (ब्रज बासी लाल) का निधन हो गया है। वह 101 साल के थे। उन्होंने बीती रात दिल्ली स्थित अपने आवास पर आखिरी सांस ली। अपने लंबे जीवनकाल में बीबी लाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक भी रहे थे। उनके निधन पर पुरातत्वविदों के साथ ही इतिहासकारों ने भी गहरा शोक जताया है।
अयोध्या की बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे की नींव में मंदिर मौजूद होने की खोज को लेकर बीबी लाल सबसे ज्यादा चर्चा में आए थे। अपनी इस खोज से वह इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गए। बीबी लाल के शिष्य प्रो. अशोक सिंह ने बताया कि बीएचयू के पुराविद प्रोफेसर एके नारायण ने 60 के दशक में पहली बार अयोध्या में पुरातात्विक उत्खनन का काम शुरू कराया। यह प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ सका, तो उन्होंने खुदाई का काम अपने हाथ में ले लिया। यहां से प्राचीन वस्तुएं मिलने पर उन्होंने बीएचयू को इसकी जानकारी दी। इसी पुरातात्विक साक्ष्य के आधार पर कोर्ट में यह साबित हुआ कि अयोध्या में मंदिर था।
150 से अधिक शोध लेख बीबी लाल के नाम
रिपोर्ट के मुताबिक, बीबी लाल का जन्म साल 1921 में उत्तर प्रदेश के झांसी में हुआ था। उन्होंने हस्तिनापुर (उत्तर प्रदेश), शिशुपालगढ़ (उड़ीसा), पुराण किला (दिल्ली), कालीबंगन (राजस्थान) सहित कई अहम ऐतिहासिक स्थलों की खुदाई की और इतिहास की बहुत सारी छिपी परतें दुनिया के सामने खोल दीं। उन्हें साल 2000 में पद्म भूषण से सम्मान किया गया। बीबी लाल ने 1975-76 के बाद से रामायण से जुड़े अयोध्या, भारद्वाज आश्रम, श्रृंगवेरपुरा, नंदीग्राम और चित्रकूट जैसे स्थलों की खुदाई कर अहम तथ्य दुनिया के सामने रखे। उनके नाम पर 150 से अधिक शोध लेख दर्ज हैं। बीबी लाल ने राम, उनकी ऐतिहासिकता, मंदिर और सेतु: साहित्य, पुरातत्व और अन्य विज्ञान नाम की किताब लिखी, जिस पर काफी बहस हुई। इसमें विवादित ढांचे के नीचे मंदिर होने की बात कही गई थी। उनकी लिखी हुई किताबें आज भी पुरातत्वविदों के लिए किसी धरोहर से कम नहीं मानी जाती है, क्योंकि उनकी लिखी किताबें खोज की प्रवृत्ति को दिशा दिखाने वाली है।