कालसर्प योगों को लेकर भ्रांतियां समाज में व्याप्त है, इन्हें दूर करने के लिए हम आपको काल सर्प योग के बारे में बताने जा रहे हैं। कितने प्रकार के होते है काल सर्प योग? किस काल सर्प योग का क्या परिणाम होता है? आइये, जानते हैं काल सर्प योग के बारे में। हमारे ऋषि-मनिषियों ने काल सर्प योग को लेकर तमाम उत्तम वचन कहें है, जो कि सारगर्भित है। हमें मार्गदर्शित करने वाले है। विद्बान ने 12 तरह के काल सर्प योग का विश्लेषण किया है। ये समस्त योग लग्न लग्न से सप्तम और द्बितीय भाव से अष्टम भाव से क्रमवार गृहस्थिति को लेकर बनाये गए हैं। इनके सही फलादेश के लिए जिस भाव में राहु है, उस भावेश की स्थिति और अन्य योगों का तुलनात्मक अध्ययन करना जरूरी है। कालसर्प योग और उनके परिणाम जानने के लिए यह लेख हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है। उम्मीद करता हूं, आपके लिए उपयोगी होगा। हम यहां सामान्य उपाय बताने जा रहे है, अन्य उपाय आप किसी विद्बान ब्राह्मण से जान सकते है।
कालसर्प योग शांति के लिए कालसर्प दोष हरण, यंत्र, कवच चांदी में निर्मित और प्रतिष्ठित व अभिमंत्रित करा बुधवार के दिन बुध के होरा में काले धागे में धारण करना चाहिए। बेहतर यह होगा दोष निवारण के सम्बन्ध में किसी विद्बान से चर्चा कर इसे धारण करें। महामृत्युंजय का जप भी कल्याणकारण होता है।
1- अनन्त कालसर्प योग-
लग्न से सप्तम स्थान तक होने वाले कालसर्प योग को अनंत कालसर्प योग कहते हैं, अर्थात जब जन्मकुंडली में राहु लग्न में व केतु सप्तम में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त नामक कालसर्प योग बनता है। इस कालसर्प योग के परिणाम से जातक के जीवन में मानसिक शांति नहीं रहती है। सदैव परेशान, क्षुब्द, अशांत और अस्थिर रहेगा। जातक दुर्बुद्धि, कपर्य, चालबाज, प्रपंची, झूठ बोलने वाला और षडयंत्र में फसने वाला होता है। जातक जीवन भर थानों, कोर्ट व कचहरी के चक्कर काटने वाला होता है। बार-बार, पलट-पलट कर व्यवसाय करेगा और हर बार हानि उठाएगा। जातक को अपनी पद प्रतिष्ठा संभालने के लिए अधिक संघर्ष करना पड़ेगा। गृहस्थ जीवन इसका शून्यवत रहेंगा। ऐसे जातकों के व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम की जरूरत पड़ती है। प्रतिकूलताओं के बावजूद जातक के जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब चमत्कारिक ढंग से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। वह चमत्कार किसी कोशिश से नहीं, अचानक घटित होता है।
संक्ष्ोप में प्रभाव जानिए, जातक को मानसिक रूप से अशांति रहती है, दुष्ट बुद्धि रहती है, कष्टमय वैवाहिक जीवन, पूरे जीवन अपनी प्रतिष्ठा पाने के लिए संघर्षरत रहना पड़ता है। झूठ बोलने की प्रवृत्ति होती है।
जानिये, निराकरण के उपाय-
1- हनुमान चालीसा का 1०8 बार पाठ करें। संकटों का नाश होगा।
2- महामृत्युंजय मंत्र का जप से जातक को शांति प्राप्त होती है, संकटों का नाश होता है।
3- विद्यार्थी माता सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जप करें और विधिवत उपासना करें। मां सरस्वती की कृपा से शिक्षा की बाधाएं दूर होंगी।
4- देवदारु, सरसों तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक स्नान करें। लाभ होगा।
5- घर में मोर पंख रखने चाहिए। इससे जातक का संकट कम होता है।
6- किसी शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें। शुभता प्राप्त होगी।
2- कुलिक कालसर्प योग-
केतु द्बितीय राहु अष्टम भाव में होता है तो कुलिक कालसर्प योग होता है। इसका प्रभाव यह होता हे कि जातक की पत्नी कुरुप, निर्मोही, अविश्वासी, अल्पज्ञ, अनपढ़, अतिभोगी होती है। संतान सुख न्यूनतम रहता है। पुत्र होकर भी दुष्ट, कू्रर, अवज्ञा करने वाला होगा। स्वास्थ्य में गिरावट जातके अपने भविष्य व वृद्धावस्था को लेकर सदैव चिन्तित रहता है। गुर्दे की बीमारी, मूत्ररोग, मस्से की बीमारी पीड़ा देती है। जातक अपने जीवन में अनेक स्त्रियों से संसर्ग कर अपमानित होता है। पिता की मृत्यु अल्पायु में हो जाती है। आर्थिक विषमता अभाव, धन की कमी पीछा नहीं छोड़ती है। अथक परिश्रम व निरंतर संघर्ष करके भी जातक आर्थिक पक्ष सुधार नहीं पाता है। आय की अपेक्षा व्यय अधिक होता है। मित्र कदम-कदम पर धोखा देते हैं। अपयश, निरादर, अपमान, उपेक्षा, आलोचना से जातक घिरा रहता है। कौटुम्बिक कलह से जातक पीड़ित रहता है। मित्रों द्बारा धोखा, संतान सुख में बाधा और व्यवसाय में संघर्ष कभी उसका पीछा नहीं छोड़ते। जातक का स्वभाव भी विकृत हो जाता है। समय से पहले बूढ़ा लगने लगता है।
संक्ष्ोप में प्रभाव जानिए, स्वास्थ समस्याएं बनी रहती है, आर्थिक स्थिति में भी असंतुलन रहता है। पारिवारिक कलह के कारण अशांति, विवाह विच्छेद की प्रबल संभावनाएं बनी रहती है। जातक का जीवन कुल मिलाकर बहुत ही अस्थिर रहता है।
जानिए, निराकरण के उपाय –
1- देवदारु, सरसों तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक स्नान करें।
2- किसी भी शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।
3- श्री हनुमान जी के चालीसा का 1०8 बार पाठ करें।
4- श्रावण मास में तीस दिन तक भगवान भोले शंकर का अभिष्ोक पूजन करें।
5- विद्यार्थी जीवन के दौरान माता सरस्वती के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जप करें। विधिवत माता सरस्वती की उपासना करें।
6- मंगलवार और शनिवार का व्रत रखने से जातक को राहत मिलती है, शनिवार को मंदिर में जाकर भगवान शनिदेव का पूजन व तैलाभिष्ोक करना चाहिये। यह अत्यन्त प्रभावी उपाय है।
7- राहु की दशा आने पर प्रतिदिन एक माला राहु मंत्र का जप करना श्रेयस्कर होता है। जब 18००० जप हो जाए तो राहु की मुख्य समिधा दुर्वा से पूर्णाहुति हवन करें। किसी गरीब को नीले वस्त्र और उड़द दान देने से जातक को राहत मिलती है।
3- वासुकी कालसर्प योग-
तृतीय भाव यानी पराक्रम भाव से नवम भाव के मध्य राहु-केतु के मध्य अन्यान्य सभी गृह भूमि पर वासुकी कालसर्प योग होता है। इसका प्रभाव होता है कि जातक में नास्तिक भाव की प्रधानता रहती है। कानूनी दस्तावेजों में भावुकतावश हस्ताक्षर करके पछताता है। जातक को विदेश प्रवास में भारी कष्ट उठाने पड़ते हैं। भाई-बहनों और परिवारजनों से से निरन्तर कष्ट उठाने पड़ते हैं। तृतीय भाव मित्र का होने के कारण जातक के मित्र धोखा देते हैं। गृहस्थजीवन विश्वखलित रहेगा। पति-पत्नी में परस्पर कटुता, अविश्वास, वैमनस्यता, विरोध, भोग से असंतुष्टि रहेगी। भाग्य कदम-कदम पर आपके साथ चलेगा। भाग्य में निरंतर उठा-पटक और भाग्योदय में अनेक बाधायें आएंगी। जातक के नौकरी में बाधायें, उन्नति में रुकावट, राज्य पक्ष से प्रतिकूल व अनेकबार बर्खास्त होता है। यदि जातक अपने जन्म स्थान से दूर जाकर कार्य करें तो अधिक सफलता मिलती है। लेकिन सब कुछ होने के बाद भी जातक अपने जीवन में बहुत सफलता प्राप्त करता है। विलम्ब से उत्ताम भाग्य का निर्माण भी होता हैै।
संक्ष्ोप में प्रभाव जानिए, नास्तिक प्रवृत्ति के होते हैं, पारिवारिक सदस्यों से कष्ट मिलता है और मित्रों से धोखा खाते हैं। विदेश प्रवास फलता नहीं है, कष्टमय कहा जा सकता है।
जानिए, निराकरण के उपाय –
1- किसी भी शुभाशुभ मुहूर्त में नाग पाश यत्र को अभिमंत्रित कर धारण करने से जातक का कल्याण होता है।
2- नव नाग स्तोत्र का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
3- महामृत्युंजय मंत्रों का जाप प्रतिदिन 11 माला प्रतिदिन करना चाहिए, विश्ोषतौर पर जब तक राहु केतु की दशा-अंर्तदशा रहे और हर शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करना चाहिए और मंगलवार को श्री राम भक्त हनुमान जी को चोला चढ़ाना श्रेयस्कर होता है।
4- हर बुधवार को काले वस्त्रों में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्र जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
4- शंखपाल कालसर्प योग-
जब राहु सुखस्थ व केतु कर्म भाव में हो और अन्यान्य गृह इनके मध्य हो तो शंखपाल कालसर्प योग होता है, अर्थात चतुर्थ भाव से दशम भाव तक होने वाले काल सर्प योग को शंखपाल काल सर्प योग कहते है। इसके परिणाम स्वरूप जातक के धन-धान्य, सुख-समृद्धि, चल-अचल सम्पत्ति में कमी आती है। पैतृक सम्पत्ति में भी व्यवधान उपस्थित होते है। जातक को भाई-बहन, माता व नौकर से व्यवधान व परेशानियां होती है। जातक को नौकरी में उतार-चढ़ाव व उत्थान पतन का सामना करना पड़ता है। शिक्षा में बाधाएं आती है और शिक्षा पूर्ण नहीं होती है। स्वास्थ्य अक्सर ही बिगड़ा रहता है।
संक्ष्ोप में प्रभाव जानिए, माता को या माता के कारण जीवन भर कष्ट होते है, जीवन में उतार-चढ़ाव रहते हैं। नौकरी भी जातक के लिए सहज नहीं होती है। परेशानी रहती हैं। कुल मिलाकर कष्टमय जीवन रहता है। चिंताजनक आर्थिक पक्ष रहता है।
जानिए, निराकरण के उपाय –
1- हनुमान चालीसा का 1०8 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं। इससे जातक को बहुत शांति प्राप्त होगी। संकटों में कमी आयेगी।
2- जातक को प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।
3- भोजनालय में बैठकर भोजन करना चाहिए।
4- किसी भी शुभ मुहूर्त में मुख्य द्बार पर चांदी का स्वस्तिक व दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका देना चाहिए। शांति प्राप्त होगी। ग्रह अनुकूल होंगे।
5- किसी भी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को जल में तीन बार प्रवाहित करना चाहिए।
6- शनिवार का व्रत करना चाहिए और राहु, केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करनी चाहिए और हनुमान जी को मंगलवार को चोला चढ़ायें और शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करना चाहिए। इससे ग्रह अनुकूल होते हैं।
7- किसी भी शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से सात बार उतारकर सात बुधवार को गंगा या यमुना जी में प्रवाहित करें। यह भी अत्यन्त प्रभावी उपाय माना जाता है।
8- सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
9- किसी शुभाशुभ मुहूर्त में सर्वतोभद्रमण्डल यंत्र को पूजित कर धारण करें।
1०- यह उपाय जो हम आपको बता रहे है, प्रभावी है, जरूर अपनाएं। सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें।
11- किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित कीजिए।
12- किसी भी शुभाशभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित जरूर कीजिए।
13- काल सर्प दोष निवारण यंत्र घर में स्थापित करे। उसका हर दिन पूजन कीजिए और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दीजिए और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दे दीजिए या फिर पीपल की जड़ में चढ़ा दीजिए।
5- पद्म काल सर्प योग-
पंचम स्थान से एकादश स्थान तक क्रमश: राहु-केतु के मध्य में सभी ग्रह होने पर काल सर्प योग होता है। इसके परिणाम स्वरूप जातक गृहस्थ जीवन में लगातार बाधाएं आती है। संतान सुख का अभाव रहता है। वृद्धावस्था में कष्टमय जीवन प्राप्त करते हैं। संतान दूर चली जाती है। माता से अलग जाती है। जातक को शत्रु कदम-कदम पर अहित करने का प्रयास करते हैं। या फिर शत्रु गोपनीय रूप से इनके मध्य में षडयंत्र करते हैं। जातक को जेल या कारावार भी भोगना पड़ सकता है। गुप्त रोग या गुप्तांग सम्बन्धित रोग जातक को पीड़ा पहुंचाते हैं। रोग का ठीक होना कठिन होता है। पत्नी चरित्रवान मिल जाए, इसमें भी संशय रहता है। स्त्री का चरित्र संदेहास्पद ही बना रहता है। जातक की शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न होते हैं। दाम्पत्य जीवन कभी-कभी तनावपूर्ण हो जाता है। जातक जो सम्पत्ति अर्जित करते है, अक्सर देखा गया है कि वह सम्पत्ति दूसरे हड़प लेते है। अगर जातक अपने चरित्र को ठीक रखें, मदिरापन न करें और अपने मित्र की सम्पत्ति को न हड़पे तो उपरोक्त कालसर्प प्रतिकूल प्रभाव लागू नहीं होते हैं। यानी चरित्र में अच्छा रहे तो कुप्रभाव कम रहता है।
संक्ष्ोप में प्रभाव जानिए, सSा या लाटरी में नुकसान होता है। वृद्धावस्था में संतान से अलग रहना होता है। जीवन साथी से विचार नहीं मेल खाते हैं।
जानिए, निराकरण के उपाय –
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्बार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से मिर्मित नाग चिपका दें।
शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत प्रारंभ कर 18 शनिवारों तक व्रत करें और काला वस्त्रा धारण कर 18 या 3 माला राहु के बीज मंत्रा का जाप करें। फिर एक बर्तन में जल दुर्वा और कुशा लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही वस्तुएं दान भी करें। रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। नाग पंचमी का व्रत भी अवश्य करें।
नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मुट्ठी भिगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 1०8 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिदूर चढ़ाएं और साथ ही श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें। ऐसा करने से वासुकी काल सर्प योग के समस्त दोषों की शांति हो जाती है।
श्रावण के महीने में प्रतिदिन स्नानोपरांत 11 माला ‘नम: शिवाय’ मंत्रा का जप करने के उपरांत शिवजी को बेलपत्रा व गाय का दूध तथा गंगाजल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत करें।
6- महापद्म कालसर्प योग-
राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है। इसके परिणाम स्वरूप जातक की आय कम रहती है। धर्मशील भी नहीं रहता है। निराशा की भावना से हमेशा ग्रसित रहता है। जातक के चरित्र पर बारंबार दाग लगते हैं। जातक चरित्र विशुद्ध नहीं रह पाता है। जातक जीवन भर रोग, शोक से घिरा रहता है। पत्नी की विरह को सहना पड़ता है। पत्नी मनोकूल नहीं मिलती है। जातक जीवन में प्रेम प्रसंग में हमेशा असफल रहता है। गृहस्थ जीवन में सुख भी नहीं रहता है। जातक विदेशों से व्यापार में लाभ कमाता है, परन्तु बाहर ज्यादा रहने के कारण उसके घर में शांति का अभाव रहता है। इस योग के जातक को एक ही चीज मिल सकती है धन या सुख। कई बार अपनो द्बारा धोखा खाने के कारण उनके मन में निराशा की भावना जागृत हो उठती है एवं वह अपने मन में शत्रुता पालकर रखने वाला भी होता है। इतना सब कुछ होने के बाद भी जातक के जीवन में एक अच्छा समय आता है और वह एक अच्छा दलील देने वाला वकील या राजनीति के क्षेत्र में सफलता पाने वाला नेता होता है।
संक्ष्ोप में प्रभाव जानिए, जातक शत्रुओं के हाथों परास्त होता है, निराश रहने वाला होता है। प्रेम प्रसंग में हमेशा असफल रहता है।
जानिए, निराकरण के उपाय –
1- मंगलवार और शनिवार को सुंदरकाण्ड का 1०8 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करना चाहिए। यह जातक के लिए लाभकारी होता है।
2- प्रयागराज में संगम पर नाग-नागिन की विधिवत पूजन कर दूध के साथ संगम में प्रवाहित कीजिए और यहां तीर्थराज प्रयाग में संगम स्थान में तर्पण श्राध्द भी एक बार अवश्य करें।
3- महामृत्युंजय के मंत्र का जप करने से भी जातक को राहत मिलती है, इस सम्बन्ध में किसी विद्बान ब्राह्मण से परामर्श आवश्य कर लें। फिर विधिवत महामृत्युंजय के पावन व शक्तिशाली मंत्र का जप करें या करायें।
4- श्रावणमास में 3० दिनों तक महादेव का अभिषेक कीजिए। निश्चित लाभ होगा।
5- शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शनिवार व्रत शुरू करें। यह व्रत 18 बार कीजिए। काला वस्त्रा धारण करके 18 या 3 राहु बीज मंत्र की माला जप करें। इसके पश्चात एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी समयानुसार रेवड़ी, भुग्गा, तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन कीजिए और यही दान में भी दें। रात को घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ के पास रख दीजिए।
7- तक्षक कालसर्प योग-
जब राहु सप्तम केतु लग्न में हो और सप्तम से लग्न के मध्य सूर्य-चंद्र- मंगल-बुध, गुरु, शुक्र, शनि श्ोष सभी ग्रह हो तो तक्षक काल सर्प योग होता है।कालसर्प योग की शास्त्रीय परिभाषा में इस प्रकार का अनुदित योग परिगणित नहीं है। लेकिन व्यवहार में इस प्रकार के योग का भी संबंधित जातकों पर अशुभ प्रभाव पड़ता देखा जाता है। इसके परिणाम स्वरूप जातक के शत्रुओं क प्रबलता परेशान करती है। गुप्तांग सम्बन्धित रोग जीवन भर परेशान करते हैं। जातक को पुत्र का अभाव रहता है, जबकि कन्या से मानसिकता नहीं मिलती है। स्त्री सुख में कमी रहती है। जातक परस्त्रीगामी हो सकता है। जीवन में भारी उथल-पुथल रहती है। संघर्षमय जीवन रहता है। पैतृक सम्पत्ति या तो दान देता है या फिर नष्ट हो जाती है।गुप्त प्रसंगों में भी उन्हें धोखा खाना पड़ता है। संतानहीनता अथवा संतान से मिलने वाली पीड़ा उसे निरंतर क्लेश देती रहती है। साझेदारी में उसे नुकसान होता है। यदि जातक नि:स्वार्थ समाजसेवा में लगा रहे और दूसरों को नीचा दिखाना छोड़ दे तो जातक को समस्याएं कम होती है।
संक्ष्ोप में प्रभाव जानिए, दूसरों को दिया हुआ पैसा डूबने का खतरा रहता है। भागीदारी के कारोबार में सफलता नहीं मिलती है। शत्रु अधिक होते हैं।
जानिए, निराकरण के उपाय –
1- सरसों, देवदारु और लोहवान तीनों को उबालकर एक बार स्नान कीजिए। लाभकारी होगा।
2- कालसर्प दोष निवारण यंत्र घर में स्थापित कीजिए और इसका नियमित पूजन कीजिए। निश्चित लाभ होगा।
3- सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं, लाभकारी रहेगा।
4- किसी भी शुभ मुहूर्त में बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित कीजिए और उसके बाद लगातार पांच मंगलवार को व्रत रखते हुए भगवान श्री राम भक्त हनुमान जी की प्रतिमा में चमेली में घुला सिदूर अर्पित कीजिए। बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद वितरित कीजिए। अंतिम व पांचवें मंगलवार को सवा पांव सिदूर, सवा हाथ लाल वस्त्र, सवा किलो बताशा और बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद बांटिये। जातक को इसका लाभ मिलेगा।
6- महामृत्युंजय के मंत्र का जप करें। इस विषय में किसी विद्बान ब्राह्मण से परामर्श आवश्य कर लेना चाहिए।
8- कर्कोटक कालसर्प योग –
जब केतु द्बिेतीय व राहु अष्टम या राहु द्बितीय व केतु अष्टम भाव में हो ककोटक कालसर्प योग होता है। इसके परिणाम स्वरूप जातक का अपने जीवन में भाग्योदय नहीं होता है, अगर होता भी है तो बहुत ही विलम्ब से होता है। इसमें भी बहुत सी बाधाएं आती है। सच्चे मित्रों का अभाव जातक का सदा ही रहता है। स्वास्थ्य कष्ट व अकाल मृत्यु हो सकती है। पैतृक सम्पत्ति से विरत रहता है। व्यापार में उतार चढ़ाव रहते हैं। नौकरी अक्सर नहीं मिलती है, मिलती भी है तो सामान्य नौकरी में पदोन्नति नहीं होती है। परिस्थितिवश निकाल भी दिए जाते हैं। नौकरी मिलने व पदोन्नति होने में भी कठिनाइयां आती हैं। कभी-कभी तो उन्हें बड़े ओहदे से छोटे ओहदे पर काम करनेका भी दंड भुगतना पड़ता है।
संक्ष्ोप में प्रभाव जानिए, जातक के भाग्योदय में बहुत ही कठिनाई होती है। शस्त्राघात की आशंका बनी रहती है। पैतृक सम्पत्ति में भी मनोकूल हक नहीं मिलता है। अकाल मृत्यु की आशंका रहती है।
जानिए, निराकरण के उपाय –
1- किसी सूख्ो नारियल के फल को किसी शुभ मुहूर्त में बहते पानी में तीन बार प्रवाहित करें।
2-शनिवार के दिन बहते पानी में किसी भी शुभमुहूर्त में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।
3- हनुमान जी का पूजन अर्चन नियमित रूप से करना चाहिए। हनुमान चालीसा का पाठ 1०8 बार करने से जातक को लाभ होता है। अधिक लाभ पाने के लिए पांच मंगलवार का व्रत करें। पूजन करें। हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।
4- हो सके तो लाल रंग के चद्दर, कपड़े व तकिये का प्रयोग करें। विश्ोष तौर पर जिस कमरे में आप सोते हैं, वहां तो ऐसा करना ही चाहिए।
5- काल सर्प दोष निवारण यंत्र घर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करना चाहिए। इससे दोष की शांति होती है।
6- शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दीजिए और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दीजिये। यदि ऐसा करना संभव नहीं हो तो पीपल की जड़ में अर्पित कर दीजिए।
7- जौ के दाने पक्षियों को सवा महीन तक खिलाएं और हर शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें।
8- महामृत्यंजय का जप अति उत्तम माना जाता है। भगवान शंकर के श्री चरणों में पूर्ण आस्था रखकर महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से जातक को राहत मिलती है। महामृत्युंजय मंत्र के जप के विधान को किसी विद्बान ब्राह्मण से समझकर किया जाये तो श्रेयस्कर होता है। मान्यता है कि भगवान शंकर जिस पर प्रसन्न हो जाते हैं, उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ता है। यह महामृत्युंजय महामंत्र भगवान शंकर को प्रसन्न करने वाला अति प्रभावी मंत्र है।
9- शंखनाद कालसर्प योग-
जब राहु नवम भाव में और केतु तृतीय भाव में हो और श्ोष ग्रह इनके मध्य हो तो शंखनाद कालसर्प योग बनता है। इसके परिणाम स्वरूप जातक के गृहस्थ सुख में बाधा और भोग में अतृप्ति रहती है। जातक को भाग्यहीन व दुर्भाग्यशाली कहा जा सकता है। राज्य पक्ष से प्रतिकूलता, मानहानि, अपमान, अवनति होना संभव है। पितृसुख में कमी औश्र कार्य व्यापार में कमी, कम लाभ और बार-बार हानि का सामना करना पड़ता है। अथक परिश्रम करने के बाद भी स्थिति नहीं संभाल पाता है। उसमें अत्यधिक आत्मविश्वास होता है। इसी कारण उसे अधिकांश समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वैवाहिक जीवन भी अधिकांशत: वैमनस्यता की भ्ोंट चढ़ जाता है। उसे जीवन के हर चीज व पड़ाव पर संघर्ष करना पड़ता है।
यदि जातक धर्म की राह को अपना लेता है और आपसी रिश्तों में प्रेम का भाव रखता है तो उसके संकट नगण्य रह जाते है।
संक्ष्ोप में प्रभाव जानिए, माता पिता की विरह का जातक को सामना करना पड़ता है। जीवन में भाग्य जातक का साथ नहीं देता है। आर्थिक पक्ष कमजोर रहता है।
जानिए, निराकरण के उपाय –
1- इस दोष से प्रभावित जातक को महामृत्युंजय यानी भगवान भोलेनाथ की शरण में रहना चाहिए। उनकी कृपा से जातक के कष्टों का निवारण होता है। जातक को महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करना चाहिए।
2- श्रावण माह के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करे तो जातक का कल्याण ही होगा।
3- यह बहुत ही आसान प्रयोग हम आपको बता रहे हैं, इसका प्रयोग कर आप सहज ही राहत पा सकते हैं। इसके लिए अष्टधातु या अष्टधातु का नाग बनवाकर उसकी अंगूठी हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण कीजिए। साथ ही किसी शुभ मुहुर्त में अपने मकान के मुख्य दरवाजे पर चांदी का स्वस्तिक व दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दीजिए। जातक को भगवान शंकर के प्रति पूर्ण आस्था रखकर यह प्रयोग करना चाहिए। इससे पूर्व भगवान गणपति को जरूर नमन करें।
4- जातक को किसी माह के पहले शनिवार से शनिवार का व्रत इस योग की शांति का संकल्प लेकर शुरू करना चाहिए और उसे निरंतर 86 शनिवारों का व्रत रखना चाहिए। व्रत के दौरान जातक काला वस्त्रा धारण करें और श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें, राहु बीज मंत्र की तीन माला जप करें। जप के बाद एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में रेवड़ी, मीठी रोटी, मीठा चूरमा, तिलकूट आदि मीठे पदार्थों का प्रयोग करें। इसके पहले इन्हीं सब वस्तुओं का दान भी करें और रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दीजिए।
1०- घातक कालसर्प योग-
जब राहु दशम व केतु चतुर्थ भाव में हो और अन्य सभी ग्रह इनके मध्य हों तो घातक कालसर्प योग होता है। इस योग से प्रभावित जातक सदैव ही गुप्त शत्रुओं से पीड़ित रहता है। शरीर सुख की कमी और स्वास्थ्य प्राय: बिगड़ा ही रहता है। लड़ाई-झगड़ों और कोर्ट कचहरी में जातक की अक्सर हार ही होती है। जातक कदम-कदम पर अपनों से बदनाम होता है, लेकिन मृत्युपरांत इसका नाम होता है। यश की प्राप्ति होती है। जातक की बायीं आंख का जीवन में आपरेशन होता है। वैवाहिक जीवन कम ही सुखमय होता है। पिता का विछोह भी जातक को झेलना पड़ता है। जातक अगर अशुभ कर्म और आचरण का त्याग कर दे तो जातक को किसी चीज की कमी नहीं रहती है। व्यवसाय व धन की कोई कमी नहीं होती है। सामाजिक प्रतिष्ठा उसे जरूर मिलती है साथ ही राजनैतिक क्षेत्रा में बहुत सफलता प्राप्त करता है।
संक्ष्ोप में प्रभाव जानिए, माता-पिता का अल्प सुख ही प्राप्त होता है। व्यापार में बाधाएं आती हैं। तमाम तरह की कठिनाइयों का जातक को सामना करना पड़ता है। संतान से भी कष्ट ही मिलता है।
जानिए, निराकरण के उपाय –
1- जातक को शनिवार का व्रत रखना चाहिए।
2- शनिदेव का पूजन करें और तेल से उनका अभिष्ोक करें। लहसुनियां,लोहा, तिल, सप्तधान्य, तेल, काला वस्त्रा, सुवर्ण, छिलके सहित सूखा नारियल, कंबल आदि का समय-समय पर दान करने से लाभ प्राप्त होता है।
3- हनुमान जी के पूजन से भी लाभ प्राप्त होता है। हनुमान की कृपा हनुमान चालीसा के पाठ से बहुत जल्द मिल जाती है, इसलिए हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। हो सके तो मंगलवार का व्रत कीजिए। हनुमान जी को चमेली के तेल में सिदूर घुलाकर चढ़ाएं और बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं।
4- भगवान भोलेनाथ का पूजन-अर्चन करें। सोमवार के दिन व्रत रखें, भगवान शिव के मंदिर में चांदी के नाग की पूजा कर अपने पितरों का स्मरण कीजिए और उस नाग को बहते जल में श्रध्दापूर्वक विसर्जित कर देना चाहिए।
11- विषधार कालसर्प योग-
केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो और इनके मध्य में सभी ग्रह आ जाए तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं। इस योग के प्रभावित जातकों की पढ़ाई-लिखाई वैसे तो ठीक होती है, लेकिन आंशिक रूप से व्यवधान उपस्थित होते हैं। हां, उच्च शिक्षा मे बाधा जरूर रहती है। स्मरण शक्ति की कमी आती है। बड़े भाई से मतभ्ोद रहते है। विवाद हाने की आशंका होती है। चाचा, चचेरे भाइयों से यदा-कदा मतभ्ोद रहता है। अपने जन्म स्थल से अक्सर दूर ही निवास करना पड़ता है। अगर ऐसा नहीं तो वह अक्सर भ्रमणशील ही रहता है। जातक के लाभ मार्ग में रुकावटे आती है। जीवन में संघर्ष रहता है, लेकिन अंतत: जीवन में स्थायित्व आ जाता है। संतति पक्ष से थोड़ी बहुत परेशानी रहती है। जातक को शारीरिक बीमारियां भी रहती है। जातक का अंत भी रहस्य होना देखा गया है। दादा-दादी व नाना-नानी से जातक को फायदा तो होता है, लेकिन थोड़ा बहुत नुकसान भी उठाना पड़ता है।
संक्ष्ोप में प्रभाव जानिए, नींद की समस्या रहती है, रहस्यमयी या दुर्घटना में मौत की आशंका रहती है। नेत्र व हृदय रोग की आशंका भी रहती है।
जानिए, निराकरण के उपाय –
1- भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप नियमित रूप से करने से लाभ होता है, लेकिन मंत्र के विधि-विधान के संबंध में किसी योग्य व विद्बान ब्राह्मण से चर्चा कर मंत्र का उसके मार्गदर्शन में जप करें तो उत्तम रहता है।
2- सवा माह तक पक्षियों को जौ के दाने खिलाने से जातक को राहत मिलती है। कष्ट कम होते है।
3- श्रावण मास में 3० दिनों तक भगवान शिव का अभिषेक करें। नित्य पूजन करने से लाभ होता है।
4-हर सोमवार को दही से भगवान शंकर पर ओम हर हर महादेव…. कहते हुए अभिषेक करना चाहिए। श्रावमण महीने में ऐसा प्रतिदिन करना चाहिए। इससे जातक को आराम मिलता है। भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
5- सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा कीजिए, पितरों का स्मरण करना चाहिए और पूर्ण श्रध्दा व विश्वास के साथ बहते पानी या समुद्र में नागदेवता का विसर्जन करना चाहिए।
6- देवदारु, सरसों तथा लोहवान – इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से सवा माह तक स्नान करें।
12- शेषनाग कालसर्प योग-
केतु छठे और राहु बारहवे भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह रहते हैं तो शेषनाग कालसर्प योग बनता है। शास्त्रोक्त परिभाषा के दायरे में यह योग परिगणित नहीं है, लेकिन व्यवहार में लोग इस योग संबंधी बाधाओं से पीड़ित अवश्य देखे जाते हैं। इस योग से पीड़ित जातकों की मनोकामनाएं विलंब से ही पूरी होती हैं। जिस स्थान पर जातक का जन्म होता है, वहां से उसे दूर ही जाना होता है। उससे शत्रुता रखने वालों की कमी नहीं होती है। वाद विवाद में वह अक्सर फसा रहता है। जिससे समाज में उसे अक्सर बदनामी का सामना भी करना पड़ता है। मन उसका हमेशा ही विचलित रहता है। उलट-पुलट हरकतें करता है। उसे रहस्य की दृष्टि से सदैव ही देखा जाता है। आर्थिक दृष्टि से उसका जीवन असंतुलित रहता है, जिसकी वजह से देनदारी बनी रहती है। उसके जीवन में अच्छा समय भी आता है। प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। मृत्यु के बाद ख्याति भी होती है।
संक्ष्ोप में प्रभाव जानिए, लड़ाई झगड़े में हार का सामना करना पड़ता है। गुप्त शत्रु भी बहुत होते हैं। मृत्यु के बाद ख्याति होती है।
जानिए, निराकरण के उपाय –
1- हनुमत कृपा से जातक को बहुत लाभ होता है। इसलिए जातक को हनुमान जी कृपा प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। हनुमान चालीसा का 1०8 बार पाठ करना चाहिए। हर मंगलवार हनुमान जी की प्रतिमा पर लाल वस्त्र, चमेली का तेल, सिदूर और बताशा चढ़ाना चाहिए।
2- किसी शुभ मुहूर्त में ओम नम: शिवाय’ की 11 माला जाप करने के बाद शिवलिग का गाय केदूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्र आदि सामग्रियां श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प विधिवत पूजन के बाद शिवलिग पर समर्पित करें। हो सके तो महामृत्युंजय के मंत्र का जप करें, लेकिन इसके विधि-विधान के सम्बन्ध में किसी विद्बान ब्राह्मण से जानकारी प्राप्त कर लें।
3- किसी भी शुभ मुहूर्त में मुख्य द्बार पर चांदी का स्वास्तिक व उसके दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका देना चाहिए। शांति प्राप्त होगी। ग्रह अनुकूल होंगे।
4- किसी शुभ मुहूर्त में मूसर का दान करनाचाहिए। मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान कीजिए।
5- सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाने के बाद ही कोई काम प्रारंभ करें।
6- काल सर्प दोष निवारण यंत्र घर में स्थापित कीजिए। इसके लिए विधिविधान का ध्यान रख्ों। उसकी नित्य प्रति पूजा कीजिए और भोजनालय में ही बैठकर भोजन करना चाहिए।
7- शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्र अभिमंत्रित कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लाने चाहिए। इससे जातक को आराम मिलता है।