वेद स्वाध्याय: सामवेद मंत्र 982 में भौतिक अग्नि के वर्णन द्वारा परमात्मा की महिमा का प्रकाशन है। मंत्र निम्न है।
तव श्रियो वर्ष्यस्येव विद्युतोsग्नेश्चिकित्र उषसामिवेतय:।
यदोषधीरभिसृष्टो वनानि स्वयं चिनुषे अन्न मासनि।।
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मंत्र का पदार्थ सामवेद भाष्यकार वेदमूर्ति आचार्य (डॉ०) रामनाथ वेदालंकार जी रचित:- हे भौतिक अग्नि! तेरी शोभाएं बरसाऊ मेघ की बिजलियों के समान, और उषाओं के आगमनों के समान ज्ञात होती हैं, जब औषधियों को और जंगलों को लक्ष्य करके प्रज्वलित हुआ तू अपने आप अपने ज्वालारूप मुख में खाद्य को चारों ओर से संग्रहित करता है। (यहां मंत्र में उपमा अलंकार है।)
भावार्थ:– जगदीश्वर की ही यह प्रशस्ति है कि उसने भयंकर ज्वालाओ से जटिल उस देदीप्यमान अग्नि को उत्पन्न किया है जो जंगलों को भस्म कर नवीन वनस्पतियों को अंकुरित करने में सहायक होता है।
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