हम स्वस्थ जीवन कौन सा आचरण, आहार-विहार और जीवन पद्धति अपनाकर बना सकते हैं। इसके बारे में चरक संहिता में विस्तार से बताया गया है। चरक संहिता में स्वस्थ जीवन के विविध पहलुओं के बारे में हमें बताया गया है। आइये, चरक संहिता के इस मंत्र से हम जीवन को स्वस्थ्य रहने के पहलुओं के बारे में जानते हैं, जोकि नि:संदेह मानवजीवन के लिए हितकारी है।
नरो हिताहारविहारसेवी समीक्ष्यकारी विषयेवसक्त:।
दाता सम: सत्यपर: क्षमावानाप्तोपसेवी च भवत्यरोग:।।
मतिर्वच: कर्म सुखानुबन्धं सत्त्वं विध्ोयं विशदा च बुद्धि।
ज्ञानं तपस्तत्परता च योगे यस्यास्ति तं नानुपतन्ति रोगा:।।
भावार्थ- हितकारी आहार और विहार का सेवन करने वाला, विचारपूर्वक काम करने वाला, काम-क्रोधादि विषयों में आसक्त न रहने वाला, सभी प्राणियों पर समदृष्टि रखने वाला, सत्य बोलने में तत्पर रहने वाला, सहनशील और आप्तपुररुषों की सेवा करने वाला मनुष्य अरोग यानी रहित रहता है। सुख देने वाली मति, सुखकारक वचन और सुखकारक कर्म, अपने अधीन मन और शुद्ध पापरहित बुद्धि जिसके पास है और जो ज्ञान प्राप्त करने, तपस्या करने और योग सिद्ध करने में तत्पर रहता है, उसे शारीरिक और मानसिक कोई रोग नहीं होते अर्थात वह सदा स्वस्थ और दीर्घायु बना रहता है।