मैं आपको महाभारत के अनुशासन पर्व की कथा सुनाता हूं। जो कि जीवन के सत्य को सटीक तरह से बखानती है। प्राचीन काल की बात है, एक गौतमी नाम की वृद्धा ब्राह्मणी थी। उसके एकमात्र पुत्र को सर्प ने काट लिया। जिससे उसकी मृत्यु हो गई। वहां पर अर्जुनक नामक एक व्याध इस घटना को देख रहा था। उस व्याध ने फंदे में सर्प को बांध लिया और उस ब्राह्मणी के पास ले आया। ब्राह्मणी गौतमी से पूछा कि हे देवी, तुम्हारे पुत्र के हत्यारे इस सर्प को अग्नि में डाल दूं या काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दूं। इस ब्राह्मणी गौतमी बोली कि हे अर्जुनक, तुम इस सर्प को छोड़ दो, इसे मारने से मेरा पुत्र तो जीवित होने से रहा और इसके जीवित रहने से मेरी कोई हानि भी नहीं है। व्यर्थ में पाप लेना बुद्धिमानी नहीं है।
व्याध ने कहा कि देवी वृद्ध मनुष्य स्वभाव से दयालु होते हैं, लेकिन तुम्हारा उपदेश शोकहीन मनुष्यों के लिए है। इस दुष्ट सर्प को मार डालने की तुम मुझे तत्काल आज्ञा दो।
व्याध ने बार-बार सर्प को मार डालने का आग्रह किया, लेेेकिन ब्राह्मणी ने उसकी बात नहीं मानी। इसी समय रस्सी में बंधा सर्प मनुष्य के स्वर में बोला कि हे व्याध, मेरा तो कोई अपराध नहीं है। मैं तो पराधीन हूं, मृत्यु की पे्ररणा से मैंने बालक को काटा है। अर्जुनक पर सर्प की बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह क्रोध से बोला कि हे दुष्ट सर्प, तू मनुष्य की भाषा बोल सकता है, यह सोचकर मैं डरुंगा नहीं, मैं तुझे मार ही डालूंगा। तूने पाप स्वयं किया या किसी के कहने पर लेकिन पाप तो तूने ही किया है। सर्प ने अपने प्राण बचाने की बहुत चेष्ठा की लेकिन व्याध को तरह-तरह से समझाने का प्रयास किया कि किसी अपराध को करने पर भी दूत, सेवक और शस्त्र अपराधी नहीं माने जाते हैं। उनको उस अपराध लगाने वाले ही अपराधी माने जाते हैं, इसलिए अपराधी मृत्यु को ही मानना चाहिए। सर्प के यह कहने पर वहां शरीरधारी मृत्यु देवता उपस्थित हो गए। उसने कहा कि सर्प, तुम मुझ्ो क्यों अपराधी बताते हो, मैं तो काल के वश में हूं। सम्पूर्ण लोकों के नियन्ता काल भगवान जैसा चाहते हैं, वैसा ही मैं करता हूं।
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वहां पर काल भी आ गए। उसने का कि हे व्याध, बालक की मृत्यु में न सर्प का दोष है, न मृत्यु का और न मेरा। जीव अपने कर्मो के वश में है। कर्मों के अनुसार ही वह जन्मता और मृत्यु को प्राप्त करता है। सुख- दुख पाता है। हम लोग तो उसके कर्म का फल ही उसको मिले, ऐसा विधान करते हैं। यह बालक अपने पूर्व जन्म के ही कर्मदोष से अकाल में मृत्यु को प्राप्त हुआ। काल की यह बात सुनकर ब्राह्मणी गौतमी का पुत्र शोक दूर हो गया। उसने व्याध को कहकर बंधन में जकड़े सर्प को छुड़वा दिया।
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