इतिहास लेखन में साक्ष्य आधारित दृष्टिकोण जरूरी: थापर

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नई दिल्ली, इतिहासकार रोमिला थापर ने इतिहास लिखते वक्त पेशेवर और साक्ष्य आधारित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा है इतिहास लेखन धर्म के आधार पर उत्पीडऩ के बारे में अप्रशिक्षित इतिहासकारों द्वारा नहीं किया जाना चाहिए। थापर ने शनिवार को यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ऑवर हिस्ट्री, योअर हिस्ट्री, हूज हिस्ट्री विषय पर एक वार्षिक व्याख्यान देते हुए राष्ट्रवाद के साथ इतिहास के संबंध पर ध्यान केंद्रित किया और उत्पीडऩ के नजरिए को नकारने के लिए विभिन्न ऐतिहासिक साक्ष्यों का हवाला दिया।उन्होंने तर्क दिया कि पहले के दिनों में कोई लव जिहाद नहीं था और राजनीति के अलावा, वैवाहिक गठजोड़ का उद्देश्य सामाजिक मेल मिलाप को मजबूत करना था।

लव जिहाद शब्द का इस्तेमाल अक्सर दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं द्वारा मुस्लिम पुरुषों पर शादी का झांसा देकर हिंदू महिलाओं का धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाने के लिए किया जाता है।थापर ने प्रख्यात ब्रिटिश इतिहासकार एरिक हॉब्सबॉम को उद्धृत करते हुए अपना व्याख्यान शुरू किया कि राष्ट्रवाद के लिए इतिहास वैसा ही है, जैसे एक हेरोइन के आदी व्यक्ति के लिए अफीम है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद का लक्ष्य स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देखे गए सपने के अनुरूप एक राष्ट्र का निर्माण करना है, जहां नागरिक उपनिवेशवाद से मुक्त हों।

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थापर ने दलील दी कि पृथक राष्ट्रवाद का उद्देश्य उस समूह को प्राथमिक दर्जा देना है जो बहुमत में आता है और प्राचीन इतिहास से संबंध का दावा करके इसे वैध ठहराया जाता है। यह पेशेवर इतिहासकारों और अप्रशिक्षित इतिहासकारों के बीच टकराव का कारण बनता है।उन्होंने कहा कि ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स मिल ने 1817 में इस देश का पहला आधुनिक इतिहास द हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया लिखा था – उनका कहना था कि भारतीय इतिहास दो राष्ट्रों का था , हिंदुओं और मुसलमानों का, एक दूसरे से पूरी तरह जुदा और एक दूसरे के साथ लगातार संघर्षरत। थापर ने कहा, भारतीय इतिहास को दो काल में विभक्त किया गया था- शुरुआती हिंदू काल, जब हिंदू धर्म शक्तिशाली था और उसके बाद इस्लामी शासकों के वर्चस्व का काल। इस कालक्रम ने भारतीय इतिहास की व्याख्या को गहरे तक प्रभावित किया, यद्यपि इसे अब पेशेवर इतिहासकारों द्वारा खारिज कर दिया गया है,।

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