भगवती दुर्गा के अष्टोत्तरशत शक्तिपीठ व दिव्य शक्तियां

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गवती दुर्गा के जिन 1०8 शक्तिपीठों का उल्लेख शास्त्रों में किया गया है, उसे जानते हैं, किस शास्त्र में और कितना उल्लेख है? इसे संक्ष्ोप में समझकर देवी भगवती के महात्म को जानने का प्रयास करते है। देवी भागवत में भगवती की 1०8 शक्तिपीठों का उल्लेख है, जिनके ध्यान मात्र से मनुष्य संकटों से मुक्त हो जाता है। इसके अलावा नामान्तर के साथ मत्स्यपुराण में देवी के अष्टोत्तर शत नाम का उल्लेख मिलता है।

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मंगलकारिणी पराम्बा जगतजननी भगवती दुर्गा काशी में विशालाक्षी के रूप में, नैमिषारण्य में लिंगधारिणी के रूप में, प्रयाग में ललिता नाम से, गंधमादनपर्वत पर कामाक्षीरूप से, मानसरोवर में कुमुदा नाम से तथा अम्बर (आमेर) में विश्वकाया नाम से प्रसिद्घ हैं।

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वे गोमन्तपर्वत पर गोमती नाम से,मन्दराचल पर कामचारिणी, चैत्ररथवन में मदोत्कटा, हस्तिनापुर में जयंती, कान्यकुब्ज में गौरी, मलयाचलपर रम्भा, एकाम्रकक्षेत्र में कीर्तिमती, विश्व में विश्वेश्वरी, पुष्कर में पुरुहूता, केदार में मार्गदायिनी, हिमाचलपर्वत के पृष्ठïभाग में नन्दा, गोकर्ण में भद्रकर्णिका, स्थानेश्वर में भवानी, बिल्वकमें बिल्वपत्रिका, श्रीशैलपर माधवी, भद्रेश्वर में भद्रा, वराहशैलपर जया तथा कमलालय (तिरुवारूर) में कमला नाम से प्रसिद्घ है। वे रुद्रकोटि में रुद्राणी नाम से, कालञ्जर पर्वत पर काली, महालिंग में कपिला, मर्कोट में मुकुटेश्वरी, शालग्राम में महादेवी, शिवलिंग में जलप्रिया, मायापुरी (हरिद्वार) में कुमारी, संतानक्षेत्र में ललिता, सहस्त्राक्ष में उत्पलाक्षी, कमलाक्ष में महोत्पला, गंगातट पर मंगला, पुरुषोत्तमक्षेत्र में विमला, विपाशा (व्यासनदी) के तटपर अमोघाक्षी, पुण्ड्रवर्धन में पाटला, सुपाश्र्व में नारायणी, विकूट में भद्रसुन्दरी, विपुल में विपुलेश्वरी, मलयाचल पर कल्याणी, कोटितीर्थ में कोटवी, माधववन में सुगन्धा, कुब्जाम्रक (ऋषिकेश) में त्रिसंध्या, गंगाद्वार (हरिद्वार) में रातिप्रिया, शिवकुण्ड में सुनन्दा, देविकातट पर नन्दिनी, द्वारका में रुक्मिणी, वृन्दावन में राधा, मथुरा में देविका, पाताल में परमेश्वरी, चित्रकूट में सीता, विन्ध्याचलपर विन्ध्यवासिनी, सहाचलपर एकवीरा, हरिश्चन्द्रपर चन्द्रिका, रामतीर्थ में रमणा, यमुनातट पर मृगावती, करवीर (कोल्हापुर) में महालक्ष्मी, विनायकक्षेत्र में उमादेवी, वैद्यनाथ में अरोगा, महाकल में महेश्वरी, उष्णतीर्थों में अभया, विन्ध्य-कन्दर में अमृता, माण्डव्य में माण्डवी, माहेश्वरपुर (माहिष्मती) में स्वाहा, छागलाण्ड में प्रचण्डा, मकरन्द में चण्डिका, सोमेश्वर में वरारोहा, प्रभास में पुष्करावती, सरस्वती समुद्र संगम पर देवमाता, महालय में महाभागा, पयोष्णीतट पर पिंगलेश्वरी, कृतशौच में सिंहिका, कार्तिकेय क्षेत्र में यशस्करी, उत्पलावर्त में लोला, शोण-गंग- संगम पर सुभद्रा, सिद्घपुर में माता लक्ष्मी, भरताश्रम में अंगना, जालंधर में विश्वमुखी, किष्किन्धापर्वत पर तारा, देवदारुवन में पुष्टि, काश्मीर-मंडल में मेधा, हिमाद्रि में भीमादेवी, विश्वेश्वर में पुष्टि, कपालमोचन में शुद्घि, कायावरोहण में माता, शंखोध्दार में ध्वनि, पिण्डारक में धृति, चन्द्रभागातटपर काला, अच्छोद में शिवकारिणी, वेणातट पर अमृता, बदरीवन में उर्वशी, उत्तरकुरुमें औषधी, कुशद्वीप में कुशोदका, हेमकूटपर्वत पर मन्मथा, मुकुट में सत्यवादिनी, अश्वत्थ (पीपल) में वन्दनीया, वैश्रवणालय (अलकापुरी) में निधि, वेदवदन में गायत्री, शिव के सांनिध्य में पार्वती, देवलोक में इन्द्राणी, ब्रह्मïा के मुखों में सरस्वती, सूर्य-बिम्ब में प्रभा, मातृकाओं में वैष्णवी, सतियों में अरुन्धती, रमणियों में तिलोत्तमा तथा चित्त में सभी देहधारियों की शक्ति रूप में विराजमान ब्रह्मïकला हैं। यहां संक्षेप में भगवती के 108 नाम कहे गये हैं और साथ ही 108 तीर्थों का निर्देश है। जो इन्हें पढ़ता या सुनता है, वह सब पापों से छूट जाता है। इन तीर्थों में स्नान करके जो मेरा दर्शन करता है, वह सभी पापों से सर्वथा नि:शेषरूप में मुक्त होकर कल्पपर्यन्त शिवलोक में वास करता है।

देवीभागवत में वर्णित अष्टोत्तरशत नाम-

वाराणस्यां विशाललाक्षी नैमिषे लिङ्गïधारिणी।
प्रयागे ललिता देवी कामाक्षी गन्धमादने।।
मानसे कुमुदा नाम विश्वकाया तथाम्बरे।
गोमन्ते गोमती नाम मंदरे कामचारिणी॥
मदोत्कटा चैत्ररथे जयंती हस्तिनापुरे।
कान्यकुब्जे तथा गौरी रम्भा मलयपर्वते॥
एकाम्रके कीर्तिमती विश्वे विश्वेश्वरीं विदु:।
पुष्करे पुरुहूतेति केदारे मार्गदायिनी।।
नन्दा हिमवत: पृष्ठïे गोकर्णे भद्रकर्णिका।
स्थानेश्वरे भवानी तु बिल्वके बिल्वपत्रिका।।
श्रीशैले माधवी नाम भद्रा भद्रेश्वरे तथा।
जया वराहशैले तु कमला कमलालये।।
रुद्रकोट्यां च रुद्राणी काली कालञ्जरे गिरौ।
महालिङ्गïे तु कपिला मर्कोटे मुकुटेश्वरी।।
शालग्रामे महादेवी शिवलिङ्गïे जलप्रिया।
मायापुर्यां कुमारी तु संताने ललिता तथा॥
उत्पलाक्षी सहस्त्राक्षे कमलाक्षे महोत्पला।
गङ्गïायां मङ्गïला नाम विमला पुरुषोत्तमे।।
विपाशायाममोघाक्षी पाटला पुण्ड्रवर्धने।
नारायणी सुपाश्र्वे तु विकूटे भद्रसुन्दरी।।
विपुले विपुला नाम कल्याणी मलयाचले।
कोटवी कोटितीर्थें तु सुगन्धा माधवे वने॥
कुब्जाम्रके त्रिसंध्या तु गङ्गद्वारे रतिप्रिया।
शिवकुण्डे सुनन्दा तु नन्दिनी देविकातटे॥
रुक्मिणी द्वारवत्यां तु राधा वृन्दावने वने।
देविका मथुरायां तु पाताले परमेश्वरी॥
चित्रकूटे तथा सीता विन्ध्ये विन्ध्याधिवासिनी।
सहाद्रावेकवीरा तु हरिश्चन्द्रे तु चन्द्रिका॥
रमणा रामतीर्थें तु यमुनायां मृगावती।
करवीरे महालक्ष्मीरुमादेवी विनायके।।
अरोगा वैद्यनाथे तु महाकाले महेश्वरी।
अभयेत्युष्णतीर्थेषु चामृता विन्ध्यकन्दरे।।
माण्डव्ये माण्डवी नाम स्वाहा माहेश्वरे पुरे।
छागलाण्डे प्रचण्डा तु चण्डिका मकरन्दके॥
सोमेश्वरे वरारोहा प्रभासे पुष्करावती।
देवमाता सरस्वत्यां पारावारतटे मता।।
महालये महाभागा पयोष्ण्यां पिङ्गïलेश्वरी।
सिंहिका कृतशौचे तु कार्तिकेये यशस्करी।।
उत्पलावर्तके लोला सुभद्रा शोणसङ्गïमे।
माता सिद्घपुरे लक्ष्मीरङ्गïना भरताश्रमे।।
जालन्धरे विश्वमुखी तारा किष्किन्धपर्वते।
देवदारुवने पुष्टिïर्मेधा काश्मीरमण्डले।।
भीमा देवी हिमाद्रौ तु पुष्टिïर्विश्वेश्वरे तथा।
कपालमोचने शुद्घिर्माता कायावरोहणे॥
शङ्खïोद्घारे ध्वनिर्नाम धृति: पिण्डार के तथा।
काला तु चन्द्रभागायामच्छोदे शिवकारिणी।।
वेणायाममृता नाम बदर्यामुर्वशी तथा।
औषधी चोत्तरकुरौ कुशद्वीपे कुशोदका।।
मन्मथा हेमकूटे तु मुकुटे सत्यवादिनी।
अश्वत्थे वन्दनीया तु निधिर्वैश्रवणालये।।
गायत्री वेदवदने पार्वती शिवसंनिधौ।
देवलोके तथेन्द्राणी ब्रह्मïास्येषु सरस्वती।।
सूर्यबिम्बे प्रभा नाम मातृणां वैष्णवी मता।
अरुन्धती सतीनां तु रामासु च तिलोत्तमा।।
चित्ते ब्रह्मïकला नाम शक्ति: सर्वशरीरिणाम।
एतदुद्देशत: प्रोक्तं नामाष्टïशतमुत्तमम।।
अष्टïोत्तरं च तीर्थानां शतमेतदुदाह्तम।
य: पठेच्छृणुयाद वापि सर्वपापै: पमुच्यते।।
एषु तीर्थेषु य: कृत्वा स्नानं पश्यति मां नर:।
सर्वपापविनिर्मुक्त: कल्पं शिवपुरे वसेत।।

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