हरसिद्धि मंदिर उज्जैन देवी अन्नपूर्णा को समर्पित है, यहाँ मूर्ति गहरे सिंदूर रंग की है। देवी अन्नपूर्णा की प्रतिमा देवी महालक्ष्मी और देवी सरस्वती की मूर्तिओं के बीच स्थित है। श्रीयंत्र शक्ति की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। श्रीयंत्र भी यहां प्रतिष्ठित है। उज्जैन में रुद्रसागर या रुद्रसरोवर के पास हरसिद्धि माता का मंदिर है। इसे शक्तिपीठ माना जाता है। यहां देवी की कुहनी गिरी थी, इसलिए उसी की यहां पूजा होती है। यहां की शक्ति मंगलचंडिका ओर भैरव मंगल्यकपिलाम्बर है। यह मंदिर चाहरदीवारी से घिर हुआ है। यहां पर मंदिर में मुख्य पीठ पर प्रतिमा के स्थान श्रीयंत्र विराजमान हैं। उनके पीछे भगवती अन्नपूर्णा की प्रतिमा है। मंदिर के गर्भगृह में वर्तमान में हरसिद्धि माता की मूर्ति की पूजा होती है। मंदिर में महाकालिका, महालक्ष्मी, महासरस्वती और महामाया की मूर्तियां भी है। हरसिद्धि देवी का एक मंदिर द्बारका सौराष्ट्र में भी हे। दोनों स्थानों पर देवी की प्रतिमाएं एक जैसी ही है। एक किंवदन्ती के अनुसार महाराजा विक्रमादित्य वहीं से देवी को अपनी आराधना से संतुष्ट कर लाए थे। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस मंदिरों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। राणोजी शिंदे के मंत्री रामचंद्रबाबा शेवणी ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। ये देवी वैष्णवी है। आइये, अब आते हैं, हरसिद्ध मंदिर उज्जैन देवी की ओर, जो सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है। भक्त पर कृपा बरसाती है। माता हरसिद्घि सकल सिद्घि की दात्री हैं। शुद्घ मन और भक्तिभावना से की गयी प्रार्थना माता अवश्य स्वीकार करती हैं। भक्तजन उनका नामस्मरण करते हैं, जिससे जीवन का मार्ग सुगम बन जाता है।
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‘स्कन्दपुराण’ में एक कथा का उल्लेख है कि कैलास पर्वत पर चण्ड-प्रचण्ड नाम के दो असुरों ने जब प्रवेश करने की अनधिकार चेष्टा की, तब नन्दी ने उन्हें रोका। क्रोधित असुरों ने नन्दी महाराज को घायल कर दिया। भगवान शिव ने जब उनका यह आसुरी-कृत्य देखा तो भगवती चण्डी का स्मरण किया, देवी प्रकट हुईं और शिवजी ने चण्ड-प्रचण्ड का वध करने का उन्हें आदेश दिया। चण्डी ने क्षणमात्र में ही उन दोनों असुरों का संहार कर दिया, महादेव प्रसन्न हुए और बोले-
‘हे चण्डि तुमने इन दुष्ट दानवों का वध किया है इसलिए सभी लोकों में तुम्हारा ‘हरसिद्धि’ नाम प्रसिद्ध होगा।’
बृहत्तर देवभूमि भारत में 51 शक्तिपीठ हैं। उज्जैन में माता हरसिद्धि मंदिर सती की कोहनी के पतनस्थल पर विद्यमान है। यहाँ की शक्ति मांगल्य चण्डिका का और भैरव मांगल्य कपिलाम्बर हैं-
उज्जयिन्यां कूर्परं च माङ्गïल्यकपिलाम्बर:।
भैरव: सिद्घद: साक्षाद देवी मङ्गïलचण्डिका।।
हरसिद्धि मंदिर कमल-पुष्पों से सुशोभित रुद्रसागर से लगा हुआ है, समीप ही ज्योतिर्लिंग श्रीमहाकालेश्वर मंदिर है। माँ का मंदिर माराठाकालीन है। पूर्वाभिमुख श्री मंदिर की शोभा अवर्णनीय है। विशाल परकोटा, चार द्वार, दो दीपस्तम्भ, प्राचीन जलाशय (बावड़ी) जिसके द्वार स्तम्भ पर संवत 1447 अंकित है।
चिंताहरणविनायक मंदिर, हनुमानमंदिर और 84 महादेवमंदिर में से एक श्रीकार्कोंटेश्वर महादेव मंदिर भी यहां स्थापित है। मंदिरपरिसर में आदिशक्ति महामाया का मंदिर है, जहाँ अखण्डज्योति जलती रहती है।
सर्वकामार्थसिद्घिता माँ हरिसिद्घि के आसपास महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी विराजमान हैं। मध्य में श्रीयंत्र प्रतिष्ठिïत है, ये ही देवी माँ हरसिद्घि हैं। श्रीयंत्र पर ही देवी माँ की मूरत गढ़ी गयी है, जिन्हें सिंदूर चढ़ाया जाता है। नवरात्रि आदि पर्वों पर स्वर्ण-रजत मुखौटा भी धराया जाता है। नित्य देवों के नव श्रृंगार होते हैं। प्रात: और सायंकालीन आरती के समय दर्शक दर्शन कर चित्त आह्लादित हो जाते हैं। हरसिद्धि माता की वेदी के नीचे की ओर भगवती भद्रकाली और भैरव की प्रतिमा हैं, जिन्हें सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता। मंदिर में पीठेश्वरी माता हरसिद्धि के अतिरिक्त महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती तीनों विराजित हैं।
‘नवम्यां पूजिता देवी हरसिद्घि हरप्रिया।
नवरात्र में 9 दिन माता जी की महापूजा होती है। दोनों दीपस्तम्भों पर दीपक जलाये जाते हैं जो दूर से आकाश में चमकते हुए सितारों-जैसे लगते हैं।
इतिहासप्रसिद्घ शकारि सम्राट विक्रमादित्य की देवी माँ सदा आराध्या रही हैं। मंदिर के दायीं ओर स्थित चित्रशाला में विक्रमादित्य और उनकी राज्यसभा के 9 रत्नों-वराहमिहिर वररुचि के सुंदर चित्र लगे हुए हैं।
इसी प्रकार श्री मंदिर के सभामंडप में नौ देवियों के चित्रों को बहुत खूबी के साथ चित्रित किया गया है। मंदिर की सीढिय़ाँ चढ़ते ही माँ के वाहन सिंह के दर्शन होते हैं।
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