भगवती दुर्गा अजन्मा होते हुए भी नित जन्म लेती हैं। जिस पर वे प्रसन्न होती है, उसके सभी संकटों को हर लेती हैं। भगवती दुर्गा के वैसे तो अनंत स्वरूप है, लेकिन नवरात्रि में भगवती के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना का विश्ोष विधान है। नवरात्रि में पूजन- अर्चन शुद्ध मन, वचन और कर्म के साथ करना चाहिए। उनका व्रत विधिविधान से करना ही श्रेयस्कर होता है। व्रत की विधि को जानकर प्रात: नित्य कर्म से निवृत हो स्नान कर मंदिर या घर पर ही नवरात्र में मां दुर्गा जी का ध्यान करके कथा करनी चाहिए। कन्याओं के लिए यह व्रत विशेष फलदायक है। आदि शक्ति की कृपा से सब विघ्न दूर हो जाते हैं और अतुल्य सुख समृद्धि की की प्राप्ति होती है। भगवती दुर्गा की कथा कुछ इस प्रकार है-
एक समय में बृहस्पति जी ब्रह्मा जी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ, चैत्र और अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है। इस वक्त व्रत करने का क्या फल होता है? इसे किस प्रकार करना उचित है? पहले इस व्रत को किसने किया?, सब विस्तार से कहिए। बृहस्पति देव का यह प्रश्न सुन ब्रह्मा जी बोले- प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है? जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। यह नवरात्र व्रत सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र की कामना करने वाले को पुत्र, धन की लालसा रखने वाले को धन, विद्या की चाह करने को विद्या और सुख की इच्छा करने वाले को सुख मिलता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य के रोग दूर हो जाते हैं। मनुष्य की संपूर्ण विपत्तियां दूर हो जाती हैं। घर में समृद्धि की वृद्धि होती है। पुत्र प्राप्ति होती होता है। समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है और मन के मनोरथ सिद्ध होते हैं। जो मनुष्य नवरात्रि के व्रत को नहीं करता। वह अनेकों दुखों को भोगता है और कष्ट और रोग से पीड़ित होकर अपंगता को प्राप्त होता है। उसके संतान नहीं होती व धन-धान्य से रहित होकर भूख और प्यास से व्याकुल होकर घूमता है और संज्ञाहीन हो जाता है। जो सदवा स्त्री इस व्रत को नहीं करती, वह पति सुख से वंचित होकर दुखी होती है। यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करें और 1० दिन तक बांधवों सहित नवरात्रि की कथा का श्रवण करें। जगतपिता ब्रह्मा जी बोले- जिसने पहले इस व्रत को किया। वह कथा मैं तुमको सुनाता हूं, तुम सावधान होकर सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी के वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्रह्मन, मनुष्यों का कल्याण करने वाले जगत के इतिहास को मेरे लिए कहो, मैं सावधान होकर सुन रहा हूं, आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा कीजिए । ब्रह्मा जी बोले- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था, वह भगवती दुर्गा का भक्त था और उसके संपूर्ण सदगुण से युक्त सुमति नाम की एक अत्यंत सुंदर कन्या हुई, वह कन्या सुमति इस प्रकार बढ़ने लगी, जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन जब दुर्गा जी की पूजा करके होम किया करता था तो वह उस समय नियम से वहां उपस्थित रहती। एक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेल में लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। इससे उसके पिता को पुत्री पर क्रोध आया और वह पुत्री से कहने लगे- अरे, दुष्ट पुत्री, आज तूने भगवती दुर्गा का का पूजन नहीं किया। इस कारण मैं किसी कुष्ठरोगी या दरिद्र मनुष्य से तेरा विवाह करा दूंगा। पिता के ऐसा वचन सुनकर सुमति को बहुत दुख हुआ और पिता से कहने लगी- हे पिता, मैं आपकी कन्या हूं और सभी प्रकार से आपके आधीन हूं, जैसी आपकी इच्छा हो, वैसा करो। चाहे जिसके साथ विवाह करा दो, पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है। मेरा तो अटल विश्वास है कि जो जैसा कर्म करता है, उसको कर्मों के अनुसार वैसा ही फल प्राप्त होता है, क्योंकि कर्म करना मनुष्य के अधीन है पर फल देना ईश्वर के आधीन है। इस प्रकार कन्या के निर्भयता से कहे हुए वचन सुनकर उस ब्राह्मण ने क्रोधित होकर अपनी कन्या का विवाह एक कुष्ठ रोगी के साथ कर दिया। फिर अत्यंत क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा- हे पुत्री, अपने कर्म का फल भोग, देखें तू भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती है। पिता के ऐसे कटु वचनों को सुनकर सुमति मन में विचार करने लगी कि यह मेरा बड़ा दुर्भाग्य हैं, जिससे मुझे ऐसा पति मिला है। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने उस निर्जन वन में उन्होंने वहां बड़े ही कष्ट से रात काटी। उस समय बालिका की ऐसी दशा देखकर भगवती ने कृपादृष्टि की, कन्या के पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रकट होकर सुमति से भगवती देवी ने कहा- हे ब्राह्मणी, मैं तुमसे प्रसन्न हूं तुम जो चाहो, सो वरदान मांग सकती हो।
भगवती दुर्गा के वचन सुनकर ब्राह्मणी ने कहा- आप कौन हो, वह सब मुझसे कहो। ब्राह्मणी का ऐसा ऐसे वचन सुनकर देवी ने कहा कि मैं आदिशक्ति भगवती हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूं, प्रसन्न होने पर मैं प्राणियों के दुख दूर कर देती हूं। उनको सुख प्रदान करती हूं। ब्राह्मणी मैं तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं। तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतांत सुनाती हूं। सुनो- पूर्व जन्म में निषाद यानी भील की तुम स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद के चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और जेल में कैद कर दिया। उन लोगों ने तुझको और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न पिया। इस प्रकार 9 दिन तक नवरात्र का ब्रत हो गया। हे ब्राह्मणी, उन दिनों में जो व्रत हुआ था, उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं। तुम्हारी जो इच्छा हो, सो मांगो। इस प्रकार दुर्गा माता के वचन को सुनकर ब्राहमणी बोली- अगर आप मुझ पर प्रसन्न हो तो हे दुर्गे, हे मात, मैं आपको प्रणाम करती हूं। कृपा करके मेरे पति के कोढ़ को दूर करो। देवी ने कहा- उन दिनों तुमने जो व्रत किया था, उनमें एक दिन का पुण्य पति का कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो। उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से मुक्त हो जाएगा। ब्रह्मा जी बोले- इस प्रकार देवी के वचन को सुनकर वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से जब उसने वर मांगा तो देवी उसे तथास्तु कहा। इस पर उसका पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ठ रोग से रहित होकर अति कांतिमान हो गया। वह ब्राह्मणी पति के मनोहर रूप को देखकर देवी की स्तुति करने लगी।
ब्राह्मणी बोली- हे दुर्गे- जय दुर्गे, आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का संताप हरने वाली, समस्त दुखो को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, मनोवांछित वर देने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो। मुझ निरपराध अबला का मेरे पिता ने कु ष्ठी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया था। पिता से तिरस्कृत निर्जन वन में विचारण कर रही हूं। आपने मेरा उद्धार किया। हे देवी, आपको मैं बारम्बार प्रणाम करती हूं। मेरी रक्षा करो। ब्रह्मा जी बोले- हे वृहस्पति जी, उस समय ब्राह्मणी की ऐसी विनती सुनकर देवी भगवती बहुत प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी, तेरे उदालय नाम का अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिमान और जितेंद्रीय पुत्र शीघ्र होगा। ऐसा वर प्रदान कर देवी ने ब्राह्मणी से फिर कहा कि हे ब्राह्मणी और जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मांग ले। भगवती दुर्गा के प्रवचन कर सुन कर सुमति ने कहा कि हे आदिशक्ति, हे भगवती दुर्गा, अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपया कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें। इस तरह के ब्राह्मणी के वचन को सुनकर दुर्गा जी ने कहा- हे ब्राह्मणी, मैं तुझे संपूर्ण पापों को दूर करने वाले नवरात्र की विधि बतलाती हूं। जिसको सुनने से मोक्ष प्राप्ति होती है। अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत पूजन करना चाहिए। यदि दिनभर व्रत न कर सके तो एक समय भोजन करें। विद्बान ब्राह्मणों से पूछकर घटस्थापना करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सीचें। महाकाली,महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की मूर्तियां स्थापित कर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अध्र्य दें।
बिजौरा के फल से अध्र्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से अध्र्य देने से कीर्ति व दाख से अध्र्य देने से कार्य की सिद्धि होती है। आंवले से अध्र्य देने से सुख की प्राप्ति और केले से अध्र्य देने से आभूषण की प्राप्ति होती है। इस प्रकार पुष्पों व फलों से अध्र्य देकर नवें दिन व्रत समाप्त होने पर यथाविधि हवन करें। शहद, जौ, खांड,धी, गेहूं, शहद, तिल, बिल्ब, नारियल, दाख और कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। खीर और चंपा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों की से तेज और सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की, कमल से राज्य सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ, तिल और फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। मनुष्य इस विधि विधान से होम कर आचार्य को अत्यंत नम्रता के साथ प्रणाम करें और यज्ञ की सिद्धि के लिए उन्हें दक्षिणा दे। इस तरह बताई हुई विधि के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता है, उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस प्रकार नवरात्र का व्रत करने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी- इस संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर या घर में विधि के अनुसार करें। ब्रह्मा जी बोले- हे वृहस्पति, इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अंतध्र्यान हो गईं, जो मनुष्य या स्त्री व्रत को भक्तिपूर्वक करती है, वह इस लोक में सुख प्राप्त कर अंत में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होती है। ब्रह्मा जी बोल- हे वृहस्पते, यह दुर्लभ व्रत का महत्व है, जो मैंने तुम्हें बताया। यह सुनकर बृहस्पति जी आनंद से प्रफुल्लित हो ब्रह्मा जी से कहने लगे कि हे ब्रह्मन, आपने मुझ पर अति कृपा की है, जो मुझे इस नवरात्र का महत्व सुनाया। ब्रह्मा जी बोले है कि हे बृहस्पते, यह देवी भगवती सम्पूर्ण लोकों का पालन करने वाली हैं। इस महादेवी के प्रभाव को भला कौन जान सकता है?
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