त्रिपुरेश्वरी शक्तिपीठ: हर मनोकामना होती है पूरी

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त्रिपुरा भारत के पूर्वी भाग का अंग है। यहां भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुरसुंदरी का भव्य मंदिर है। उन्हीं के नाम पर इस राज्य का नाम त्रिपुरा पड़ा। इस राज्य के राधाकिशोरपुर ग्राम से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर नैर्ऋत्यकोण में पर्वत पर यह शक्तिपीठ स्थित है। यहां देवी सती के शरीर का दक्षिण पाद गिरा था। यहां की शक्ति त्रिपुरसुंदरी और भैरव त्रिपुरेश हैं। पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान शिव माता सती के शरीर को ले कर घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शव के 51 टुकड़े किये थे, जो 51 स्थानों पर गिरे। माता का दाहिना पैर जिस स्थान पर गिरा, वह स्थान त्रिपुरेश्वरी शक्तिपीठ कहलाता है। इस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया। यह भव्य मंदिर उदयपुर शहर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भारतवर्ष के 51 पीठस्थानों में यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पीठ माना गया है। त्रिपुरा प्रदेश का यह पीठस्थान भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित है।


इस पीठस्थान को कुर्मापीठ के नाम से भी जाना जाता है, इस मंदिर का प्राङ्गïण ‘कुरमा’ कछुवे की तरह है। इस पवित्र मंदिर में माता काली लाल-काली कास्टीक पत्थर की मूर्ति बनी हुई है। इस मूर्ति के अतिरिक्त एक छोटी मूर्ति भी मंदिर में है। जिसे छोटो माँ के नाम से जाता जाता है। उनकी भी महिमा काली माता की तरह ही है, जिसे त्रिपुरा के राजा शिकार करने या युद्ध के समय अपने साथ रखते थे।

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एक प्राचीन कथा के अनुसार सन 1501 ई. में त्रिपुरा राज्य में महाराजा धन्यमाणिक्य राज्य करते थे। एक दिन रात को माता त्रिपुरेश्वरी राजा के सपने में आयीं और बोलीं कि चित्तागाँव के पहाड़पर (जो कि वर्तमान समय में बँगलादेश में स्थित है) मेरी मूर्ति विराजमान है, उसको यहां आज की रात में ही लाना होगा। इस सपने को देखने के तुरंत बाद राजा ने अपने सैनिकों को चित्तागाँव के पहाड़ पर भेज दिया और आदेश दिया कि माता त्रिपुरेश्वरी की मूर्ति आज की रात में ही ले आओ। जब सैनिक मूर्ति को लेकर माताबाड़ी तक पहुंचे, उसी दौरान सूर्योदय हो गया और माता के आदेशानुसार वहीं पर उनका मंदिर स्थापित कर दिया गया, जो बाद में माता त्रिपुरसुंदरी के नाम से प्रख्यात हो गया।
महाराजा धन्यमाणिक्य ने इस स्थान पर विष्णुमंदिर बनाने के बारे में सोचा था,लेकिन माता त्रिपुरेश्वरी की मूर्ति स्थापित होने के कारण राजा यह निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि मैं किसके मंदिर का निर्माण करूं। उसी समय आकाशवाणी हुई कि ‘आपने जहाँ पर विष्णु भगवान का मंदिर बनाने के बारे में सोचा था, उस स्थान पर आप माता त्रिपुरासुन्दरी के माता का निर्माण करें। इसके बाद यहाँ त्रिपुरेश्वरी मंदिर निर्मित हुआ।
मंदिर के पीछे पूर्व की तरफ 7 एकड़ के इलाके में एक तालाब है, जो कि झील की तरह है, वह कल्याणसागर के नाम से प्रख्यात है। यह झील बड़ी-बड़ी मछलियों एवं कछुओं के लिये प्रसिद्घ है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन मछिलियों और कछुओं को मारना अथवा पकडऩा अपराध है। प्राकृतिक कारणों से मछलियों एवं कछुओं के मर जाने पर उनको दफनाने के लिए एक अलग स्थान बनाया गया है। उसी स्थान पर मंदिर के पुजारियों के लिए भी समाधि स्थल बनाया गया है। प्रतिवर्ष दीपावली पर्व के उपलक्ष्य में माता त्रिपुरेश्वरी मंदिर पर दो दिन के लिए एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।

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