श्रीभद्रकाली देवी शक्तिपीठ: भक्तों के मनोरथ परिपूर्ण होते हैं

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श्रीभद्रकाली देवी शक्तिपीठ-जनस्थान (नासिक) की बहुत मान्यता है । मंदिर में पूजन से भक्त के क्लेशों का नाश होता है ।  मंदिर के ऊपर दो मंजिला का और निर्माण किया गया है। प्रत्येक मंदिर के ऊपर सामान्यतया कलश होता है, लेकिन इस मंदिर के ऊपर ऐसा नहीं है, क्योंकि उस समय यवनों का उत्पात था, कलश देखकर मंदिर की तोड़-फोड़ न हो, इसलिये कलश नहीं रखा गया। इस मंदिर को देवी का मठ ऐसा नाम दिया गया।
मूर्ति का स्वरूप- पंचधातु की भद्रकाली की यह मूर्ति   15 इंच ऊंची है। इनके 18 हाथों में विविध आयुध हैं। मूर्ति अत्यधिक आकर्षक है। इनके दर्शन, स्मरण और पूजन से भक्तों के मनोरथ परिपूर्ण होते हैं।

नासिक के पास पंचवटी में स्थित भद्रकाली के मंदिर की शक्तिपीठ के रूप में मान्यता है। इस मंदिर में शिखर नहीं है। सिंहासन पर नवदुर्गाओं की मूर्तियां हैं। उनके मध्य में भद्रकाली की ऊॅँची मूर्ति है। यहां देवी सती के शरीर की ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी और भैरव विकृताक्ष है। मध्य रेलवे की मुम्बई से दिल्ली जाने वाली मुख्य लाइन पर नासिक रोड प्रसिद्ध स्टेशन है। वहां से पंचवटी आठ किलोमीटर है।

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यहां पर मंदिर की ओर से ही प्राच्यविद्यापीठ की स्थापना की गयी है, जहां प्राचीन गुरुपरम्परा से वेदवेदांग आदि विविध विद्याओं का अध्ययन-अध्यापन किया जाता है। छात्र मंदिर के आस-पास के ब्राह्मणों के घर जाकर मधुकरी माँगकर लाते हैं, उसका ही नैवेद्य भगवती को अर्पित किया जाता है। माता जी की त्रिकाल पूजा आदि की व्यवस्था छात्रों द्वारा ही की जाती है।

शिव पुराण में उल्लेखित है कि भगवती सती ने दक्ष यज्ञ में शिवनिन्दा के घोर अपमान को सहन न करते हुए क्रुद्ध होकर यज्ञकुण्ड में आत्माहुति दे दी थी। इसके बाद भगवान  विष्णु के अपने सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर सती माता के  अंग भारतभूमि के विविध क्षेत्रों में गिरा। उसमें से चिबुक भाग जनस्थान (नासिक) में गिरा एवं वहीं चिबुक शक्तिपीठ रूप में प्रकट हुआ। यहां भ्रदकालीरूप में भगवती प्रतिष्ठïत हैं। यहां शक्ति ‘भ्रामरी’ और भैरव ‘विकृताक्ष’ हैं-चिबुके भ्रामरी देवी विकृताक्ष जनस्थले।

नौ छोटी-छोटी पहाडिय़ों के कारण इस स्थान को नव+शिक अर्थात नासिक करते हैं। नासिक की इन सभी नौ पहाडिय़ों पर माँ दुर्गा जी के स्थान हैं। उन नौ स्थानों में से एक स्थान पर भद्रकाली माताजी की पूर्वपरम्परानुगत मूर्ति है। यह मूर्ति स्वयम्भू है। इस्लामी शासनकाल में मूर्ति का अपमान न हो, इसलिये गाँव के बाहर उपर्युक्त पहाड़ी के ऊपर इस मूर्ति की स्थापना की गयी। जनताजर्नादन की प्रार्थना पर पुन: सन 1790 में सरदार गणपतराव पटवर्धन दीक्षितजी द्वारा मंदिर बनवाया गया।

मंदिर के आसपास ब्राह्मïणों के लगभग साढ़े तीन सौ घर हैं। उन्हीं ब्राह्मणों के घर से क्रम-क्रम के अनुसार पूजा, अर्चन, नैवेद्य, देवीपाठ, नंदादीप आदि के लिये सामग्री संगृहीत होती है। यहां नवरात्र का उत्सव आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमापर्यन्त बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह भद्रकाली शक्तिपीठ भक्तों की आस्था का मुख्य स्थान है। देवी के चरणों में प्रणाम करते हुए उनसे अनुग्रह की याचना है-भद्रकालि नमोस्तु ते।

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