भगवान विष्णु जगत के पालनहार है। जब-जब धरती पर अनाचार बढ़ता है, तब-तब भगवान विष्णु अवतरित होकर अनाचारियों का नाश करते हैं। त्रेतायुग में राम और द्बापरयुग में कृष्ण के रूप में अवतरित हुए है। अब कलयुग में वे अधर्म का नाश करने के लिए कल्कि के रूप में अवतरित होंगे। कलयुग में आम जन धर्म पथ से विमुख होता जा रहा है। ऐसे में भक्त श्री हरि का ध्यान कुछ ऐसे कर सकते हैं, जैसा कि ब्रह्मा जी ने बताया है। भगवान विष्णु के ध्यान का यह सहज मार्ग है।
शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये।।
लाभास्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजय:।
येषामिन्दीवरश्यामो हृदयोस्थो जनार्दन:।।
भावार्थ- जगतपिता ब्रह्मा जी देवताओं से भगवान विष्णु के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहते है कि हे देवताओं, भगवान विष्णु श्वेत वस्त्र धारण किए हैं। चार भुजाओं से विभूषित हैं। उनके दिव्य श्री अंगों की कांति चंद्रमा के समान गौर है और मुख पर सदा प्रसन्नता छायी रहती है। सारे विघ्नों की शांति के लिए ऐसे श्री हरि का ध्यान करें। ऐसे नील कमल के समान श्याम सुंदर श्री हरि जिनके हृदय में विराजमान रहते हैं। उन्हीं को लाभ होता है। उन्हीं की विजय होती है। उनकी पराजय कैसे हो सकती है?