माता गंगा का नाम जाह्न्वी कैसे पड़ा, जानिए रहस्य

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माता गंगा की पावन गाथा तो अधिकांश लोग जानते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम होता है, इन पावन नदी का नाम जाह्न्वी कैसे पड़ा? क्यों पड़ा? इसके पीछे की क्या कथा है?। आइये, जानते हैं माता गंगा का नाम जाह्न्वी पड़ने की अमर गाथा। पूर्व काल की बात है कि महाराज सगर के साठ हजार पुत्रों ने महर्षि कपिल का अपमान उस वक्त किया था, जब उनका अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा चोरी हो गया था। सगर पुत्र जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे और उन्हें वहां यज्ञ का घोड़ा बंधा दिखा दिया, जिसे इंद्र ने बांधा था, लेकिन सगर पुत्र समझे कि इस घोड़े को महर्षि कपिल ने बांधा है। इस पर सगर पुत्रों ने महर्षि का अपमान किया, जिससे क्रुद्ध होकर उन्होंने सगर पुत्रों को भस्म कर दिया था। उनके उद्धार का मात्र एक मार्ग था कि उनकी भस्म में गंगा जल पड़े, लेकिन गंगा जी को पृथ्वी पर लाना असंभव था, क्योंकि गंगा जी उस समय परमपिता ब्रह्मा जी के कमण्डलु में ही थीं।

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सगर के पौत्र अंशुमान ने गंगा जी को धरती पर लाने के लिए कठोर तप किया। तप करते-करते ही उनका देहावसान हो गया। उनके पुत्र दिलीप ने तपस्या कर पिता का सपना पूरा करना चाहा, लेकिन वे भी असफल रहे। तप करते-करते उनका जीवन भी समाप्त हो गया। दिलीप के पुत्र भगीरथ ने जैसे ही देखा उनका ज्येष्ठ पुत्र राज्यकार्य करने में सक्षम हो गया है, वे राज्य उसे सौपकर वन में चले गए। वहां उन्होंने कठोर तप किया, उनके तप से गंगा जी प्रसन्न हुई और उन्हें दर्शन दिए। माता गंगा बोली कि मैं धरती पर आ तो जाउंगी, लेकिन मेरे वेग को सहेगा कौन? वैसे भी मैं पृथ्वी पर नहीं आना चाहती हूं, क्योंकि यहां के पापी मुझमें स्नान करेंगे। उनका मुझमें रह जाएगा। भला वह पाप कैसे नष्ट होगा?

भागीरथ ने माता गंगा से निवेदन किया कि भगवान शंकर आपका वेग संभाल लेंगे। पाप का भय न करें। भगवान के भक्त और महात्मागण आपमें स्नान करेंगे तो उन भक्तों के स्पर्श से आप सदा शुद्ध बनी रहेंगी, क्योंकि इन भक्तों के हृदय में श्री हरि निवास करते हैं। इस पर गंगा जी प्रसन्न हो गईं। इसके बाद भगीरथ ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के कठोर तप किया। भगवान आशुतोष भगीरथ के तप से प्रसन्न हुए और उन्होंने गंगा जी को मस्तक पर धारण करना स्वीकार कर लिया, लेकिन ब्रह्म लोक से पूरे वेग से आकर गंगा जी उन विराटमूर्ति धूर्जटि की जटाओं में ही समा गईं। वहां से उनका एक बूंद जल भी बाहर नहीं आया।

भगीरथ ने फिर शिव शंकर की स्तुति आरंभ की, तब कहीं भगवान शंकर ने अपनी जटा को निचोड़ कर गंगा जी को बाहर प्रकट किया। तब भगीरथ जी ने माता गंगा जी के साथ तय किया कि वे आगे-आगे चलेंगे, पीछे-पीछे माता गंगा वेग से आयेंगी। ऐसा ही हुआ, लेकिन कुछ दूर आगे पहुंच कर भगीरथ क्या देखते हैं कि माता गंगा जी पीछे नहीं आ रही हैं। दरअसल बात यह हुई थीं कि मार्ग में गंगा जी ने जह्नु ऋषि का आासन व कमण्डलु अपनी धारा के वेग से बहा दिया था, इसलिए क्रोध में आकर ऋषि ने गंगा जी को पी लिया था। भगीरथ ने पीछे लौटकर देखा तो गंगा जी के प्रवाह के स्थान पर रेत उड़ रही थी। अब उन्होंने किसी प्रकार प्रार्थना कर ऋषि जह्नु को प्रसन्न किया । तब ऋषि ने गंगा को अपनी पुत्री बनाकर जांघ चीरकर बाहर निकाला। इससे माता गंगा जी जाह्न्वी कहलाईं। भगीरथ के प्रयास से उनके पूर्वज और सगर के पुत्र गंगाजल के स्पर्श से मुक्त हो सके।

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