भारत में दिन-मुहुर्त का बहुत महत्व है। किस दिन किस मुहूर्त में क्या काम करेंगे तो सफल होगा और किस पल में किया गया काम असफल होगा, इस बारे में हमारे धर्म शास्त्रों में विस्तार से कहा गया है। हर तिथि का अपना स्वभाव है, उसी के अनुसार काम किए जायें तो कार्य फलीभूत होते हैं। आइये जानते हैं कि किसी तिथि में क्या करना निषेध है, ताकि आप उसके अनुरूप कार्यो का निर्धारण करें।
प्रतिपदा तिथि
प्रतिपदा तिथि में यात्रा, प्रतिष्ठा, शान्तिक, गृह निर्माण, गृह प्रवेश, वास्तुकर्म, विवाह तथा पौष्टिक कार्य आदि सभी मंगल कार्य किए जाते है, जो कि शुभकारी माने गए हैं। कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को बली माना गया है और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को निर्बल माना गया है, इसलिए शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में विवाह, यात्रा, व्रत, प्रतिष्ठा, सीमन्त, चूडा़कर्म, वास्तुकर्म तथा गृहप्रवेश आदि कार्य नहीं करने चाहिए। चंद्रमा चूंकि इस कालखंड में निर्बल होता है, इसलिए इस समय में ये कार्य न करें तो भलाई है।
द्वित्तीया तिथि
द्वितीया तिथि में आभूषण खरीदना, किसी भी प्रकार का शिलान्यास, विवाह मुहूर्त, यात्रा करना, देश या राज्य संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, उपनयन आदि कार्य करना शुभ माना होता है, लेकिन इस कालखंड में तेल लगाना वर्जित है।
तृतीया तिथि
तृतीया तिथि में कौन से काम करने चाहिए , आइये जानते हैं, तिथि में शिल्पकला अथवा शिल्प संबंधी अन्य कार्यों में, सीमन्तोनयन, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, विवाह, राज-संबंधी कार्य, उपनयन आदि शुभ कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं।
चतुर्थी तिथि
चतुर्थी तिथि में शत्रुओं का हटाने का कार्य, सभी प्रकार के बिजली के कार्य, अग्नि संबंधी कार्य, शस्त्रों का प्रयोग करना आदि के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है। क्रूर प्रवृति के कार्यों के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है। क्रूर प्रवृत्ति में अग्नि सम्बन्धी कार्य किए जाते हैं, बिजली को भी अग्नि का स्वरूप माना जाता है, इसलिए इससे सम्बन्धित कार्य शुभाशुभ माने गए हैं।
पंचमी तिथि
पंचमी तिथि सभी प्रवृतियों के लिए यह तिथि उपयुक्त मानी गई है। तिथि में किसी को ऋण देना वर्जित माना गया है। इस तिथि में ऋण बिल्कुल भी नहीं देना चाहिए, इसका नकारात्मक प्रभाव पकड़ता है।
षष्ठी तिथि
इस तिथि में युद्ध में उपयोग में लाए जाने वाले शिल्प कार्यों का आरम्भ, वास्तुकर्म, गृहारम्भ, नवीन वस्त्र पहनने जैसे शुभ कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं। इस मुहुर्त में तैलाभ्यंग, अभ्यंग, पितृकर्म, दातुन, आवागमन, काष्ठकर्म आदि कार्य वर्जित हैं।
सप्तमी तिथि
विवाह मुहुर्त, संगीत संबंधी कार्य, आभूषणों का निर्माण और नवीन आभूषणों को धारण किया जा सकता है। यात्रा, वधु-प्रवेश, गृह-प्रवेश, राज्य संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, वास्तुकर्म, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, उपनयन संस्कार, आदि सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
अष्टमी तिथि
इस तिथि में लेखन कार्य, युद्ध में उपयोग आने वाले कार्य, वास्तुकार्य, शिल्प संबंधी कार्य, रत्नों से संबंधित कार्य, आमोद-प्रमोद से जुड़े कार्य, अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले कार्यों का आरम्भ इस तिथि में किया जा सकता है।
नवमी तिथि
नवमी तिथि में शिकार करने का आरम्भ करना, झगड़ा करना, जुआ खेलना, शस्त्र निर्माण करना, मद्यपान तथा निर्माण कार्य तथा सभी प्रकार के क्रूर कर्म इस तिथि में किए जाते हैं।
दशमी तिथि
दशमी तिथि में राजकार्य अर्थात वर्तमान समय में सरकार से संबंधी कार्यों का आरम्भ किया जा सकता है। हाथी, घोड़ों से संबंधित कार्य, विवाह, संगीत, वस्त्र, आभूषण, यात्रा आदि इस तिथि में की जा सकती है। गृह-प्रवेश, वधु-प्रवेश, शिल्प, अन्न प्राशन, चूडा़कर्म, उपनयन संस्कार आदि कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं।
एकादशी तिथि
एकादशी तिथि में व्रत, सभी प्रकार के धार्मिक कार्य, देवताओं का उत्सव, सभी प्रकार के उद्यापन, वास्तुकर्म, युद्ध से जुड़े कर्म, शिल्प, यज्ञोपवीत, गृह आरम्भ करना और यात्रा संबंधी कार्य किए जा सकते हैं।
द्वादशी तिथि
इस तिथि में विवाह, तथा अन्य शुभ कर्म किए जा सकते हैं। इस तिथि में तैलमर्दन, नए घर का निर्माण करना तथा नए घर में प्रवेश तथा यात्रा का त्याग करना चाहिए।
शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि
संग्राम से जुड़े कार्य, सेना के उपयोगी अस्त्र-शस्त्र, ध्वज, पताका के निर्माण संबंधी कार्य, राज-संबंधी कार्य, वास्तु कार्य, संगीत विद्या से जुड़े काम इस दिन किए जा सकते हैं। इस दिन यात्रा, गृह प्रवेश, नवीन वस्त्राभूषण तथा यज्ञोपवीत जैसे शुभ कार्यों का त्याग करना चाहिए।
चतुर्दशी तिथि
चतुर्दशी तिथि में सभी प्रकार के क्रूर तथा उग्र कर्म किए जा सकते हैं। शस्त्र निर्माण इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है। इस तिथि में यात्रा करना वर्जित है. चतुर्थी तिथि में किए जाने वाले कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं।
पूर्णमासी
पूर्णमासी, यानी पूर्णिमा हैं, इस तिथि में शिल्प, आभूषणों से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। संग्राम, विवाह, यज्ञ, जलाशय, यात्रा, शांति तथा पोषण करने वाले सभी मंगल कार्य किए जा सकते हैं। अमावस्या इस तिथि में पितृकर्म मुख्य रूप से किए जाते हैं। महादान तथा उग्र कर्म किए जा सकते हैं. इस तिथि में शुभ कर्म तथा स्त्री का संग नहीं करना चाहिए।
अमावस्या
अमावस्या के दिन सभी प्रकार की गुप्त साधना, तंत्र-मन्त्र अनुष्ठान, कार्य पूर्ति अनुष्ठान जो एक दिन में ही पूर्ण हो इनको छोड़ अन्य सभी शुभ कर्म वर्जित है। अमावस्या की तिथि तंत्र-मंत्र की दृष्टिï से बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। तमाम ऐसे अनुष्ठान है, जिन्हें अमावस्या में ही किया जा सकता है। इस तिथि में ये अनुष्ठान भलीभूत होते हैं।