मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। कानपुर देहात के बहुचर्चित बेहमई कांड से 43 साल बाद कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया। एंटी डकैती कोर्ट के विशेष न्यायाधीश अमित मालवीय की अदालत ने दोषी श्यामबाबू को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। साथ ही 50 हजार रुपये अर्थदंड भी लगाया है। वहीं एक अन्य आरोपी विश्वनाथ को सबूतों के अभाव में दोषमुक्त करार दिया है। इतनी लंबी न्यायिक कार्यवाही के दौरान कई आरोपियों और गवाहों की मौत हो चुकी है जबकि फैसले के इंतजार में वादी मुकदमा भी दम तोड़ चुका है। फरार तीन आरोपियों को आज तक पुलिस गिरफ्तार ही नहीं कर सकी है।
सिकंदरा के बेहमई गांव में 14 फरवरी 1981 को दस्यु फूलन देवी ने सामूहिक नरसंहार की घटना को अंजाम दिया था। जिसमें 20 लोगों को मौत हो गई थी और छह लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। मामले में गांव के ही वादी राजाराम ने मुकदमा दर्ज कराया था। जिसकी सुनवाई एंटी डकैती कोर्ट में चल रही थी।
बचाव पक्ष के अधिवक्ता गिरीश नारायण दुबे के अनुसार 24 नवंबर 1982 तक मामले में 15 आरोपियों की गिरफ्तारी हुई थी उनके खिलाफ आरोप पत्र अदालत में दाखिल कर दिए गए थे।मामले में कुछ आरोपियों के मध्य प्रदेश की जेल में बंद होने के कारण इस मुकदमे में उनकी हाजिरी न होने के कारण लंबे समय तक आरोपियों पर आरोप तय नहीं हो सके थे। इससे मुकदमे की कार्यवाही आगे नहीं बढ़ सकी।
इसी दौरान कुछ आरोपियों की मौत हो गई तो कुछ जमानत हो जाने पर फरार हो गए थे। वर्ष 2007 में आरोपी राम सिंह, रतीराम, भीखा व बाबूराम के खिलाफ पहली बार आरोप तय हुए थे। वहीं 2012 में आरोपी पोसा, विश्वनाथ व श्यामबाबू के अलावा राम सिंह और भीखा पर दोबारा आरोप तय हुए थे। इसके बाद मामले में हाजिर आ रहे सिर्फ पांच आरोपियों पर सुनवाई आगे बढ़ी थी।24 सितंबर 2012 को मुकदमा वादी राजाराम की पहली बार कोर्ट में गवाही हुई।
इसके बाद अभियोजन ने मामले में 2015 तक कुल 15 गवाह पेश किए। इसके बाद कानूनी पेंचीदगियों में उलझे इस मुकदमे में फैसला आने में नौ साल लग गए। इस दौरान एक-एक कर सभी अभियुक्तों की मौत हो गई। सिर्फ श्यामबाबू और विश्वनाथ ही बचे थे।सबूतों और गवाहों के आधार पर कोर्ट ने श्यामबाबू को उम्रकैद की सजा सुनाई जबकि घटना के समय किशोर रहे विश्वनाथ को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।