मृत्यु पूर्व के लक्षण, जो देते हैं मृत्यु के संकेत

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विज्ञान का युग है, नए-नए अविष्कार हो रहे हैं, लेकिन मनुष्य के जीवन से जुड़ा महत्वपूर्ण पहलू है मृत्यु, जिसे लेकर विज्ञान अब तक बहुत कुछ नहीं जानता है, या यूं कहें कि अभी तक विज्ञान इस महत्वपूर्ण विषय में जान ही नहीं सका है तो गलत नहीं होगा। हमारे धर्म शास्त्रों में इसे लेकर महत्वपूर्ण जानकारियां हैं, जो हमें मृत्यु के बारे में बताती हैं। यह भी इंगित करती है कि हमारी मृत्यु को कितना समय शेष है? बस जरूरत है कि हममें वह समझ हो, जो जिसके माध्यम से मृत्यु के प्राकृतिक संकेतों को जान व समझ पाएं।

प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथ कठोपनिषद में मृत्यु और आत्मा से जुड़े कई रहस्य बताए गए हैं, जो हमारे सामाने मृत्यु के रहस्य को खोलते हें। जिनका आधार बालक नचिकेता और यमराज के बीच हुए मृत्यु से जुड़े संवाद हैं। नचिकेता वह बालक था, जिसकी पितृभक्ति और आत्म ज्ञान की जिज्ञासा के आगे मृत्यु के देवता यमराज को भी झुकना पड़ा। विलक्षण बालक नचिकेता से जुड़ा यह प्रसंग न केवल पितृभक्ति, बल्कि गुरु-शिष्य संबंधों के लिए भी बड़ा उदाहरण माना जाता है। कठोपनिषद् में मृत्यु को लेकर कई रहस्यों को खोला गया है। हमारे ऋषि-मुनि इन्हीं संकेतों के आधार पर मृत्यु का पूर्वाभास लगाते थे। वैसे मृत्यु के बारे में हमारे वेद, पुराण, योग और आयुर्वेद ग्रंथ में विस्तार से लिखा गया है। गरूड़ पुराण, शिव पुराण और ब्रह्म पुराण में मृत्यु के स्वभाव का उल्लेख है। मृत्यु के बाद के जीवन का उल्लेख भी मिलता है। कर्मों के फल का भी उल्लेख है। इन्हीं धर्म शास्त्रों में उल्लेख है कि किसी की मृत्यु होने के बाद हमें क्या करना चाहिए? यह भी बताया गया है कि किसी की मृत्यु के बाद घर में गीता और गरूड़ पुराण सुनना चाहिए, इससे मृतक आत्मा को शांति और सही ज्ञान मिलता है। जिससे उसके आगे की गति में कोई रुकावट नहीं आती है। स्थूल शरीर को छोड़ने के बाद सच्चा ज्ञान ही लंबे सफर का रास्ता दिखाता है।
योग गंथों में मृत्यु के अनेक लक्षण बताए गए हैं। जिनका साधक प्रयोगात्मक परीक्षण कर सकते हैं। उन लक्षणों में से अनेक का परीक्षण किया गया है और प्राय: सत्य ही सिद्ध हुए हैं।

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योग ग्रंथ में बताए गए मृत्यु के लक्षण

1 – आकाश में दो चंद्रमा देखने वाले व्यक्ति की मृत्यु तीन महीने के भीतर हो जाती है।
2 – अपनी ही छाया में छिद्र देखने वाला व्यक्ति प्राय: एक महीने के भीतर अपना शरीर छोड़ देता है।
3 – कठोपनिषद में अंगुष्ठ मात्र पुरुष का वर्णन आता है। आशय यह है कि आत्मा का आकार अंगूठे के समान है। यह शुद्ध, स्वत: प्रकाशित, धुम्ररहित, अग्नि के सदृश हृदय प्रदेश में विद्यमान अनाहत चक्र में स्थित है। अनाहत चक्र में स्थित सूक्ष्म आत्मा और मनुष्य के हाथ के अंगूठे में आवश्य ही कुछ घनिष्ठ सम्बन्ध है। क्यों कि अक्सर ऐसा देखा जाता है कि कुछ घंटों पूर्व मरणासन्न व्यक्ति अपने अंगूठे को नहीं हिला पाता है। अपने अंगूठे को स्वभाविक रूप से न हिला सकने वाला व्यक्ति तीन दिन के भीतर मर जाता है।
4 – दर्पण में अपना सिर न देख सकने वाला और बाह्य वस्तुओं को धूमिल देखने वाला, नेत्र शक्ति से क्षीण व्यक्ति दस दिन के भीतर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
– आंखों की कमजोरी से संबंधित ही एक लक्षण यह भी है कि व्यक्ति को दर्पण में अपना चेहरा न दिखकर किसी और का चेहरा होने का भ्रम होने लगता है।

 

5- कान को बंद करने के बाद यदि कोई किसी को अपने प्राणों की ध्वनि न सुनाई पड़े और उसका हृदय अक्रमिक रूप से धड़कने लगे तो ऐसे व्यक्ति की दस दिन के भीतर मरने की आशंका होती है।
6- वृक्षों को सुनहरे रंग से देखने वाला व्यक्ति लगभग पंद्रह दिनों के भीतर चल बसता है।
7- यदि कोई शरीर के निचले भाग का अनुभव न करे तो ऐसा माना जाता है कि वह व्यक्ति पांच दिन तक ही जीवित रहेगा।
8- स्वप्न में शव का आलिगन करते वाल व्यक्ति केवल छह महीने तक जीवित रहता है।
9- स्वयं को स्वप्न में नग्न अवस्था में चिता करते हुए और मृत प्राणियों के लिए आंसू बहाते देख्ों तो ऐसा व्यक्ति केवल इक्कीस दिन जीवित रहता है।
1०- यदि किसी का शरीर सहसा अत्यधिक मोटा हो जाए तो वह व्यक्ति छह महीने के भीतर मर सकता है।
11- सूर्य व चंद्रमा में छिद्र देखले वाले व्यक्ति की मृत्यु बहुत समीप होती है।
12- अपनी ही जिह्वा के अग्र भाग को न देख सकने वाला व्यक्ति केवल तीन दिन तक जीवित रहता है।
13- यदि कोई कृपण व्यक्ति सहसा दानी और दानी कृपण हो जाए तो यह अभूतपूर्व परिवर्तन निकटवर्ती मृत्यु की सूचना देता है। ऐसे व्यक्ति का जीवन प्राय: छह महीने में समाप्त हो जाता है।
इन सब के इतर मृत्यु के अन्य लक्षण भी है। जिसमें से हाथ के अंगूठे का निष्क्रिय हो जाना मृत्यु का एक निश्चित चिह्न् है।

सतानत धर्म के अन्य ग्रंथों में बताए गए मृत्यु के प्रमुख लक्षण

आयुर्वेद के अनुसार मृत्यु से पहले मानव शरीर से अजीब गंध निकलने लगती है। इसे मृत्यु गंध कहा जाता है। यह किसी रोगादि, हृदयाघात, मस्तिष्काघात आदि के कारण उत्पन्न होती है। यह गंध किसी मुर्दे की गंध की तरह ही होती है। बहुत समय तक किसी अंदरुनी रोग को टालते रहने का परिणाम यह होता है कि भीतर से शरीर लगभग मर चुका होता है।
इटली के वैज्ञानिकों के मुताबिक भी मरते समय मानव शरीर से एक खास किस्म की गंध निकलती है। इसे मौत की गंध कहा जाता है, लेकिन मौत की इस गंध का अहसास दूसरे लोगों को नहीं होता। इसे सूंघने वाली खास किस्म की कृत्रिम नाक यानी उपकरण को विकसित करने के लिए इटली के वैज्ञानिक प्रयासरत हैं। कुत्तों में इस गंध को महसूस करने की प्राकृतिक शक्ति होती है, इसलिए वह संकेत भी देते हैं।

 

1 – कोई कुत्ता घर से निकलने के बाद प्रतिदिन आपके पीछे चलने लगे और ऐसा तीन-चार दिन तक लगातार हो तो आपको सतर्क होने की जरूरत है।
2 – यदि बायां हाथ लगातार एक सप्ताह तक अकारण ही फड़कता रहे, तो समझना चाहिए कि मृत्यु किसी भी कारण से निकट है।

3 – जिन लोगों की मृत्यु एक माह शेष रहती है। वे अपनी छाया को भी स्वयं से अलग देखने लगते हैं। कुछ लोगों को तो अपनी छाया का सिर भी दिखाई नहीं देता है।
4 – श्वास लेने और छोड़ने की गति भी तय करती है मनुष्य का जीवन। प्राणायाम करते रहने से सभी तरह के रोगों से बचा जा सकता है।
– जिस व्यक्ति का श्वास अत्यंत लघु चल रहा हो तथा उसे कैसे भी शांति न मिल रही हो तो उसका बचना मुश्किल है। नासिका के स्वर अव्यवस्थित हो जाने का लक्षण अमूमन मृत्यु के 2-3 दिनों पूर्व प्रकट होता है।

 

– कहते हैं कि जो व्यक्ति की सिर्फ दाहिनी नासिका से ही एक दिन और रात निरंतर श्वास ले रहा है (सर्दी-जुकाम को छोड़कर) तो यह किसी गंभीर रोग के घर करने की सूचना है। यदि इस पर वह ध्यान नहीं देता है तो तीन वर्ष में उसकी मौत तय है।
– जिसकी दक्षिण श्वास लगातार दो-तीन दिन चलती रहे तो ऐसे व्यक्ति को संसार में एक वर्ष का मेहमान मानना चाहिए। यदि दोनों नासिका छिद्र 1० दिन तक निरंतर ऊर्ध्व श्वास के साथ चलते रहें तो मनुष्य तीन दिन तक ही जीवित रहता है। यदि श्वास वायु नासिका के दोनों छिद्रों को छोड़कर मुख से चलने लगे तो दो दिन के पहले ही उसकी मृत्यु जानना चाहिए।
5 – जिसके मल, मूत्र और वीर्य एवं छींक एकसाथ ही गिरते हैं उसकी आयु केवल एक वर्ष ही शेष है, ऐसा समझना चाहिए।
6 – जिसके वीर्य, नख और नेत्रों का कोना यह सब यदि नीले या काले रंग के हो जाएं तो मनुष्य का जीवन छह से एक वर्ष के बीच समाप्त हो जाता है।
7 – जब किसी व्यक्ति का शरीर अचानक पीला या सफेद पड़ जाए और ऊपर से कुछ लाल दिखाई देने लगे तो समझ लेना चाहिए कि उस इंसान की मृत्यु छह माह में होने वाली है।
8 – जो व्यक्ति अकस्मात ही नीले-पीले आदि रंगों को तथा कड़वे-खट्टे आदि रसों को विपरीत रूप में देखने-चखने का अनुभव करने लगता हैं वह छह माह में ही मौत के मुंह में समा जाएगा।
9 – जब किसी व्यक्ति का मुंह, जीभ, कान, आंखें, नाक स्तब्ध हो जाएं यानी पथरा जाए तो ऐसे माना जाता है कि ऐसे इंसान की मौत का समय भी लगभग छह माह बाद आने वाला है।
1० – जिस इंसान की जीभ अचानक से फूल जाए, दांतों से मवाद निकलने लगे और सेहत बहुत ज्यादा खराब होने लगे तो मान लीजिए कि उस व्यक्ति का जीवन मात्र छह माह शेष है।
11 – यदि रोगी के उदर पर सांवली, तांबे के रंग की, लाल, नीली, हल्दी के तरह की रेखाएं उभर जाएं तो रोगी का जीवन खतरे में है, ऐसा बताया गया है।
12 – यदि व्यक्ति अपने केश एवं रोम को पकड़कर खींचे और वे उखड़ जाएं तथा उसे वेदना न हो तो रोगी की आयु पूर्ण हो गई है, ऐसा मानना चाहिए।
13 – हाथ से कान बंद करने पर किसी भी प्रकार की आवाज सुनाई न दे और अचानक ही मोटा शरीर दुबला और दुबला शरीर मोटा हो जाए तो एक माह में मृत्यु हो जाती है। सामान्य तौर पर व्यक्ति जब आप अपने कान पर हाथ रखते हैं तो उन्हें कुछ आवाज सुनाई देती है लेकिन जिस व्यक्ति का अंत समय निकट होता है उसे किसी भी प्रकार की आवाजें सुनाई देनी बंद हो जाती हैं।

 

14 – मौत के ठीक तीन-चार दिन पहले से ही व्यक्ति को हर समय ऐसा लगता है कि उसके आसपास कोई है। उसे अपने साथ किसी साए के रहने का आभास होता रहता है। यह भी हो सकता है कि व्यक्ति को अपने मृत पूर्वजों के साथ रहने का अहसास होता हो। यह अहसास ही मौत की सूचना है।
15 – समय बीतने के साथ अगर कोई व्यक्ति अपनी नाक की नोक देखने में असमर्थ हो जाता है तो इसका अर्थ यही है कि जल्द ही उसकी मृत्यु होने वाली है, क्योंकि उसकी आंखें धीरे-धीरे ऊपर की ओर मुड़ने लगती हैं और मृत्यु के समय आंखें पूरी तरह ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं।
16 – यदि किसी व्यक्ति को नीले रंग की मक्खियां घेरने लगे और अधिकांश समय ये मक्खियां व्यक्ति के आसपास ही रहने लगें तो समझ लेना चाहिए कि व्यक्ति की आयु मात्र एक माह शेष है।
17- जब कोई व्यक्ति चंद्र, सूर्य या आग से उत्पन्न होने वाली रोशनी को भी नहीं देख पाता है तो ऐसा इंसान भी कुछ ही माह और जीवित रहेगा, ऐसी आशंका रहती हैं।
18- जब कोई व्यक्ति पानी में, तेल में, दर्पण में अपनी परछाई न देख पाए या परछाई विकृत दिखाई देने लगे तो ऐसा इंसान मात्र छह माह का जीवन और जीता है।

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  1. आयुर्वेद के अनुसार मृत्यु से पहले मानव शरीर से अजीब गंध निकलने लगती है। इसे मृत्यु गंध कहा जाता है। यह किसी रोगादि, हृदयाघात, मस्तिष्काघात आदि के कारण उत्पन्न होती है। यह गंध किसी मुर्दे की गंध की तरह ही होती है।

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