महात्मा गांधी और ओशो दोनों ही अपने जीवन में सेक्स के विषय पर काफी खुलकर बोले और अपने-अपने तरीके से इस पर प्रयोग किए। हालांकि, उनके दृष्टिकोण और प्रयोगों में काफी अंतर था।
### महात्मा गांधी
1. **ब्रह्मचर्य**: गांधी जी का मुख्य फोकस ब्रह्मचर्य पर था। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करने का संकल्प लिया और इसे आत्मसंयम और आत्मनियंत्रण के रूप में देखा।
2. **प्रयोग**: गांधी जी ने ब्रह्मचर्य के अपने आदर्शों को परखने के लिए कुछ विवादास्पद प्रयोग किए, जिसमें उन्होंने अपनी आत्मसंयम की परीक्षा लेने के लिए महिलाओं के साथ बिना यौन संबंधों के साथ सोना शामिल था।
3. **आध्यात्मिकता**: गांधी जी का मानना था कि ब्रह्मचर्य आत्मा की शुद्धि और आत्म-ज्ञान प्राप्ति के लिए आवश्यक है।
### ओशो (रजनीश)
1. **स्वतंत्रता और स्वीकृति**: ओशो ने सेक्स को मानव जीवन का एक प्राकृतिक और महत्वपूर्ण हिस्सा माना। उनके विचारों में सेक्स की स्वतंत्रता और स्वीकृति का स्थान महत्वपूर्ण था।
2. **संवेदनशीलता**: ओशो ने सेक्स को आध्यात्मिकता की ओर ले जाने वाला एक मार्ग भी माना। उनके अनुसार, सेक्स को पूरी संवेदनशीलता और समझ के साथ अपनाना चाहिए।
3. **ध्यान और ऊर्जा**: ओशो ने अपने अनुयायियों को सेक्स को एक ध्यान प्रक्रिया के रूप में देखने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि सेक्स के माध्यम से भी आध्यात्मिक ऊर्जाओं का अनुभव किया जा सकता है।
### समानताएँ
1. **खुलापन**: दोनों ही सेक्स के विषय पर अपने समय के समाज से अलग और खुलकर बोले।
2. **प्रयोग**: दोनों ने सेक्स और ब्रह्मचर्य के विषय में व्यक्तिगत और सार्वजनिक रूप से प्रयोग किए।
3. **आध्यात्मिक दृष्टिकोण**: दोनों के ही दृष्टिकोण में सेक्स का संबंध आध्यात्मिकता और आत्मज्ञान से जोड़ा गया।
हालांकि, दोनों की सोच और दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण अंतर थे। गांधी जी ने सेक्स पर संयम और आत्म-नियंत्रण पर जोर दिया, जबकि ओशो ने इसे स्वतंत्रता और स्वीकृति के रूप में देखा।
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