रचयिता बलदेव राज भारती
वो कहते हैं कि
हिंदू हिंसक होते हैं।
परन्तु यदि
हिंदू हिंसक होते तो
किसी माई के लाल में
हिम्मत नहीं होती
उन्हें हिंसक कहने की।
वो कहते हैं कि
हिंदू नफरत फैलाते हैं।
परन्तु यदि
हिंदू नफरत फैलाते तो
वो सारी वसुधा को
अपना कुटुंब नहीं बताते।
वो कहते हैं कि
हिंदू असत्य बोलते हैं।
परन्तु यदि
हिंदू असत्य बोलते तो
सत्यवादी हरिश्चंद्र जैसे उदाहरण
हिंदुओं में न मिलते।
हिंदू क्या हैं
ये जानना है तो
तराइन का युद्ध याद करिए।
जमीन पर गिरे हुए गौरी को
जब एक हिन्दू सम्राट पृथ्वी ने
छोड़ दिया था इसलिए
क्योंकि गौरी के हाथ से
उसकी तलवार छिटक गई थी।
और निहत्थे पर वार करना
कायरता मानी जाती है।
देकर अभयदान गौरी को
पृथ्वी ने जिंदा छोड़ दिया था।
अगर पृथ्वी हिंसक होता
तो उसकी तलवार गौरी की गर्दन के
आर पार होती
और तब भारत का इतिहास ही
कुछ और होता।
न गौरी जिंदा होता
न तराइन का दूसरा युद्ध होता।
न निहत्थे पृथ्वी पर गौरी
तलवार चलाता।
न किसी माई के लाल में
भारत की ओर आंख उठाने की
हिम्मत होती।
1556 में भी जब
हेमू की आंख में तीर लगा।
उतरा वह हाथी से तो
उस निहत्थे की गर्दन को
बैरम खान ने बेदर्दी से काट कर
अहिंसा का एक उत्तम उदाहरण
प्रस्तुत किया।
प्रश्न उठता है कि
आखिर इतना सुनने पर भी
हिंदू क्यों है मौन?
उसने खुद को मान लिया हिंसक
वो नहीं तो फिर
हिंसक कौन?