सावन में सोमवार का व्रत रखने से जल्द प्रसन्न होते हैं भोलेनाथ

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सावन के महीने में भोलेनाथ के पूजन का विशेष महत्व है। महीने के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का व्रत-पूजन किया जाता है। हर सोमवार को श्री गणेश, शिव जी, पार्वती जी, और नंदी जी की पूजा करनी चाहिए। जल, दूध, दही, चीनी, धी, मधु, पंचामृत, कलावा, वस्त्र यज्ञोपवीत, चंदन, रोली, चावल, फूल, बिल्वपत्र, दुर्वा, विजिया, धतूरा, कमलगट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप-दीप तथा दक्षिणा सहित भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। कपूर से आरती करके भजन कीर्तन करना चाहिए। भगवान के पूजन के बाद केवल एक बार ही भोजन करने का विधान है। इन दिनों श्रावण महात्मा की कथा भी सुननी चाहिए। इसके अलावा ब्राह्मणों से रुद्राभिषेक का पाठ करना ंभी श्रेयस्कर होता है। इससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर शीघ्र प्रसन्न होकर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
व्रत कथा-
अमरपुर नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। उसका कारोबार दूर देशों में फैला हुआ था। सभी लोग उसका मान सम्मान करते थे, लेकिन व्यापारी बहुत दुखी रहता था, क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था। दिन-रात उसे चिता सताती रहती थी कि उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा? पुत्र पाने की लालसा से वह व्यापारी प्रति सोमवार को भगवान शिव की पूजा व व्रत किया करता था। शाम को व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जला दिया करता था। उस व्यापारी की भक्ति को देख कर एक दिन माता पार्वती जी ने भगवान शिव से कहा कि हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। कितने दिनों से यह सोमवार का व्रत और पूजा नियमित कर रहा है। भगवान आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूरी करें। भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए कहा- हे पार्वती, संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल मिलता है, प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है। इसके बावजूद पार्वती जी नहीं मानी और उन्होंने भगवान से आग्रह करते हुए कहा कि प्राणनाथ आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी चाहिए, क्योकि यह आपका अनन्य भक्त है। प्रति सोमवार आपका विधिपूर्वक व्रत रखता है और पूजा अर्चना के बाद आपको भोग लगाकर एक समय भोजन ग्रहण भी करता है। आपको उसे पुत्र का वरदान अवश्य देना चाहिए। पार्वती जी का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा- तुम्हारे आग्रह पर मैं व्यापारी को पुत्र की प्राप्ति का वरदान देता हूं, लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा। उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर कहा कि उसे पुत्र प्राप्त होगा, साथ ही यह भी बताया कि उसका पुत्र 16 वर्ष तक जीवित रहेगा। भगवान शिव के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, पर पुत्र की अल्प आयु की चिता ने उसकी खुशी को कम कर दिया।
व्यापारी पहले की तरह सोमवार का व्रत करता रहा। कुछ महीने बाद उसके घर अति सुंदर बालक पैदा हुआ। उस पुत्र के जन्म से व्यापारी के घर में खुशियां भर गई। हालांकि व्यापारी को पुत्र जन्म से की अधिक खुशी नहीं हुई, क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु का रहस्य पता था। यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था। एक विद्बान ब्राहमण ने उस पुत्र का नाम अमर रखा। जब अमर बारह वर्ष का हुआ तो शिक्षा के लिए उसे वाराणसी भेजने का निश्चित किया गया। व्यापारी ने अमर के मामा दीपचंद्र को बुलाया और कहा कि अमर को शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी छोड़ आओ। अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए चल दिया। रास्ते में जहां अमर और दीपचंद रात्रि विश्राम के लिए ठहरते थ्ो, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थ्ो। लंबी यात्रा के बाद अमर और दीपचंद्र एक नगर में पहुंचे। उस नगर के राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था। जब बारात आ गई, तब दुल्हे के पिता को चिंता हुई, क्योंकि उसने राजा से दुल्हे की एक आंख न होने की बात छुपाई थी, इस कारण लड़के का पिता बहुत चितित थे। ऐसे में उसे अमर और उसके मामा दीप चंद दिखाई दिए तो उसने प्रस्ताव दिया कि दीप चंद अगर अमर से राजकुमारी से विवाह करा दे तो वह दीपचंद को वह बहुत सारा धन देगा। अमर का विवाह भी हो गया लेकिन जाते समय अमर सच नहीं छुप सका। उसने राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया। राजकुमारी चंद्रिका तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है। मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने के लिए जा रहा हूं। अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा। वह काना है, जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढा तो राजकुमारी काने लड़के के साथ जाने से इंकार कर दिया। राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया। वहीं अमर अपने मामा दीपचंद्र के साथ वाराणसी पहुंच गया। अमर ने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। अमर की आयु 16 वर्ष की पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोज कराया गया और दान दिया। इसके बाद रात को अमर अपने शयनकक्ष में सो गया, भगवान शिव के वरदान के अनुसार सोते-सोते ही अमर के प्राण पखेरु उड़ गए। सूर्योदय पर मामा अमर को मृत देखकर रोने-पीटने लगा। आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुख प्रकट करने लगे। मामा के विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। पार्वती ने भगवान शिव से कहा- प्राणनाथ मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे हैं। आप इस व्यक्ति का कष्ट अवश्य दूर करें। भगवान शिव ने पार्वती के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर अमर को देखा तो पार्वती जी से बोले- हे पार्वती, यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है, मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु तो पूरी हो चुकी है।
पार्वती जी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया कि हे प्राणनाथ, आप इस लड़के को जीवित करें, नहीं तो इसके माता पिता पुत्र की मृत्यु के कारण रो-रो कर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे। इस लड़के का पिता तो आपका परम भक्त है। वर्षों से सोमवार का व्रत करते हुए आपकी पूजा में लगा है, पार्वती जी के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पलों में वह जीवित होकर उठ बैठा। इसके बाद अमर शिक्षा समाप्त करके मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते-चलते हुए उसी नगर में पहुंचे। जिस नगर में अमर का विवाह हुआ था। उस नगर में अमर ने यज्ञ का आयोजन किया। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा। राजा ने अमर को तुरंत पहचान लिया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा अमर और उसके मामा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत सारा धन दान देकर राजकुमारी के साथ विदा किया। रास्ते में सुरक्षा के लिए राजा ने बहुत से सैनिकों को भी साथ भेजा। दीपचंद्र ने नगर में पहुंचते ही एक दूत अमर के पिता के घर को भेजा और उनके आगमन की सूचना भेजी। बेटे अमर को के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था और भूखे-प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह दोनों अपने प्राण त्याग देंगे। व्यापारी अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्बार पर पहुंचा। अपने बेटे का के विवाह का समाचार सुनकर और पुत्र और पुत्रवधु राजकुमारी चंद्रिका को देख कर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में दर्शन देकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैं तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रत कथा के सुनने से प्रसन्न हूं, इसलिए तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है। व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। शास्त्रों में कहा गया है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रत कथा सुनते हैं, उनकी
सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

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