शिमला। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला स्थित संजौली मस्जिद विवाद को लेकर नगर निगम आयुक्त के कोर्ट में शनिवार को सुनवाई हुई। शाम चार बजे शुरू हुई सुनवाई के दौरान निगम कोर्ट ने संजौली मस्जिद की तीन अवैध मंजिलों को गिराने की अनुमति दे दी है। इस अवैध निर्माण को हटाने के लिए दो महीने का समय दिया गया है। वक्फ बोर्ड की देखरेख में ये निर्माण हटाया जाएगा। गत 12 सितंबर को मस्जिद कमेटी ने खुद इन मंजिलों को गिराने की अनुमति मांगी थी। बचे हुए ग्राउंड फ्लोर और पहले हिस्से को लेकर अब मामले की अगली सुनवाई 21 दिसंबर को होगी।
वहीं, कोर्ट ने स्थानीय लोगों को पार्टी बनाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने सीपीसी के नियम- 1/10 के तहत स्थानीय लोगों की अर्जी को समाप्त कर दिया।
इससे पहले सुबह सुनवाई के दौरान इस मामले में अपीयर हुए नगर निगम के वकील राहुल ने कहा कि, श्मामले में तीसरी पार्टी का कोई रोल नहीं है। तीसरी पार्टी की इस केस में कोई जरूरत प्रतीत नहीं होती।
गौरतलब है कि एडवोकेट जगतपाल ठाकुर लोकल रेजीडेंट्स की तरफ से अपीयर हुए हैं। स्थानीय लोग, जिनके घर मस्जिद के समीप हैं, उनकी आपत्तियों को लेकर जगतपाल ठाकुर पेश हुए हैं। पिछली सुनवाई में उन्होंने कहा था कि स्थानीय लोगों का भी पक्ष सुना जाए।
श्री जगतपाल ठाकुर ने आरोप लगाया था, मस्जिद में अवैध तरीके से मदरसा भी चलाया जा रहा है। ये मदरसा बाद में 31 जुलाई को बंद किया गया। वर्ष 2010 से अवैध निर्माण को लेकर नोटिस दिए जा रहे हैं। आठ साल के अंतराल में पांच मंजिलें बना दी गई, ये अवैध निर्माण है। ग्राउंड फ्लोर का जब निर्माण हो रहा था, तभी से नगर निगम की तरफ से नोटिस दिए जा रहे थे।
इस पूरे प्रकरण का मास्टरमाइंड सलीम टेलर है। आलम यह है कि सीसीटीवी के कैमरों का रुख लोकल लोगों के घरों की तरफ किया गया है। आसपास के लोग परेशान हैं। पुलिस भी सांप्रदायिक तनाव के कारण कुछ नहीं कर रही है। मस्जिद में विशेष समुदाय के व्यक्ति की मौत के बाद सपुर्द-ए-खाक की तैयारी के लिए शव को नहलाने की प्रक्रिया यहीं परफॉर्म करने का भी आरोप लगाया गया।
श्री जगतपाल ठाकुर ने सुबह सुनवाई के दौरान कई बिंदुओं पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि 15 साल में 254 (1) के तहत कार्यवाही क्यों नहीं हुई? वर्ष 2010 में ये रिपोर्ट आई थी कि ग्राउंड फ्लोर कानूनी रूप से गलत बना है तो उसके ऊपर इतनी मंजिलें कैसे बनी ? इस दौरान मस्जिद कमेटी की तरफ से कहा गया कि ढाई मंजिल तक का निर्माण वैध हो तो वकील जगतपाल ने कहा कि उसका नक्शा पेश किया जाए।
वहीं, श्री जगतपाल का तर्क था कि 2002-03 में जमीन के आगे कागजों में कोई मस्जिद नहीं है। इसके अलावा 1997-98 की जमाबंदी बताती है कि खसरा नंबर 66 के आगे कोई मस्जिद नहीं है।