सपा-कांग्रेस की रार का बसपा की बल्ले-बल्ले
नई दिल्ली।अब देश की सियासत एक बार फिर करवट लेने वाली है। हाशिए पर गई बसपा को फिर जीवन दान मिलने की संभावना बढ़ गई है। कोई बड़ी बात नहीं होगी, सपा और कांग्रेस साफ हो जाए और बसपा फिर से अपना जनाधार तैयार कर ले। हरियाणा व महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव और यूपी के उपचुनाव में कांग्रेस व सपा के बीच बढ़ी दूरियों का सियासी लाभ बसपा को मिलने की उम्मीद है। पार्टी तेजी से बदले राजनीतिक घटना पर नजर बनाए हुए है। यदि कांग्रेस और सपा के बीच बात नहीं बनी तो इसकी वजह से बनने वाले तीसरे मोर्चा का बसपा अंग बन सकती है। जानकारों की मानें तो वर्तमान में पार्टी को अपना वजूद बचाने और देश की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता को बरकरार रखने के लिए इसकी जरूरत भी है।
दरअसल, बसपा के इतिहास पर नजर डालें तो वर्ष 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में उसे बहुमत मिला था। इससे पहले बसपा दूसरे दलों की मदद से सरकार बनाती रही, जिसका लाभ उसे लोकसभा चुनावों में भी मिलता गया। वर्ष 2012 में बसपा ने फिर अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया, जो गलत साबित हुआ। यही हाल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी हुआ।
वर्ष 2019 में बसपा ने सपा के साथ गठजोड़ कर लोकसभा चुनाव लड़ा और 10 सांसदों वाली पार्टी बनी। हालांकि इसके बाद वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव और 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने से उसे भारी नुकसान का सामना करना पड़ गया। अब पार्टी की उम्मीदें तीसरा मोर्चा बनने पर टिकी हैं।
ममता कर सकती हैं राजी
यूं तो बसपा सुप्रीमो मायावती सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है लेकिन तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दोनों दलों को एक मंच पर ला सकती हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस को दरकिनार कर अगर तीसरा मोर्चा बना तो ममता बनर्जी उसकी निर्विवाद नेता बन सकती हैं। पहले उन्हें मायावती से चुनौती मिलने के जो समीकरण बने थे, वो बीते चुनावों में बसपा के लगातार घटते जनाधार की वजह से ध्वस्त हो चुके हैं। अब बसपा को अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने के लिए दूसरे दलों का सहारा लेना पड़ सकता है।