गुरुवार 10 अप्रैल को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। इस शुभ अवसर पर प्रदोष व्रत मनाया जाता है। प्रदोष व्रत के दिन देवों के देव महादेव और मां पार्वती की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव मां पार्वती की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है।
प्रदोष व्रत का फल दिन अनुसार मिलता है। गुरु प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने से शत्रुओं का नाश होता है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साधक श्रद्धा भाव से प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करते हैं। अगर आप भी शत्रुओं पर विजय पाना चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत के दिन शिव-शक्ति की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करें।
शिव रक्षा स्तोत्र
चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम्।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम्॥
गौरीविनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम्।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः॥
गंगाधरः शिरः पातु भालं अर्धेन्दुशेखरः।
नयने मदनध्वंसी कर्णो सर्पविभूषण॥
घ्राणं पातु पुरारातिः मुखं पातु जगत्पतिः।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कंधरां शितिकंधरः॥
श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः।
भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक्॥
हृदयं शंकरः पातु जठरं गिरिजापतिः।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बरः॥
सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सलः।
उरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः॥
जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः।
चरणौ करुणासिंधुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः॥
एतां शिवबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स भुक्त्वा सकलान्कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात्॥
ग्रहभूतपिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।
दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात्॥
अभयङ्करनामेदं कवचं पार्वतीपतेः।
भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम्॥
इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽऽदिशत्।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यः तथाऽलिखत॥
शिवजी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा,स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
एकानन चतुराननपञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासनवृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
दो भुज चार चतुर्भुजदसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखतेत्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
अक्षमाला वनमालामुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारीकर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
श्वेताम्बर पीताम्बरबाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिकभूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
कर के मध्य कमण्डलुचक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारीजगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
ब्रह्मा विष्णु सदाशिवजानत अविवेका।
प्रणवाक्षर मध्येये तीनों एका॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
लक्ष्मी व सावित्रीपार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी,शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
पर्वत सोहैं पार्वती,शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन,भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
जटा में गंगा बहत है,गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत,ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
काशी में विराजे विश्वनाथ,नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत,महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
त्रिगुणस्वामी जी की आरतीजो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी,मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा…