नैमिषारण्य (या नैमिष्यारण्य) भारत के प्राचीनतम तीर्थ स्थलों में से एक है, जो उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित है। यह स्थान हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है और अनेक पुराणों तथा शास्त्रों में इसकी महिमा का वर्णन किया गया है।
🌿 नैमिषारण्य क्षेत्र की महिमा:
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ऋषियों की तपोभूमि:
नैमिषारण्य को वह पावन वन माना गया है जहाँ सैकड़ों ऋषियों ने तप किया और यहीं पर सूत जी ने ऋषियों को पुराणों की कथा सुनाई।Advertisment -
सत्य युग से जुड़ा स्थान:
मान्यता है कि यह स्थान भगवान विष्णु की चक्र तीर्थ स्थली है, जहाँ उनका सुदर्शन चक्र गिरा था। यही कारण है कि इसे “नैमिष” कहा जाता है, जिसका अर्थ है — वह क्षण जिसमें ब्रह्मा का एक निमेष (पल) होता है। -
पुराणों का उद्गम स्थल:
ऐसा माना जाता है कि सभी 18 महापुराणों का श्रवण यहीं हुआ था। यह स्थान वेद, उपनिषद, पुराण और स्मृति ग्रंथों के अध्ययन व मनन का केन्द्र रहा है। -
चक्रतीर्थ:
यहाँ का प्रमुख तीर्थस्थल “चक्रतीर्थ” है, जहाँ एक जल कुंड है और मान्यता है कि इसमें स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
🙏 दर्शन-पूजन और ध्यान का फल:
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पापों का नाश:
नैमिषारण्य में चक्रतीर्थ पर स्नान और ध्यान करने से जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश होता है। -
मोक्ष की प्राप्ति:
यहाँ श्रद्धा से पूजन करने पर मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है — यह बात स्कंद पुराण, वराह पुराण आदि में भी कही गई है। -
ज्ञान और आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति:
साधक को यहां ध्यान और जप करने से विशेष शांति, स्थिरता और दिव्य ऊर्जा का अनुभव होता है। -
कुल उद्धार का स्थान:
यहाँ पूजन से न केवल स्वयं का कल्याण होता है, बल्कि पूर्वजों की आत्मा को भी शांति मिलती है।
📜 पुराणों में उल्लेख:
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स्कंद पुराण में नैमिषारण्य को “तीर्थराज” कहा गया है।
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श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रारंभ में ही नैमिषारण्य में हुए शौनक आदि ऋषियों के यज्ञ और कथा का वर्णन मिलता है।
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रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने भी नैमिषारण्य का महात्म्य वर्णन किया है।