अक्षय तृतीया की संक्षिप्त पूजा विधि

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🌼 अक्षय तृतीया की संक्षिप्त पूजा विधि

  1. स्नान और संकल्प:
    प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा का संकल्प लें।

  2. वेदी स्थापना:
    घर में किसी पवित्र स्थान पर गंगाजल से स्थान को शुद्ध करें। वहाँ लकड़ी की चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।

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  3. पूजन सामग्री:
    पुष्प, चंदन, अक्षत (चावल), धूप, दीप, नैवेद्य (मिठाई या फल), तुलसी पत्र और जल से भरा कलश तैयार रखें।

  4. भगवान विष्णु की पूजा:
    भगवान विष्णु को पीले पुष्प अर्पित करें, पीले वस्त्र पहनाएँ (यदि संभव हो), और तुलसी दल चढ़ाएँ। दीपक जलाकर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।

  5. लक्ष्मी माता की पूजा:
    माँ लक्ष्मी को कमल पुष्प या सफेद फूल अर्पित करें और मिठाई का भोग लगाएं। “ॐ श्रीं श्रीये नमः” मंत्र का जप करें।

  6. पितरों का स्मरण:
    एक दीपक जलाकर पितरों का स्मरण करें और “ॐ पितृभ्यो नमः” का जाप करें।

  7. दान और पुण्य:
    सामर्थ्यानुसार अन्न, वस्त्र, जल, छाता, स्वर्ण अथवा दक्षिणा दान करें।

  8. आरती और प्रार्थना:
    विष्णु जी और लक्ष्मी जी की आरती करें और परिवार के सुख, समृद्धि, और पितरों की शांति की प्रार्थना करें।

📜 अक्षय तृतीया व्रत कथा (संक्षिप्त रूप)

प्राचीन काल में सतयुग में राजा रंतिदेव ने अक्षय तृतीया के दिन दान-पुण्य का महान व्रत किया था। उन्होंने निर्धनों, अतिथियों, और ब्राह्मणों को अन्न, जल, स्वर्ण, गौ आदि का दान दिया।
उनकी भावना इतनी पवित्र थी कि स्वयं भगवान विष्णु उनके द्वार पर भिक्षा मांगने आए। रंतिदेव ने उन्हें भी श्रद्धापूर्वक दान दिया।
इस पुण्य प्रभाव से राजा रंतिदेव को अक्षय फल (जिसका कभी क्षय न हो) की प्राप्ति हुई और वे स्वर्गलोक को प्राप्त हुए।
इस दिन से यह मान्यता बन गई कि अक्षय तृतीया पर किया गया पुण्य, जप, तप, स्नान, दान कभी समाप्त नहीं होता, और उसका फल अनंत काल तक मिलता है।

🔔 विशेष ध्यान दें:

  • इस दिन खरीदी गई वस्तुएँ (सोना, चांदी, अन्न आदि) भी अक्षय मानी जाती हैं।

  • नए कार्य, विवाह, मुहूर्त आदि के लिए भी यह दिन अत्यंत शुभ होता है।

ध्यानार्थ- अक्षय तृतीया की कथा और व्रत पूजन के संदर्भ में आपको किसी योग्य ब्राह्मण से परामर्श आवश्य करना चाहिए, उससे कथा और व्रत के बारे में विस्तार से समझना चाहिए, यहां हम मात्र सांकेतिक रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं। योग्य ब्राह्मण का आशय यह है कि जो दैनिक रूप वेद और गायत्री मंत्रादि का पठन-पाठन करता हो, सन्मार्गी हो। 

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