भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाएं मन में अमिट छाप छोड़ने वाली है। वह लीलाओं के माध्यम से जीवन के विविध संदेश सहजता से दे देते हैं। विशेषतौर पर बाल सखाओं के साथ उनके खेल मंत्रमुग्ध करने वाले हैं। भगवान श्री कृष्ण के बालकाल की एक घटना हम आपको बताते हैं, जिसमें श्री कृष्ण और उनके सखाओं के बीच आपसी प्रेम आपको छलकता प्रकट होगा।
द्बापरयुग की बात है कि श्री कृष्ण अपने बाल सखाओं के साथ गोचारण करने के लिए वन में गए थे। चूंकि श्री कृष्ण से सभी स्नेह करते थे और उन्हें खाने के लिए माखन, मिश्री व लड्डू आदि खाने के लिए अक्सर ही दिया करते थे। इस पर उनके एक सखा मधुमंगल ने हंसते हुए भगवान श्री कृष्ण से कहा कि प्रिय सखा, अगर तुम मुझे अपना पीत वस्त्र, मोरमुकुट व मुरली दे दो तो सभी गोपियां मुझसे प्रेम करेंगी।
मुझे भी रसीले लड्डू व माखन खिलाएंगी। तब तुम्हें कोई पूछेगा भी नहीं। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने मुस्कुरा कर कहा कि ठीक तुम यह ले लो। यह कह कर श्री कृष्ण ने अपना मोरपंख, पीताम्बर, मुरली व लकुटी सखा मधुमंगल को देकर उसे सजा दिया और उसके वस्त्र पहन कर स्वयं घूमने लगे। श्री कृष्ण की तरह श्रृंगार कर उनका मित्र मधुमंगल इठला-इठला कर इधर-उधर घूमने लगा।
वह भगवान श्री कृष्ण की वेशभूषा धारण करके घूम ही रहा था कि अत्यन्त शक्तिशाली केशी दैत्य विशाल घोड़े का रूप धारण कर कृष्ण वध के लिए वहां पहुंचा। उनके भगवान श्री कृष्ण की वेशभूषा में सजे मधुमंगल को कृष्ण समझ लिया और उस पर अपने पिछले पैरों से हमला बोल दिया, लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने उसे बचा लिया।
मधुमंगल को केशी महादैत्य के पिछले पैरों से चोट तो नहीं लगी लेकिन वह अत्यन्त भयभीत हो गया। केशी के वध के बाद वह सहमा हुआ भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचा और मुरली-मुकुट-पीताम्बर आदि लौटाते हुए कहा कि मुझे लड्डू नहीं चाहिए। प्राण बचे तो लाखों पाए। इस पर वहां मौजूद अन्य ग्वाल-बाल हसने लगे। इस पर मधुमंगल लज्जित हुआ। आज भी केशी घाट पर इस लीला के चिन्ह मौजूद है।