सूर्य नमस्कार क्यों है जरूरी, जानिए लाभ

0
2523

सूर्य भगवान की कृपा जिस जीव पर होती है, उसे जीवन में किसी चीज का अभाव नहीं रहता है। सूर्य देव अगर प्रसन्न हो जाते हैं तो मनुष्य को मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। सूर्य देव का प्रात: नमस्कार की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है। यह परम्परा वैज्ञानिक दृष्टि से लाभकारी है। सूर्यादय होते सूर्य को देखना नेत्र विकारों को दूर करने वाला है। प्रात:काल हर व्यक्ति को सूर्य नमस्कार करना चाहिए, इससे जीवन में शुभता की प्राप्ति होती है। यश-कीर्ति में वृद्धि होती है। जीवन के संकट दूर होते हैं। मन में सात्विकता की प्रधानता होती है। नित सूर्य नमस्कार करने से विचारशीलता बढती है और जीवन में सकारात्मकता का उदय होत है।

Advertisment

सूर्य ऐसे देव है, जो कि कलयुग में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते हैं। सूर्य नमस्कार की परंपरा का वैज्ञानिक तर्क यह है कि जल चढ़ाते समय पानी से आने वाली सूर्य की किरणें, जब आंखों हमारी में पहुंचती हैं तो आंखों की रोशनी अच्छी होती है। साथ ही सुबह की धूप भी हमारी त्वचा के लिए भी लाभकारी है। सनातन शास्त्रों की मान्यता है कि सूर्य को जल चढ़ाने से घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान मिलता है। कुंडली में सूर्य के अशुभ फल समाप्त होते हैं।

प्रतिदिन सुबह उठें और स्नान करके स्वच्छ कपड़े धारण करने के चाहिए। इसके उपरान्त शुद्ध मिट्टी से माजे हुए तांबे के बर्तन में जल व लाल चंदन मिलये। इसके पश्चात निम्न उल्लेखित मंत्र का जप करते हुए अध्र्य देना चाहिए। अध्र्य देते समय पानी पैरों पर नहीं आना चाहिए। अध्र्य देते समय दोनों हाथ सीधे होने चाहिए।
मंत्र है-
ऊॅँ घूणि सूर्याय नम:।
इसके उपरान्त भूमि पर पड़े जल को झुक कर अपनी अंगुलियों से आंखों की पुतलियों पर लगा लें। सूर्य भगवान से मंगलकामना करते हुए लाल चंदन का तिलक माथे पर धारण करना चाहिए। ताम्बे का कड़ा पहनना भी लाभप्रद रहता है।

आप निम्न उल्लेखित मंत्र का नित्य जाप भी कर सकते हैं। लाभकारी होगा।
मंत्र है-

नम:सूर्याय नित्याय रवयेर्काय भानवे।
भास्कराय मतङ्गाय मार्तण्डाय विवस्वते।।

सूर्य नमस्कार के अन्य मंत्र-

सूर्य नमस्कार मंत्र 13 हैं, सूर्य नमस्कार मंत्र पढ़ने से सूर्य नमस्कार करने का लाभ और भी बढ़ जाता जाता है।  मन और शरीर की  नकारात्मकता दूर होती है और शरीर को पॉजिटिव ऊर्जा मिलती है.

ॐ मित्राय नमः , ॐ रवये नमः, ॐ सूर्याय नमः, ॐ भानवे नमः, ॐ खगाय नमः, ॐ पूष्णे नमः, ॐ हिरण्यगर्भाय नमः, ॐ मरीचये नमः, ॐ आदित्याय नमः, ॐ सवित्रे नमः, ॐ अर्काय नमः, ॐ भास्कराय नमः व ॐ श्री सवितृसूर्यनारायणाय नमः।

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here