मां स्कन्दमाता की अराधना से मन में जागृत होता है विशुद्ध चक्र

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माता स्कन्दमाता की अराधना नवरात्रि के पांचवें दिन करने का विधान है। योगी नवरात्रि के पांचवें दिन विशुद्ध चक्र में अपना मन स्थिर करते हैं। यही चक्र जीवों में स्कन्दमाता का स्थान है। मां स्कन्दमाता भक्त को ज्ञान प्रदान करती है। स्कन्दमाता ज्ञान व क्रिया के स्रोत, आरम्भ का प्रतीक मानी गई हैं।

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ये भक्त को ज्ञान प्रदान करने वाली है। भक्त अपने इसी ज्ञान को कर्म में परिवर्तित करते हैं। भगवती के इस स्वरूप इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागन है। जब ब्रह्माण्ड में व्याप्त शिव तत्व इस त्रिशक्ति के के साथ होता है तो स्कन्द का जन्म होता है। माता ज्ञान प्रदान कर क्रिया को सही दिशा में करने की शक्ति प्रदान करती है। ये भगवान स्कन्द यानी कुमार कार्तिकेय की माता हैं। सिंह पर सवार चार भुजाओं वाली स्कन्दमाता की साधना करने वाले साधक को माँ की कृपा से मृत्युलोक में ही स्वर्ग के समान सुख एवम शान्तिका अनुभव होती है।

स्कन्दमाता की चार भुजाएं हैं। ये अपनी गोद में भगवान स्कन्द को बिठाये रखती है। दाहिनी ओर की ऊपर वाली भुजा से धनुष वाणधारी, छह मुख वाले बाल स्कन्द को पकड़े रहती हैं। बायीं ओर की ऊपर वाली भुजा आर्शीवाद व वर प्रदाता मुद्रा में रखती हैं। नीचे वाली दोनों ओर की भुजाओं में माता कमल का पुष्प रखती हैं। इनका वर्ण पूरी तरह से सफेद निर्मल और कांतिमय है। ये कमलासन पर विराजती हैं। इनका वाहन सिंह है। कमलासन वाले इस स्वरूप को पद्मासना भी कहा जाता है। यह वात्सल्य विग्रह है, इसलिए वात्सल्य विग्रह है, इसलिए ये शस्त्र नहीं धारण करती हैं। इनकी कांति का अलौकिक प्रभामंडल इनके उपासक को भी मिलता है। इनकी उपासना से साधक को मृत्युलोक में ही परमशांति व सुख की प्राप्ति सहज ही हो जाती है।

नवरात्रि के पांचवे दिन भगवती के इस वात्सल्यमय स्वरूप को केले का भोग लगाना चाहिए या फिर इसे प्रसाद रूप में दान करना चाहिए। इससे सदा का कल्याण होता है। उसे पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। भगवती का यह पावन स्वरूप ज्ञान की प्राप्ति कराने वाला है, जो कि साधक को सद्कर्म पथ पर ले जाकर सुख व आनंद की अनुभूति कराते हुए सफलता प्रदान करता है।

देवी स्कंदमाता का साधना मंत्र

ओम देवी स्कंदमातायै नम:

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