मां कात्यायनी का भक्त बनता है निर्भय

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पूर्ण समर्पण व भक्ति भाव से मां कात्यायनी की उपासना से भक्त को सहजता से अर्थ, धर्म,काम व मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। सच्चे साधक को माता दर्शन देकर कृतार्थ करती है। मां कात्यायनी सुनहरे व चमकीले वर्ण वाली, चार भुजा वाली और आभूषणों से अलंकृत रहती है। उनका वाहन सिंह खुंखार व झपट लेने वाली मुद्रा में रहता हैं। इनका आभामंडल विभिन्न देवों के तेज से मिश्रित इंद्रधनुषी छटा देता है। सभी प्राणियों में इनका वास आज्ञा चक्र में होता है।

नवरात्रि के पांचवें दिन साधक आज्ञा चक्र में लगाते हैं। माता कात्यायनी की दाहिने ओर की ऊपर वाली भुजा अभय देने वाली मुद्रा में और नीचे वाली भुजा वर देने मुद्रा में है। बायीं ओर की ऊपर वाली भुजा में तलवार यानी चंद्रहास खड्ग धारण करती हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का फूल रहता है। नवरात्रि के छठे दिन कात्यायनी के स्वरूप की पूजा की जाती है। साधक के मन में आज्ञा चक्र स्थित होता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का महत्व है। इस चक्र में साधक भगवती कात्यायनी को अपना सर्वस्व अर्पण कर देता है।

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पूर्ण आत्मदान करने वाले साधक को भगवती के दर्शन प्राप्त होते है। भगवती का यह स्वरूप अर्थ, धर्म, काम व मोक्ष प्रदान करने वाला है। माता की कृपा से भक्त के रोग, शोक, संताप व भय का नाश होता है। उसके तेज में वृद्धि होती है। माता के कात्यायनी स्वरूप का पूजन-अर्चन कर नवरात्रि के छठे दिन माता को प्रसन्न करने के लिए मधु यानी शहद का भोग लगाकर स्तवन करने से साधक को सुंदर यौवन प्राप्त होता है। साथ ही माता उसके घर में लक्ष्मी के रूप में वास करती है।

देवी कात्यायनी का साधना मंत्र

ओम देवी कात्यायन्यै नम:

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