महाराष्ट्र में सरकार के गठन को लेकर भारतीय जनता पार्टी के पास शिवसेना से हाथ मिलाने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा है। भाजपा को बखूबी मालूम है कि उसके पास बहुमत नहीं है और अल्पमत के साथ अगर वह सरकार बनाती है तो शिवसेना को कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का बहाना मिल जाएगा। यह स्थिति भाजपा के लिए भविष्य की राजनीतिक दृष्टि से अच्छी नहीं होगी। इसका अंदाजा भाजपा के कद्दावर नेताओं को भी है।
सूत्र बताते है कि उपरी तौर बेशक दोनों ही दल आंखे तरेर रहे हो, लेकिन भीतरखाने में एक-दूसरे से मिलकर सरकार बनाने का विकल्प तलाश रहे हैं, ताकि दोनों की सियासी जमीन न सरके। महाराष्ट्र में सरकार के गठन को लेकर दो विकल्प हैं। पहला विकल्प तो यह कि भाजपा और शिवसेना के बीच समझौता हो जाए, लेकिन दूसरा विकल्प यह है कि शिवसेना एनसीपी के साथ मिलकर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाए। हालांकि दूसरे विकल्प में परेशानी यह है कि शिवसेना दोनों ही पार्टियों की धुर-विरोधी रही हैं। यही शिवसेना की मूल समस्या है, सूत्र भी इसी ओर इशारा करते हुए बताते हैं कि यही शिवसेना की मजबूरी है, जो उसे भाजपा से अब भी पुन: हाथ मिलाने को बाध्य कर सकती है। भाजपा के दिग्गज भी शिवसेना की इस कमजोरी से वाकिफ है, इसीलिए तनातनी का खेल जारी रखे हुए हैं।
खास बात यह है कि पहले विकल्प के तहत सरकार बनाने के लिए शिवसेना को भाजपा से मुख्यमंत्री पद की मांग छोड़नी पड़ेगी या फिर भाजपा ने शिवसेना से 5०-5० के फॉर्मूले को लेकर जो वादा किया है उसे पूरा करे। यह उसकी सियासी मजबूरी होगी। अगर इन दोनों विकल्पों में से किसी एक पर भी सहमति नहीं बनती है तो फिलहाल 9 नवंबर से एक दिन पहले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 9 नवंबर को विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है।
दूसरी ओर राज्यपाल भगत सिह कोश्यारी उन्हें नई सरकार बनने तक केयरटेकर मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त कर सकते हैं, ताकि सरकार बनाने की अन्य कोशिशों पर विचार किया जा सके। अगर सरकार के गठन को लेकर कुछ प्रगति नहीं होती है तो राज्यपाल महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकते हैं। ऐसा होने पर 9 नवंबर के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा।