देश में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया है। अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनेगा। उच्चतम न्यायालय ने सत्तर साल से कानूनी लड़ाई में उलझे अयोध्या भूमि विवाद मामले में अपना फैसला शनिवार को सुना दिया। न्यायालय ने अपने फैसले में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करते हुए विवादित भूमि न्यास को सौंपने और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में ही किसी दूसरे स्थान पर पांच एकड़ भूमि देने का फैसला सुनाया।
खचाखच भरे न्यायालय कक्ष संख्या एक में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने खुद करीब 45 मिनट में पूरे फैसले को पढ़ा। अदालत ने फैसले में केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह तीन महीने के भीतर सेंट्रल गवर्नमेंट ट्रस्ट की स्थापना करे और विवादित स्थल को मंदिर निर्माण के लिए सौंप दे, जिसके प्रति हिदुओं का मानना है कि भगवान राम का जन्म वहीं पर हुआ था। न्यायालय ने यह भी कहा कि अयोध्या में पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रदान करे।
शीर्ष न्यायालय ने अपने निर्देश में यह भी स्पष्ट किया है कि मस्जिद का निर्माण भी किसी प्रतिष्ठित जगह पर ही होना चाहिए। पीठ ने कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अधिकार राम लला की मूर्ति को सौंप दिया जाए, हालांकि इसका कब्जा केंद्र सरकार के रिसीवर के पास ही रहेगा। बता दें कि देश के इस सबसे पुराने विवाद ने सामाजिक ताने-बाने को तार-तार कर दिया था।
उच्चतम न्यायालय ने निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करते हुए रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही पक्षकार माना। इतना ही नहीं उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्बारा विवादित भूमि को तीन पक्षों में बांटने के फैसले को अतार्किक बताया। न्यायालय ने कहा कि विवादित स्थल पर रामलला के जन्म के पर्याप्त साक्ष्य हैं और अयोध्या में भगवान राम का जन्म हिन्दुओं की आस्था का मामला है और इस पर कोई विवाद नहीं है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा राम लला की मूर्ति का उपासक या सेवादार नहीं है। निर्मोही अखाड़े का दावा कानूनी समय सीमा के तहत प्रतिबंधित है। फैसला आने के बाद रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि अयोध्या का फैसला लोगों की जीत है। वहीं फैसले में विरोधाभास का जिक्र करते हुए सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जीलानी ने इस मामले में पुनर्विचार याचिका दायर करने की मंशा जाहिर की। दूसरी ओर, निर्मोही अखाड़े ने कहा कि उसका दावा खारिज किये जाने का उसे कोई दु:ख नहीं है।
उल्लेखित है कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ ने राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील इस मुकदमें की 4० दिन तक मैराथन सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि इसे किसी एक पक्ष की जीत की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। गृहमंत्री अमित शाह ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि यह अभूतपूर्व फैसला है। बाबा रामदेव ने भी फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने अपील की है कि सभी लोग सद्भाव बनाए रख्ों। प्रदेश सरकार सद्भाव व शांति बनाए रखने के लिए कटिबद्ध है। दूसरी ओर भाजपा की कद्दावर नेता उमा भारती ने भी कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है, फैसला आने के बाद वह सीधे भाजपा के पूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवानी से मिलने पहुंची। इस दौरान पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि यह आडवानी जी की पहल का नजीजा सामने आया है। उन्होंने लोगों से शांति की अपील करते हुए न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि आज एक बहुत ही बड़ा दिन है। यह फैसला निश्चित रूप से ऐतहासिक साबित हुआ है।