कर्मों के फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ता है। धृतराष्ट्र के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। यह उसके पूर्व जन्म का ही फल था कि उसे अपनी आंखों के सामने सौ पुत्रों को मरते हुए देखना पड़ा था। महाभारत का युद्ध जब समाप्त हो गया, तब महाराज धृतराष्ट्र ने भगवान वेदव्यासजी महाराज से पूछा कि हे महाराज, मेरे सौ पुत्र मेरे सामने मारे गए। मुझे इस बात पर बड़ा ही आश्चर्य है। मुझे अपने पिछले सौ जन्मों का स्मरण है, मुझे ज्ञात है कि मैने पिछले सौ जन्मों में कोई पाप नहीं किया है। फिर भी मेरे सौ पुत्र मेरे ही सामने मारे गए।
व्यास जी बोले कि हे मूर्ख, बस कर, जब से सृष्टि बनी है, तब से ही तू जन्म ले रहा है। न जाने कब-क्या किया होगा तूने। इस पर धृतराष्ट्र बोले कि हे महाराज आप ही बताओं, अब तो मेरे अंदर का अंधेरा भी दूर हो चुका है। तब व्यास जी बताया कि सौ जन्मों से पहले तू भारत का एक धार्मिक राजा हुआ करता था। तू परम प्रतापी भी था। तब रामेश्वरम जाते समय मानसरोवर के हंसों ने तेरे बाग में अपने परिवार के साथ बसेरा डाल दिया। एक हंस की हंसिनी गर्भवती हो गई थी। वह तुम्हारे पास आया और तुमसे निवेदन किया कि मैं अपनी गर्भवती पत्नी को बाग में छोड़ कर जा रहा हूं। यह कह कर वह हंस रामेश्वरम चला गया।
इधर हंसिनी बच्चों को जन्म दिया। उसके सौ बच्चे हुए। तुमने उन्हें चुगने के लिए मोती दिये। एक एक दिन तुम्हारे रसोइये ने एक हंस के बच्चे को पकाकर तुझे खिला दिया। तुम्हें वह बहुत ही स्वादिष्ट लगा। तुमने बिना कोई विचार किये यह आज्ञा दी कि इसी प्रकार का मांस पकाया जाए। इसके बाद तो प्रतिदिन ऐसा ही मांस पकाया जाने लगा। अब देखों, जीभ इंद्रिय ने बल पकड़ा, तुमने यह भी पूछा कि यह क्या है। कहां से मिल रहा है। तुम मोह में अंधे हो गए। प्रतिदिन मांस की इच्छा करने लगे। इस तरह से हंसिनी के सौ बच्चें तुमने खा लिये। वह हंसिनी अकेली रह गई। हंस रामेश्वरम से वापस आया और हंसिनी से इस बारे में पूछा।
तब उसने सारी बात बताई और कहा कि राजा से पूछो। हंस ने राजा से कहा कि तुमने मेरे सौ बच्चों का मांस खा लिया। राजा ने रसोइयों को बुलाकर पूछा। उसने कहा कि महाराज यह आपकी आज्ञा थी, इसलिए मैने नित्य बनाया। राजा धर्मात्मा था, इसलिए इस भयंकर पाप से घबरा गया। तब हंस व हंसिनी कहा कि तूने अंधे होकर यह काम किया है, तू अंधा हो जाएगा और तेरे सामने तेरे सौ पुत्र मारे जाएंगे।
ऐसा कहकर हंस-हंसिनी ने भी प्राण त्याग दिये। व्याज जी तब बोले कि हे राजन, सौ जन्म तक तू राजा औ वह रानी एक साथ नहीं हुए। अब तुम दोनों इस जन्म में राजा और महारानी बने हो तो यह घटना घटित हुई है। यह वास्तव में उस जन्म के कर्म का फल तूझे प्राप्त हुआ है।