यदि सच्चे मन-भाव से महालक्ष्मी का पूजन अर्चन किया जाए तो वे सभी मनोकामनाओं को पूरी करती हैं। चराचर जगत में उनकी माया के प्रभाव से जीव बंध्ो हुए हैं। ऐसी महालक्ष्मी जिस पर प्रसन्न होती है, वह उसकी सभी कामनाओं को पूरा करती हैं। महालक्ष्मी स्तोतम् से वह शीघ्र प्रसन्न होती हैं। ऐसी मोक्षदायिनी महालक्ष्मी स्तोत्रम् का भावर्थ कुछ प्रकार है-
महामाया,श्री पीठ, विश्व के द्बारा पूजित तुम्हें नमस्कार है। शंख, चक्र, गदा से सुशोभित महालक्ष्मी तुम्हें नमस्कार है।
गरुण के ऊपर विराजमान, कोह्लासुर को भय प्रदान करने वाली, कौमारी, वैष्णवी, ब्राह्मी व महालक्ष्मी तुम्हें नमस्कार है।
हमेशा सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली, भोग व मोक्ष देने वाली, मंत्र स्वरूपा, सदा वंदनीय महालक्ष्मी तुम्हें नमस्कार है।
आदि व अंत से रहित देवी, आदिशक्ति, महेश्वरी, योगिनी, योग से उत्पन्न होने वाली महालक्ष्मी तुम्हें नमस्कार है।
कमल के समान नेत्र वाली, परमेश्वरी, महामाया, महालक्ष्मी तुम्हें नमस्कार है।
श्वेत वस्त्र को धारण करने वाली, विविध विविध प्रकार के आभूषणों से विभूषित, मंत्र स्वरूपा, सदा वंदनीय महालक्ष्मी तुम्हें नमस्कार है।
स्थूल, सूक्ष्म, महाभयंकर, महाशांति से युक्त, महान उदर वाली, महापापों को दूर करने वाली देवी महालक्ष्मी तुम्हें नमस्कार है।
जो मनुष्य इस महालक्ष्म्याष्टक को भक्तिपूर्वक पढ़ता है, वह निरंतर दुख दरिद्र से रहित होकर शांति और राज्य को प्राप्त करता है।
एक बार पढ़ने से बड़े-बड़े पाप का नाश होता है। नित्य दो बार पढ़ने से सभी प्रकार के शत्रुओं का विनाश होता है, तीन बार पढ़ने से निश्चित ही प्रसन्नता मिलती है और निरंतर पढ़ने से दरिद्रता कभी उत्पन्न नहीं होती है।
सभी प्रकार के मंगल अमंगल में कल्याण करने वाली, सभी प्रकार की सिद्धि देने वाली त्रयंबके, गौरी, नारायणी, महालक्ष्मी को नमस्कार है।
इतिश्री अथ श्री महालक्ष्मी स्तोत्रम
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