शिवलिंग पर ऐसे चढ़ाने चाहिएं बिल्व पत्र, तब मिलेगा पूर्ण फल

1
1823

भगवान शंकर की पूजा में बिल्व पत्र अद्भुत महत्त्व है। पुराणों में भी बिल्व पत्र की महिमा का बखान किया गया है।
शास्त्रों में यहां तक लिखा गया है कि जिस देशकाल में बिल्व की प्राप्ति होती हो, वहां बिना बिल्व पत्र के भगवान शंकर की पूजा नहीं करनी चाहिए। ऐसी पूजा निष्फल रहती है।
माना जाता है कि जिस देश में बिल्व पत्र सुविधा से प्राप्त हो सकता है। वहां सदा ही शिव पूजन में ताजा बिल्व पत्र प्रयोग करना चाहिए, यह भी ध्यान देना चाहिए कि बिल्व पत्र छिद्र युक्त या कटा-फटा न हो। छिद्रयुक्त या अपूर्ण पत्र से पूजा करना भी निष्फल व पुण्यहीन है और दोष भी लगता है।
बिल्व पत्रों को शिव पूजन के समय शुद्ध जल से धोकर अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए और उस पत्र पर चंदन से ओम नम: शिवाय…. इस पंचाक्षर मंत्र को लिखकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए शिव पूजा करनी चाहिए। इससे मनुष्य पापों से मुक्त होता है और शिवलोक की प्राप्ति होती है।

बिल्व पत्र को अमावस्या, चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी, संक्रांति, अष्टमी व सोमवार के दिन किसी भी सूरत में नहीं तोड़ना चाहिए। इससे मनुष्य महादोष का भागी होता है और घोर नरक को प्राप्त करता है। भगवान शंकर उस व्यक्ति से अप्रसन्न ही होते हैं।

Advertisment

बिल्व पत्र के अभाव में जहां पर नए बिल्व पत्र किसी भी दशा में उपलब्ध नहीं हो सकते हैं, वहां शुष्क व पुराने बिल्व पत्रों से ही शिव पूजन का विधान है।
वैसे पूजन कार्य में पुराने व बासी पुष्प लेने का विधान नहीं है, लेकिन अपवाद रूप में गंगा जल, तुलसी के दल या पत्र, कमल के पुष्प व बिल्व पत्र को पुराना नहीं माना जाता है। इसलिए ताजे बिल्व पत्र के अभाव में पुराने बिल्व पत्रों का भी प्रयोग कर सकते हैं।

यदि भक्त चाहें तो बिल्व पत्र एक साथ भी तोड़ कर रख सकता हैं, क्योंकि एक बार का तोड़ा हुआ बिल्व पत्र चालीस दिन तक खराब नहीं होता है।
यदि कभी ऐसा भी सम्भव हो जाए कि ताजा बिल्व पत्र प्राप्त न हो सके तो उस दशा में चढ़ाए गए पुराने बिल्व पत्र को ही पवित्र जल से धोकर उससे पुन: शिव पूजन किया जा सकता है या फिर यदि कहीं किसी समय ताजे बिल्व पत्र प्राप्त न हो सके या कोई ऐसा देश जहां पर बिल्व पत्र प्राप्त न होता हो, या फिर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध न हो, इस दशा में शुष्क बिल्व पत्र कोे चूर्ण करके रख लेना चाहिए। उसी बिल्व चूर्ण से शिव पूजन करना चाहिए।
जब पुरुष बिल्व पत्र, बिल्व पुष्प या बिल्व फल से शिव पूजन करे तो शिवलिंग पर पुष्प का मुख ऊपर की ओर करके चढ़ाए। पत्र को नीचे मुख करके चढाये और बिल्व फल को वह जिस दशा में ही उत्पन्न हुआ हो, उसी दशा में चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य सभी प्रकार के जाने-अंजाने में किए गए दुष्कर्मो के दोषों से मुक्त होता है।

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here