जैन धर्म में आत्म कल्याण के लिए जो प्रार्थना की जाती है, क्या आप जानते हैं, नहीं तो आइये हम आपको बताते हैं कि जैन धर्म में आत्म कल्याण के लिए कौन सी प्रार्थना की जाती है।
अरिहंत नमो भगवंत नमो, परमेश्वर जिनराज नमो।
प्रथम जिनेश्वर प्रेमे पेखत, सिद्धं सघला काज नमो।
प्रभु पारंगत परम महोदय, अविनाशी अकलंक नमो।
अजर – अमर अद्भुत अतिशय निधि, प्रवचन जलधि मयंक नमो॥
सिद्ध – बुद्ध तूँ जगजन सज्जन – नयनानन्दन देव नमो।
सकल सुरासुर नरवर नायक सार, अहो निश सेव नमो॥
तूं तीर्थकर सुखकर साहिब, तूँ नि : कारण बन्धु नमो।
शरणागत भविने हितवत्सल, तुँही कृपारस सिन्धु नमो॥
केवल ज्ञानादर्शे दर्शित लोकालोक स्वभाव नमो।
नाशित सकल कलंक कलुषगण दुरित उपद्रव भाव नमो॥
घोर अपार भवोदधि तारण, तूँ शिवपुरणो साथ नमो॥
अशरण – शरण निराग निरंजन, निरुपाधिक जगदीश नमो।
बोध दीनुँ अनुपम दानेसर, ज्ञानविमल सुर ईश नमो॥
भावार्थ- हे अरिहन्त ! आपको नमस्कार है, हे भगवन्त ! आपको नमस्कार है। हे परमेश्वर ! हे जिनराज ! आपको नमस्कार है। हे पूजनीय जैनेन्द्र ! आपका प्रीतिपूर्वक दर्शन करते ही सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं, आपको नमस्कार है। हे प्रभो! आप [ अविद्या के ] पार जा चुके हैं, आप सर्वश्रेष्ठ, विशेष अभ्युदय सम्पन्न, विनाशहीन और निष्कलंक हैं। आप जरा – मरणरहित हैं और आश्चर्य व सर्वोत्कृष्टताके आश्रय हैं । आप [तत्त्वज्ञान – ] प्रवचन रूपी समुद्रको उल्लसित करनेवाले| साक्षात् चन्द्रमा ही हैं। आपको नमस्कार है । हे देव ! आप सिद्ध हैं , बुद्ध हैं और जगत के सभी सत्पुरुषों के नेत्रोंको आह्लाद देनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। आप ही देवताओं, असुरों और श्रेष्ठ मनुष्यों को अभ्युदय की ओर ले जाने वाले महानायक हैं। सारस्वरूप आप ही अहर्निश सेवा करने योग्य हैं। आपको नमस्कार है। आप ही तीर्थंकर , सुख प्रदान करनेवाले, स्वामी और अकारण बन्धु हैं। आपको नमस्कार है। हे शरणागत जनों के हितैषी, उनपर वात्सल्य रखने वाले आप कृपामृत सिन्धु को नमस्कार है। आपने कैवल्य की उपलब्धि करके अपने ज्ञानरूपी दर्पण में समस्त लोक – लोकोत्तर पदार्थोंका स्वरूप जान लिया है, आपको नमस्कार है। आप समस्त कलंक , कल्मष , पाप , उपद्रवादिका विनाश कर चुके हैं, आपको नमस्कार है । भयानक और अन्तहीन भवसिन्धु से आप ही उद्धार करने वाले और पूर्ण कल्याणमय हैं, आपको नमस्कार है। हे जगदीश्वर! आप आश्रयहीनों के आश्रय, रागातीत, अविद्या – लेशशून्य और समस्त उपाधियों से परे अर्थात् नित्य निर्मल परम तत्त्व हैं। आपको नमस्कार है । हे अनुपम दानिशिरोमणि! हे सुरेश्वर। आप विमल ज्ञान से सम्पन्न हैं। आप हमें ज्ञान प्रदान कीजिये।