माघ शुक्ल पंचमी के दिन वसंत पंचमी मनायी जाती है। ऋतुराज वसंत के आगमन का पहला दिन माना जाता है। भगवान श्री कृष्ण इस उत्सव के अधिदेवता माने जाते हैं, इसलिए ब्रज प्रदेश में राधा और कृष्ण का आनंद विनोद धूमधाम से मनाने की परम्परा है। इस ऋतु में प्राकृतिक सौदर्य अपने चरम पर होता है और सृष्टि के जीवों को प्रकृति के अनुपम सौदर्य की अनुभूति कराता है।
इस दिन अन्य त्यौहारों के समान ही गृह का शोधन व लेपन करना चाहिए और पीताम्बर पहनकर सामान्य हवन करके वसंत ऋतु के वर्णनात्मक छंदों का उच्चारण करके केसर व हल्दी युक्त हलवे के स्थाली पाक से आहूतियां देनी चाहिए।
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इस दिन भगवान विष्णु का महत्व है। इस दिन कामदेव के साथ रति और माता सरस्वती का पूजन भी होता है। माता सरस्वती पूजन से पूर्व विधिपूर्वक कलश की स्थापना करके गणेश, विष्णु और महादेव की पूजा करनी चाहिए। वसंत पंचमी के दिन किसान नए अन्न में गुड़ व घी मिलाकर अग्नि और पितृ-तर्पण करते हैं। वसंत पंचमी को लेकर कथा भी है, इसी कथा के अनुसार मां वीणा वादिनी की पूजा का विश्ोष विधान होता है, जो बुद्धि, विद्या व संगीत की देवी मानी जाती हैं।
कथा- परमपिता ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की आज्ञा से सृष्टि का सृजन किया था, लेकिन वे अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थ्ो। उन्हें सृष्टि में कमी का आभास होता था, वजह यह थी कि सृष्टि में हर ओर मौन छाया रहता था। इस कमी को दूर करने के लिए ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल छिड़का तो धरती पर कंपन होने लगा। इसके साथ प्राकृति के मध्य एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था। जिनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ वर मुद्रा थी। शेष दोनों हाथों में क्रम से पुस्तक और माला थीं।
परमपिता ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का निवेदन किया। जैसे ही देवी ने वीणा बजाई तो सम्पूर्ण चाराचर जगत में स्वर गूंज उठे और सभी जीवों को भी स्वर प्राप्त हो गए। प्रकृति की हर गतिविधि स्वर से युक्त हो गई। तब ब्रह्मा जी ने उन देवी को सरस्वती नाम दिया। माता सरस्वती को भगवती, शारदा, वीणावादनी आदि नामों से भी पूजा जाता है। धार्मिक ग्रंथों में इस बात उल्लेख भी मिलता है कि भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण ने भी मां वीणावादिनी को इस दिन उनके धरती पर विशेष रुप से पूजित होने का वर दिया था।
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