भगवान शिव की मानसिक पूजा, भौतिक पूजा के साथ मानसिक पूजा भी

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भगवान शिव सजह ही प्रसन्न होने वाले देव है, वह देवों के देव महादेव कहलाए जाते हैं। उनका विग्रह शोभावान है। वह अनंत हैं, अविनाशी हैं, उन सनातन शिव का ध्यान कैसे करें? उनकी मानसिक पूजा कैसे करे?, आइये इस बारे में जानते हैं।

उन सदाशिव की भौतिक पूजा के बारे में आपने देखा-सुना होगा, लेकिन आज हम सदाशिव की मानसिक पूजा के बारे में बताने जा रहे हैं। मन में भगवान शिव के अनुपम स्वरूप का ध्यान करते हुए भगवान शिव की मानसिक पूजा करनी चाहिए। भगवान शिव की मानसिक पूजा एक भावनात्मक प्रस्तुति है शिव मानस पूजा।

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इसके माध्यम से हम बिना किसी साधन और सामग्री के शिव पूजन सम्पन्न कर सकते हैं। वास्तव में मानसिक पूजा का शास्त्रों में श्रेष्ठतम पूजा के रूप में स्वीकार है। इस शिव मानस पूजा को सुंदर-समृद्ध कल्पना से करने पर शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। मानसिक रूप से चढ़ाई हर सामग्री को प्रत्यक्ष मानकर आशीर्वाद देते हैं। भगवान शिव की भौतिक जरूर करनी चाहिए, लेकिन उसके साथ ही उनकी मानसिक पूजा भी की जाए तो भक्त और भगवान के बीच एक अटूट सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, जोकि भक्ति के मार्ग को सहज बनाता है। भौतिक पूजा के साथ ही मानसिक पूजा करने से अनुभूतियों का दौर शुरू होता है, जोकि भक्त को अनंत आनंद के समीप ले जाता है। आदिगुरु शंकराचार्य के रचे गए इस स्त्रोत में भगवान की ऐसी पूजा है, जिसमें भक्त किसी भौतिक वस्तु को अर्पित किये बिना भी, मन से अपनी पूजा पूर्ण कर सकता है। आदि गुरू शंकराचार्य रचित शिव मानस पूजा, भगवान शिव की एक अनुठी स्तुति है।

भगवान शिव का ध्यान ऐसे करें

सुंदर कैलाश पर्वत पर भगवान श्री शंकर विराजमान है। रक्ताभ सुंदर गौरवर्ण हैं। रत्न सिंहासन पर मृगछाला बिछी हुई है, उसी पर आप आसीन हैं। चार भुजाएं हैं। दाहिने ऊपर का हाथ ज्ञान मुद्रा का है, नीचे के हाथ में फरसा है। बायां ऊपर का हाथ मृगमुद्रा से सुशोभित है और नीचे का हाथ जानु पर रखे हुए हैं। गले में रुद्राक्ष की माला है। गले में ही साँप लिपटे हुए हैं। कानों में कुण्डल सुशोभित है। ललाट पर त्रिपुण्ड्र शोभा पा रहा है, सुंदर तीन नेत्र हैं।

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नेत्रों की दृष्टि नासिका पर लगी हुई हैं। मस्तक पर अर्धचंद्र है। सिर पर जटाजूट सुशोभित है। अत्यन्त प्रसन्न मुख है। देवता और ऋषिगण भगवान भोलेनाथ की स्तुति कर रहे हैं। बड़ा ही सुंदर विज्ञानानंदमय स्वरूप है भगवान शिव का। शिव मानस पूजा कृपा का दिव्य साक्षात्‌ प्रसाद मनुष्य को निरंतर ग्रहण करते रहने की आवश्यकता है।

शिव मानस पूजा

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं।

नाना रत्न विभूषितम्‌ मृग मदामोदांकितम्‌ चंदनम॥

जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा।
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम्‌ गृह्यताम्‌॥1॥

सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र धृतं पायसं।
भक्ष्मं पंचविधं पयोदधि युतं रम्भाफलं पानकम्‌॥
शाका नाम युतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौज्ज्वलं।

ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥2॥

छत्रं चामर योर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निमलं।
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥

साष्टांग प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं ममा।

संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥3॥

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।

पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥

संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्‌॥4॥
कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्‌।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥5॥

भावार्थ- मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूँ कि हे पशुपति देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान होइए। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूँ। स्नान के उपरांत रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित है। केसर-कस्तूरी में बनाया गया चंदन का तिलक आपके अंगों पर लगा रहा हूँ। जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित है। सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक मानसिक प्रकार से आपको दर्शित करवा रहा हूँ, आप ग्रहण कीजिए।


मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, में खीर, दूध और दही सहित पाँच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के संग कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल एवं ताम्बूल आपको मानसिक भावों द्वारा बनाकर प्रस्तुत किया है। हे कल्याण करने वाले! मेरी इस भावना को स्वीकार करें।

हे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चँवर और पंखा झल रहा हूँ। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है, भी प्रस्तुत है। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियाँ आपको प्रसन्नता के लिए की जा रही हैं। स्तुति का गायन, आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए संकल्प रूप से आपको समर्पित कर रहा हूँ। प्रभो! मेरी यह नाना विधि स्तुति की पूजा को कृपया ग्रहण करें।
हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूँ, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूँ, वह आपकी आराधना ही है।
हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं। वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो।

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