मानसिक पूजा परम पुण्यदायी मानी जाती है। मानसिक पूजा का फल भी कई गुना होता है, बशर्तें मानसिक पूजा के दौरान साधन का ध्यान क्षणभर के लिए भंग नहीं हुआ हो। ऐसा नियमित व सतत प्रयास से ही संभव है, इसके लिए मन पूरी तरह से नियंत्रण करने की जरूरत होती है। मानसिक पूजा के बारे में हम आपको अन्य पूर्व के लेखों में बता चुके है, लेकिन इस लेख के माध्यम से हम आपको बताने जा रहे हैं कि आप मानसिक पूजा के समय भगवान श्री कृष्ण का ध्यान कैसे करें। उनकी अनेक लीलाएं है, लिहाजा हमें तय करना होगा कि हम किस रूप में उनका ध्यान करें।
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आइये, जानते हैं कि उनका ध्यान कैसे करें? ध्यान में लीन होने के लिए आप श्री कृष्ण के बचपन में जाएं, जहां वह नंदबाबा के यहां मौजूद है और लीलाएं कर रहे हैं। नंदबाबा के आंगन में नन्हें से कृष्ण थिरक-थिरक कर नाच रहे हैं। नवीन मेघ के समान गोपाल श्याम आभा से युक्त नयन मनहारी सुंदर वर्ण हैं।
श्याम के शरीर पर माता यशोदा के पहनाया हुआ पतला रेशमी चमकदार पीला कुर्ता ऐसा आभास दिलाता है कि जैसे कृष्ण घनघटा में इंद्रधनुष सुशोभित है। अति सुंदर और शोभावान नन्हें कान्हा के नन्हें लाल आभायुक्त मनोहर चरणकमल हैं। चरण नखों की ज्योति चरण कमलों पर पड़कर अत्यन्त सुशोभित हो रही है। चरणों में नूपुर ध्वनि हो रही है।
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कमर की करधनी की ध्वनि भी अत्यन्त मंत्रमुग्ध करने वाली है। जिसके श्रवण मात्र से मन भावविभोर हो रहा है। हृदय में ध्वनि से अत्यन्त आनंद की अनुभूति हो रही है। सुंदर त्रिवलीयुक्त उदर है। गम्भीर नाभि है, हृदय पर गजमुक्ताओं की, रत्नों की और अतिसुंदर सुगंधवान पुष्पों की और तुलसी की मालाएं सुशोभित है। गले में गुंजाहार है, कौस्तुभमणि है और चौड़े वक्ष स्थल पर श्रीवत्स का चिह्न् है। अत्यन्त रमणीय और ज्ञानिजन मनमोहन मनोहर मुखकमल है।
बाल श्री कृष्ण की बहुत ही मीठी और मनोहारी मुस्कान है। कानों में कुण्डल झलमला रहे हैं। गुलाबी रंग के गोल कपोल कुण्डलों के प्रकाश से चमक रहे हैं। लाल-लाल मनोहारी होठ बहुत ही कोमल और मनोहारी प्रतीत हो रहे हैं। बाँके और विशाल कमल सरीखे नेत्र हैं। उनके नेत्रों में से प्रेम, आनंद और रस की विद्युत धारा निकल कर सम्पूर्ण चराचर जगत को अपनी आकर्षित कर रही है। बाल गोपाल के नेत्रों की मनोहरता ने सभी के हृदय में प्रेम और आनंद भर दिया है।
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बाल गोपाल का ललाट उन्नत है। मस्तक पर मोरपंखी का मुकट शोभा पा रहा है। विचित्र और मनोहारी आभूषणों से और नवीन कोमल पल्लवों से बाल गोपाल का पूरा शरी सजा हुआ है। उनके अंगों से करोड़ों कामदेवों पर विजय प्राप्त करने वाली सुंदरता प्रवाहित हो रही है। उछलते-कूदते, जोर-जोर से आवाज निकालते और हंसते हुए बीच-बीच में माता यशोदा को ताक कर देख रहे हैं। माता यशोदा भी अपने मनोहारी पुत्र को देखकर आनंदित हो रही हैं। माता अतृप्त और निर्निमेष नेत्रों से भुवनमोहन लाल की मनोहर माधुरी छवि को निरख-निरख कर मुग्ध व आनंदित हो रही है। बाल गोपाल नंदबाबा के आंगन में थिरक-थिरक कर नाच कर कुछ इस अंदाज में माता यशोदा का मन मोह रहे हैं। उनके अनुपम रूप को देखकर चराचर जगत मुग्ध होता प्रतीत हो रहा है।