अनंत नामों व स्वरूपों वाली आदिशक्ति भगवती को नमन करने से जीव का कल्याण ही होता है। वह भगवती अनंत है, अविनाशी है, उसके स्वरूप भी अनंत ही हैं। उनके स्वरूप दिव्यता भरे होते हैं। उनके स्वरूपों का ध्यान मात्र से जीव मात्र का कल्याण संभव है। उसके संकटों का हरण होता है। उसे दिव्य अनुभूतियां प्राप्त होती है और वह दिव्य लोक का अधिकारी बन जाता है।
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जाने-अनजाने भगवती आदि शक्ति के ध्यान मात्र से मनुष्य मात्र का कल्याण संभव है। वही शिवा हैं, वही दुर्गा हैं, वही चामुंडा है और वही भवानी है।
जैसे उनके अनंत नाम है, वैसे ही अनंत स्वरूप भी है। यहां हम आपको उन्हीं आदि शक्ति के चंद दिव्य ध्यान स्वरूपों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो श्रद्धा से नमन करने पर भक्त पर असीम कृपा बरसाती हैं।
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥
जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा – इन नामोंसे प्रसिद्ध जगदम्बिके । आपको नमस्कार है ।
1- शिवादेवी
ॐ बालार्कमण्डलाभासां चतुर्बाहुं त्रिलोचनाम ।
पाशाङकुशवराभीतीर्धारयन्तीं शिवां भजे ॥
भावार्थ- जो उदयकाल के सूर्यमण्डल की सी कान्ति धारण करनेवाली हैं, जिनके चार भुजाएँ और तीन नेत्र हैं और जो अपने हाथों में पाश, अंकुश , वर और अभय की मुद्रा धारण किये रहती हैं , उन शिवादेवी का मैं ध्यान करता हूँ ।
मालाकुम्भकपालनीरजकरां चन्द्रार्धचूडां परां सर्वज्ञेश्वरभैरवाङ्कनिलयां पद्मावतीं चिन्तये ॥ ॥ १ ॥
भावार्थ- मैं सर्वज्ञेश्वर भैरवके अंक में निवास करने वाली परमोत्कृष्ट पद्मावतीदेवी का चिंतन करता है। वे नागराज के आसनपर बैठी हैं , नागोंके फणोंमें सुशोभित होने वाली मणियों की विशाल माला से उनकी देहलता उद्भासित हो रही है।
सूर्य के समान उनका तेज है, तीन नेत्र उनकी शोभा बढ़ा रहे हैं । वे हाथों में माला, कुम्भ, कपाल और कमल लिये हुए हैं और उनके मस्तक में अर्धचन्द्र का मुकुट सुशोभित है।
मैं तीन नेत्रोंवाली दुर्गा देवी का ध्यान करता है, उनके श्रीअंगों की प्रभा बिजली के समान है । वे सिंह के कन्धेपर बैठी हुई भयंकर प्रतीत होती हैं।
हार्थो में तलवार और ढाल लिये अनेक कन्याएँ उनकी सेवा में खड़ी हैं। वे अपने हाथों में चक्र, गदा, तलवार, ढाल, बाण, धनुष, पाश और तर्जनी मुद्रा धारण किये हुए हैं । उनका स्वरूप अग्निमय है और वे माथे पर चन्द्रमा का मुकुट धारण करती हैं ।
सिंदूर के समान अरुण विग्रहवाली, तीन नेत्रों से सम्पन्न , माणिक्यजटित प्रकाशमान मुकट और चन्द्रमा से सुशोभित मस्तक वाली,
मुसकानयुक्त मुखमण्डल और स्थूल वक्षःस्थलवाली, अपने दोनों हाथों में से एक हाथ में मधु से परिपूर्ण रत्ननिर्मित मधुकलश और दूसरे हाथ में लाल कमल धारण करने वाली और रत्नमय घट पर अपना रक्त चरण रखकर सुशोभित होने वाली शान्त स्वभाव भगवती पराम्बिका का ध्यान करना चाहिये ।
जो रक्त, श्वेत,पीत, नील और धवल वर्णों के श्रीमुखों से सम्पन्न हैं, तीन नेत्रों से जिनका विग्रह देदीप्यमान हो रहा है , जिन्होंने अपने रक्तवर्ण शरीर को नूतन लाल कमलों की माला से सजा रखा है, जो अनेक मणियों से अलंकृत हैं,
जो कमलके आसनपर विराजमान हैं , जिनके दो हाथों में कमल और कुण्डिका और दो हाथों में वर और अक्षमाला सुशोभित है। उन हंस की सवारी करने वाली, कुमारी अवस्था से सम्पन्न भगवती गायत्री की मैं उपासना करता हूँ ।
जिनको अंग कान्ति सिन्दूर सरोखी है, जो तीन नेत्रोंसे युक्त, अमृतपूर्ण शशिकलासदृश, आकाशमें गमन करनेवाली, लाल वस्त्र से सुशोभित, स्थल और ऊँचे स्तनों से युक्त, नवीन उल्लासित यौवनारम्भ से रमणीय, विविध अलंकारों से युक्त है, जिनके नेत्र कमलसदृश है ,
जिनको मूर्ति चन्द्रमा को संक्रान्त करनेवाली है, जिनके हाथ पाश, अंकुश, अभय और वरद मुद्रा से सुशोभित है। उन अन्नपूर्णा देवी को मैं नमस्कार करता हूँ।
जिनकी कान्ति स्वर्ण सदृश है, जिनके नेत्र करुणा से परिपूर्ण रहते हैं, जो माणिक्य के आभूषणों से विभूषित, बत्तीस दल, षोडशदल , अष्टदल कमल पर स्थित , सुन्दर मुसकान से सुशोभित, भक्तों को धन देनेवाली, बायें हाथ में वरद मुद्रा और दायें हाथमें अभयमुद्रा और बिजौरा नीबू का सुन्दर फल धारण करने वाली हैं , उन श्रीमंगला देवी की मैं भावना करता हूँ।
जो अपने हाथों में क्रमशः शंख , चक्र , पाश , अंकुश , विशाल ढाल , खड्ग , सुन्दर धनुष , बाण , कमल पुष्प और बिजौरा नीबू धारण करती हैं , जिनका रंग उदयकालीन बालसूर्य के सदृश है , जो त्रिभुवन पर विजय पाने वाली हैं , जिनके पाँच मुख और तीन नेत्र हैं , जो पीताम्बर से विभूषित और स्तनों के भार से झुकी रहती हैं , उन विजया देवीकी मैं निरन्तर भावना करता है ।
9- भगवती प्रत्यंगिरा
श्यामाभां च त्रिनेत्रां तां सिंहवक्त्रां चतुर्भुजाम् ।
ऊर्ध्वकेशीं च सिंहस्थां चन्द्राङ्कितशिरोरुहाम् ॥
कपालशूलडमरुनागपाशधरां शुभाम् ।
प्रत्यङ्गिरां भजे नित्यं सर्वशत्रुविनाशिनीम् ॥
जिनकी अंगकान्ति श्याम है, जिनके तीन नेत्र और चार भुजाएँ हैं, जिनका मुख सिंह के मुख सदृश है, जिनके केश ऊपर उठे रहते हैं , जो सिंह पर आरूढ़ होती हैं, जिनके बालों में चन्द्रमा शोभित होते हैं, जो कपाल, शूल , डमरू और नागपाश धारण करती हैं और समस्त शत्रुओं का विनाश करने वाली हैं, उन मंगलकारिणी प्रत्यंगिरा का मैं नित्य भजन करता हूँ ।
जिन्होंने अपने दोनों हाथों में दो पद्म और शेष दो में वर और अभय मुद्राएँ धारण कर रखी हैं, तप्त कांचन के समान जिनके शरीर की कान्ति है, शुभ्र मेघ की सी आभा से युक्त दो हाथियों की सुन्ड़ो में धारण किये हुए कलशों के जल से जिनका अभिषेक हो रहा है, रक्तवर्ण के माणिक्यादि रत्नों का मुकुट जिनके सिर पर सुशोभित है, जिनके वस्त्र अत्यन्त स्वच्छ हैं, ऋतुके अनुकूल चन्दनादि आलेपन के द्वारा जिनके अंग लिप्त हैं, पद्मके समान जिनके नेत्र हैं, पद्मनाभ अर्थात क्षीरशायी विष्णुभगवान के उरःस्थल में जिनका निवास है, वे कमलके आसन पर विराजमान श्रीदेवी हमारे लिये परम ऐश्वर्यका विधान करें।
11- भगवती अपराजिता
नीलोत्पलनिभां देवीं निद्रामुद्रितलोचनाम् ।
नीलकुञ्चितकेशाग्र्यां निम्ननाभीवलित्रयाम ॥
वराभयकराम्भोजां प्रणतार्तिविनाशिनीम् ।
पीताम्बरवरोपेतां भूषणस्रग्विभूषिताम् ॥
वरशक्त्याकृतिं सौम्यां परसैन्यप्रभञ्जिनीम् ।
शङ्खचक्रगदाभीतिरम्यहस्तां त्रिलोचनाम् ॥
सर्वकामप्रदां देवीं ध्यायेत् तामपराजिताम् ॥
जिनकी कान्ति नीलकमल सरीखी है , जिनके नेत्र निद्रा से मुँदै रहते हैं, जिनके केशों के अग्रभाग नीले और धुंघराले हैं, जिनकी नाभि गहरी और त्रिवलीसे युक्त है, जो कर कमलों में वरद और अभयमुद्रा धारण करती हैं, शरणागतों की पीड़ा को नष्ट करनेवाली हैं, उत्तम पीताम्बर धारण करती हैं, आभूषण और मालासे विभूषित रहती हैं, जिनकी आकृति श्रेष्ठ शक्ति से युक्त और सौम्य है, जो शत्रुओंकी सेना का संहार करनेवाली हैं, जिनके हाथ शंख, चक्र, गदा और अभयमुद्रा से सुशोभित रहते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो समस्त कामनाओं को देनेवाली हैं, उन अपराजितादेवीका ध्यान करना चाहिये।
मैं भुवनेश्वरीदेवीका ध्यान करता हूँ । उनके श्री अंगोंकी आभा प्रभातकालके सूर्यके समान है और मस्तकपर चन्द्रमा का मुकुट है । वे उभो हुए स्तनों और तीन नेत्रोंसे युक्त हैं ।
उनके मुखपर मुसकानकी छटा छायी रहती है और हाथोंमें वरद , अंकुश , पाश एवं अभय मुद्रा शोभा पाते हैं ।
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