भगवती आदि शक्ति दुर्गा के वैसे तो अनन्त रूप है, अनन्त नाम है, अनन्त लीलाएं हैं। जिनका वर्णन कहने-सुनने की सामर्थ्य मानवमात्र की नहीं है, लेकिन देवी के प्रमुख नौ अवतार है। जिनमें महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, योगमाया, शाकम्भरी, श्री दुर्गा, भ्रामरी व चंडिका या चामुंडा है। इन नौ रूपों में से आइये जानते हैं हम योगमाया अवतार के बारे में-
योगमाया
प्राचीन काल में महाबली कंस ने अपनी चचेरी बहन देवकी का विवाह बड़ी धूमधाम से वसुदेव के साथ किया और विदायी के समय प्रेमवश स्वयं रथ के घोड़ों को हांककर पहुंचाने जा रहा था उसी समय आकाशवाणी हुई- हे कंस जिस बहन को तू इतने प्रेम पूर्वक पहुंचाने जा रहा है उसी के आठवे पुत्र के हाथों तेरा वध होगा।
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आकाशवाणी सुनते ही कंस ने रथ हो रोक दिया। उसकी आंखें क्रोध से रक्त वर्ण (लाल) हो गईं। उसने देवकी को मारने के लिए तत्क्षण म्यान से तलवार खींच ली। देवकी भय से थर-थर कांपने लगी। तब वसुदेव ने कंस को समझाते हुए कहा- हे मित्र कंस! इस अबला नारी का वध करने से तुम अपयश के भागी बनोगे। आकाशवाणी के अनुसार तुम्हें इसके आठवे पुत्र से भय है। मैं तुम्हे विश्वास दिलाता हूं कि देवकी का आठवां पुत्र जब जन्म लेगा उसे मैं तुम्हे सौंप दूंगा।
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कंस को मालूम था कि वसुदेव कभी असत्य नहीं बोलते। तब उसने देवकी का वध नहीं किया, लेकिन देवर्षि नारद ने जब आकर अनेक प्रकार से कंस को समझाते हुए पृथ्वी पर लकीरें खींचकर बता कि रेखाओं में से कोई भी रेखा आठवीं हो सकती है। इसी प्रकार देवी का कोई भी पुत्र आठवां हो सकता है।
मूढ़मति कंस ने नारद के वचनों को सुनकर वसुदेव और देवकी को कारागृह में बंद कर दिया और कड़ा पहरा लगा दिया। देवकी के गर्भ से जब प्रथम पुत्र की उत्पत्ति हुई तो पहरेदारों ने जाकर कंस को सूचन दी। कंस उसी समय आया और बालक को ले जाकर पत्थर की शिला पर पटककर मार डाला।
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इस तरह एक-एक कर उसने देवकी और वसुदेव के छह बालकों की हत्या कर डाली। जब देवकी का सातवां गर्भ हुआ तो भगवती योगमाया ने संकर्षण शक्ति से उस गर्भ को खींचकर गोकुल में निवास कर रही रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया।
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वह बालक उत्पन्न होकर ‘बलराम’ के नाम से जगत विख्यात हुआ तदुपरान्त जब आठवें गर्भ के रूप में भगवान श्री कृष्ण जी देवकी के गर्भ में प्रकट हुए उधर गोकुल में नन्दबाबा के घर भगवती योगमाया कन्या के रूप में उत्पन्न हुई। भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय कारागृह के सभी पहरेदार योगमाया के वशीभूत होकर गहरी निद्रा में सो गए।
वसुदेव की हथकड़ी बेडिय़ां स्वत: खुल गईं। कारागार के दरवाजे अपने आप खुल गये। जब वे बालक कृष्ण को लेकर काली घटाटोप काली अंधियारी रात में यमुना पार करके गोकुल पहुंचे और कृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उनके पास सोई कन्या को लेकर लौट आए जो कि उसी समय उत्पन्न हुई थी। जिसका ज्ञान यशोदा को न था।
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कारागार में पहुंचने पर वसुदेव की हथकड़ी बेडिय़ां पुन: अपने आप लग गईं और जो भगवती योगमाया की दिव्य माया थी और वह कन्या जोर-जोर से रोने लगी। बालिका के रोने की आवाज सुनकर सभी पहरेदार जग गए और उसी क्षण जाकर कंस का सूचना दी। यह सुनकर कि देवकी के गर्भ से कन्या उत्पन्न हुई है। वह भागा हुआ आया। तब देवकी कहने लगी हे भैया इसे मत मारो यह तो कन्या है लेकिन मृत्यु भय से आक्रान्त कंस ने देवकी की एक न सुनी और कन्या को उसके हाथ से छीन लिया।
तत्पश्चात उसने उस कन्या को पत्थर पर पटकने के लिए हाथ ऊपर उठाया। आकस्मात वह कन्या उसके हाथ से छूट गई और आकाश में जाकर अष्टभुजी रूप धारण कर स्थित होकर अट्टहास करती हुई बोली- अरे मूर्ख! तुझे मारने वाला इस धरती पर जन्म ले चुका है। यह कहकर वह देवी अंतरध्यान हो गयी। वहीं देवी योगमाया के नाम से विख्यात हुई।
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