महामृत्युंजय मंत्र जीव को सभी कष्टों से मुक्ति दिलाता है। भाव से नियमित व नियमपूर्वक जप मनुष्य का कल्याण करता है। मंत्र शक्ति को विद्बानों ने महान शक्ति कहा है। शास्त्र भी इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि मंत्रों में सूक्ष्म तरंगों की वैज्ञानिक शक्तियां निहित होती हैं। जिसको जप करते समय जपकर्ता स्वयं महसूस करता है।
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उदाहरण स्वरूप ऊॅँ का लम्बी सांस खींच कर लम्बा उच्चारण करने पर दिगाम की नसें झंकत होती हैं। एक अजीब सा आकर्षण होता है। इस तथ्य को प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है, अपितु कोई भी व्यक्ति इसे स्वयं अनुभव कर सकता है। महामृत्युंजय को मृत संजीवनी मंत्र भी कहते हैं।
मंत्र है-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।।
इसी मृत्युंजय मंत्र का जप दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने किया था। इसी महामृत्युंजय मंत्र का जप शुक्राचार्य ने सिद्ध किया था।
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इसी मंत्र के अनुष्ठान से उन्होंने देवासुर संग्राम में देवताओं द्बारा मारे गए असुरों को जीवित किया था, इस मंत्र के जप से भविष्य में होने वाली बीमारी दुर्घटना और अनिष्टों का नाश होता है। सभी भयों का नाश होता है और जीव को भगवान भोलनाथ शंकर की असीम कृपा प्राप्त होती है।
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जिस पर भगवान शंकर की असीम कृपा होती है, उसका भला कोई क्या बिगाड़ सकता है, उसका दोनों लोकों में कल्याण होता है।