……………..आशा की रोशनी लेकर आगे बढ़ो तुम {जीवन का एहसास}

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2040

राहों में चलती हूं तो कांटों का एहसास होता है।
एहसास होता है उस असफलता का, जिसे न चाहा था मैंने,
मन में आशा की किरण तो जलती है परन्तु,
फिर बुझ जाती है, क्योंकि निराशा के बादल मंडराते हैं ऊपर।
ऐसे में,
जब मै आकाश की ओर देखती हूं,
तो बादलों में एक तारा चमकता दिखाई देता है।
ऐसा लगता है कि वह कह रहा हो,
निराशा के घेरे में न घिरो तुम।
आशा की रोशनी लेकर आगे बढ़ो तुम,
मैं पलभर के लिए तो उन तारों की दुनिया खो गई।
फिर, सहसा बादलों ने आकर ढ़क लिया उस छोटे से तारे को,
मानो वह तारा कह रहा हो रुकावटें यहां भी हैं।
निराशा के काले बादलों की ओट में ढ़क जाते हैं हम भी।
पर हिम्मत न हार मुकाबला करते हैं।
उस तारे ने सच ही कहा था-
उसका एहसास मुझे अगले पल ही हो गया।,
जब वही तारा बादलों की ओट से हट गया।
पर मैं तो तारा नहीं!
मुझे तो स्वयं बादल हटाने हैं।
नामुमकिन कुछ नहीं है,
कहा भी गया है- जहां चाह वहां राह है।
अब तो बस पथिक बन,
राह पर चलते हुए मंजिल तक जाना है।
मंजिल को पाना है। मंजिल को पाना है।।
डॉ. मीना शर्मा

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