amarakantak: hinduon kee pavitr nagaree, narmada nadee ke udgam sthal va shonaapakshee shaktipeeth bheeहर साल अमरकंटक में नर्मदा जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। इस अवसर पर पूरे अमरकंटक को सजाया जाता है। रात को नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर महा आरती की जाती है। साथ ही एक विशाल मेला भी लगता है। हिंदुओं के प्रमुख तीर्थों में अमरकंटक का भी महत्त्वपूर्ण है। इसी पुण्यभूमि में नर्मदा, सोन महानदी तथा ज्वालावती जैसी पावन नदियों के उद्गम स्थान हैं। भारत की सारी नदियों में नर्मदा सर्वाधिक प्राचीन पुण्यसलिला मानी जाती है। इसके दोनों तटों पर अनेक देवस्थान तथा नगर शोभायमान हैं।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगा, यमुना, सरस्वती कावेरी तथा सरयू आदि पावन सरिताओं में स्नान करने पर जो फल मिलता है, वह नर्मदा के दर्शनमात्र से ही प्राप्त हो जाता है। नर्मदा को शिव की पुत्री होने के कारण ‘ शांकरी ‘ भी कहा गया है। धार्मिक ग्रंथों में कथा मिलती है कि जब भगवान शंकर अपने तीसरे नेत्र द्वारा संसार को भस्म करते हुए मैकाल पर्वत के इस स्थान पर पहुंचे, तो उनके शरीर से निकली पसीने की कुछ बूंदें यहां गिरी। इन्हीं बूंदों से एक कुंड का प्रादुर्भाव हुआ और फिर इस कुंड में एक बालिका प्रकट हुई, जो शांकरी तथा नर्मदा कहलाई। शिवजी के आदेशानुसार वह जनहित के लिए बहुत बड़े भाग में से प्रवाहित होने लगी। इसका उदगम मैकाल पर्वत पर है इसलिए यह मैकालसुता के नाम से भी जानी जाती है। जब यह पर्वतीय क्षेत्र में बहती देश के है तो रव ‘ अर्थात् आवाज करती हई आगे बढ़ती है। इस कारण भक्तजन इसे रेवा ‘ भी कहते हैं।
प्राचीन ग्रंथों में अमरकंटक को तपोभूमि कहा गया है। रामायणकाल में यह स्थान ऋषभ के नाम से सना जाता था। एक कथा के अनुसार लंकापति रावण एक बार अपने पुष्पक विमान द्वारा मैकाल पर्वत के क्षेत्र से जा रहा था कि उसकी दृष्टि नीचे बिखरी सौंदर्यराशि पर पड़ी। चारों ओर की प्राकृतिक छटा देखकर उसका मन मुग्ध हो उठा। उसने कुछ दिनों यहां रहकर अपने आराध्य देव शंकर की अर्चना की। फिर जांबूनदमणि का शिवलिंग बनाकर उसको वहां स्थापित किया। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार भगवान राम के पूर्वज रघुवंशी राजाओं का इस क्षेत्र पर राज्य था। दसवीं शताब्दी से पूर्व यह क्षेत्र चेदि शासकों के आधिपत्य में था । आज भी चेदिकालीन मंदिर तथा खंडहर इस पर्वतीय क्षेत्र में देखे जा सकते हैं। अमरकंटक पहाड़ सतपुड़ा श्रेणी का ही एक अंश है तथा इसका ऊपरी भाग एक विस्तृत पठार – सा है। इस पहाड़ पर कई मंदिर हैं।
अमर कटंक के दर्शनीय स्थल
अमर कटंक में अनेक स्थल हैं जो यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहां मंदिर व कुंडों की भरमार है और अनेक ऐसे दुर्गम स्थानों पर स्थित हैं कि उन तक पहुंचना आज भी असंभव है। जिन स्थानों पर तीर्थयात्री जा सकते हैं-
- नर्मदा मां का उद्गम स्थल एवं परिसर : नर्मदा उद्गम स्थल तथा उसके परिसर में स्थित अनेक मंदिर एक चहारदीवारी द्वारा चारों ओर से घिरे हैं और एक ओर एक भव्य द्वार निर्मित है, जिसके मध्य में ऊपर गणेशजी की मूर्ति स्थापित है। इस परकोटे के अंदर नर्मदेश्वर महादेव का मंदिर है, जिसके समक्ष एक छोटा मुख्य कुंड है, जो नर्मदा का वास्तविक उद्गम स्थल है। इस कुंड की आरती प्रतिदिन सायं काल की जाती है। कुंड की कुछ दूरी पर मां नर्मदा का भव्य मंदिर है, जिसमें उनकी मूर्ति स्थापित है और उसके सामने ही देवी पार्वती की मूर्ति भी स्थापित है। मुख्य कुंड के चारों ओर एक बड़ा कुंड व दो छोटे कुंड हैं, पर इसमें स्नान वर्जित है। नर्मदा के मुख्य उद्गम स्थल कुंड से कुछ आगे एक काले पत्थर से निर्मित हाथी मूर्ति है। ऐसा कहा जाता है कि पुण्य आत्मा वाले मानव ही इसके पेट के नीचे से निकल सकते हैं। कभी – कभी आश्चर्य होता है जब भारी भरकम वाले तीर्थयात्री इसके पेट के नीचे से दूसरी ओर पार हो जाते हैं। कुंडों के चारों ओर निम्नलिखित मंदिर शोभायमान हैं – शिव मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्रीराम जानकी मंदिर, मा अन्नपूर्णा मंदिर, गुरु गोरखनाथ मंदिर, मां दुर्गा मंदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, वंशेश्वर महादेव मंदिर, सिद्धेश्वर महादेव मंदिर, श्री राधा कृष्ण मंदिर व ग्यारह गुरु मंदिर आदि। रात्रि में सभी मंदिरों की रोशनी युक्त परछाइयां कुंड में दिखलाई पड़ती हैं और एक मनोहर छटा उत्पन्न करती हैं। परकोटे के बाहर गेट से कुछ दूरी पर छ : रुद्राक्ष के पौधे मंदिर ट्रस्ट द्वारा लगाए गए हैं और वे सभी लगभग 10 फीट की ऊंचाई ग्रहण कर चुके हैं और कुछ वर्षों में रुद्राक्ष लगना प्रारंभ हो जाएगा। मुख्य द्वार के आगे नीचे की ओर दो कुंड हैं, जिसमें तीर्थयात्री स्नान कर पूजा अर्चना करते हैं।
- कर्ण मंदिर : मुख्य नर्मदा मंदिर के पीछे दक्षिण दिशा में 3 गर्भगृह वाला, सप्तरथ शैली में बना हुआ शिव मंदिर है और मंदिर के शीर्ष नागर शैली में निर्मित हैं। ये मंदिर पुरातत्त्व विभाग द्वारा रक्षित हैं।
- मच्छेन्द्रनाथ मंदिर : कर्णमंदिर के उत्तर में स्थित है तथा इसमें 16 स्तंभों वाला एक दर्शनीय मंडप है। मंदिर का तोरण और शिखर कलिंग शैली में बना है । ये मंदिर भी पुरातत्त्व विभाग द्वारा रक्षित है।
- पातालेश्वर महादेव : यह महादेव का भव्य मंदिर है, जो पंचस्थ शैली में बना है और इसमें भी 16 स्तंभों का मंडप है तथा भूमिज शैली में निर्मित गर्भगृह अत्यन्त दर्शनीय है।
- केशव नारायण मंदिर : यह भी एक भव्य सुंदर मंदिर है। जिसमें अत्यन्त सुंदर मूर्ति स्थापित की गई है। इसके पास ही सूरज कुंड है। उपरोक्त सभी मंदिर लाल खुरदुरे पत्थरों द्वारा निर्मित हैं और इनकी देखभाल पुरातत्त्व विभाग निरंतर करता रहता है।
- सोनमुड़ा : मुख्य मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर यह मनोरम स्थान है। सोन नदी का उद्गम स्थल भी है और इसी स्थान से भद्र नदी का उद्गम भी होता है। दोनों एक कुंड में समाहित होकर आगे एक धारा के रूप में बहती हैं, इसी कारण इसे सोनभद्र भी कहा जाता है। आगे जाकर यह लगभग 300 फीट नीचे एक प्रपात के रूप गिरता है। इसे देखने हेतु एक स्थान भी बनाया गया है। इसी स्थान से प्रात : सूर्योदय का दर्शन तीर्थयात्री करते हैं।
- शोणापक्षी शक्तिपीठ : इस स्थान पर सती का दायां नितंब गिरा था। अत : इसे शक्तिपीठ कहा जाता है। यहां सोन नदी के उद्गम स्थल से ऊपर एक छोटा सुंदर शक्तिपीठ मंदिर है और उसके समक्ष भैरव भद्रसेन विराजमान हैं।
- माई की बगिया : सोनमुड़ा से आगे कुछ दूरी पर यह स्थान स्थित है। यहां पर एक चरणोदक कुंड भी है। यह स्थान सघन वन व फल के वृक्षों द्वारा घिरा है। यहां एक कक्ष भी निर्मित है, जिसमें यात्री विश्राम करते १ और भजन – पूजन पूजन आदि भी करते हैं।
- कबीर चबूतरा : श्री नर्मदा मंदिर से दक्षिण पश्चिम दिशा की ओर लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा चबूतरा बना है, जिस पर बैठकर कबीर दास जी ने कठोर तप किया था। इसी के पास कबीर का एक छोटा पुराना मंदिर भी स्थित है। यहां से अमरकंटक हेतु सीधी पक्की सड़क है। कबीरपंथियों के लिए यह स्थान अत्यधिक पवित्र है।
- कपिल धारा : नर्मदा कुंड से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर नर्मदा नदी एक जल प्रपात के रूप में लगभग 200 फीट नीचे गिरती है। इसी प्रपात के पास कपिल मुनि जी को आत्मज्ञान प्राप्त हुआ था, अतः यह एक पवित्र स्थान है और सभी तीर्थयात्री यहां अवश्य दर्शन के लिए आते हैं। इसके आगे भी नर्मदा नदी पर अनेक जलप्रपात हैं, पर घने जंगल के कारण इन स्थानों पर यात्री नहीं जाते हैं। ये प्रपात दूध धारा, दुर्गा धारा व शंभू धारा आदि नामों से जाने जाते हैं।
- सिद्धेश्वर महादेव : पेंड्रा रोड से आने के रास्ते में एक पुराना शिव मंदिर है, जो दर्शनीय है।
- अमरेश्वर महादेव : सिद्धेश्वर महादेव से कुछ दूरी पर 10 फीट ऊंचे शिवलिंग युक्त अमरेश्वर महादेव का भव्य मंदिर निर्मित हो रहा है। कुछ समय पश्चात् यह दर्शनीय स्थान हो जाएगा।
- श्री यंत्र महामेरु मंदिर : मुख्य मंदिर से कुछ दूरी पर घने वनों के मध्य महामेरु मंदिर का निर्माण स्वामी श्री शुक देवानंद जी महाराज द्वारा कराया जा रहा है। इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 52 फीट है और शिखर पर चार मुख बने हुए हैं। इसके चारों ओर गोलाकार प्रांगण में 108 मूर्तियां स्थापित कराई जाएंगी। पूजा होने पर इसके दर्शन मात्र से एक करोड़ पचास लाख तीर्थों में स्नान करने का फल प्राप्त होगा।
- श्री कल्याण सेवा आश्रम मंदिर : पूज्य बाबा कल्याण दास जी महाराज द्वारा ये सुंदर मंदिर निर्मित है और इसमें अनेक देवी – देवताओं की सुंदर मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर के अंदर एक यज्ञ वेदी पर विशेष यज्ञ होता रहता है।
- श्री आदिनाथ जैन मंदिर : अमरकंटक में ही एक भव्य आदिनाथ मंदिर का निर्माण कार्य जारी है। परम पूज्य श्री 1008 आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा से मंदिर निर्मित हो रहा है, इसमें आदिनाथ भगवान की 24 टन की 10 फीट ऊंची अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित की जा रही है। इसके अतिरिक्त अनेक मंदिर तथा कुंड आदि जो घने वनों में हैं उन तक यात्रियों का पहुंचना कठिन होता है, क्योंकि पैदल जाना पड़ता है व जानवरों का भी खतरा है।
यात्रा मार्ग
रेल मार्ग के अंतर्गत कटनी – बिलासपुर स्टेशनों के मध्य पेंड्रा रोड पर उतरना होता है। यात्री अनूपपुर व शहडोल स्टेशनों पर उतरकर बस या टैक्सी द्वारा अमरकंटक जा सकते हैं। रीवां, शहडोल, बिलासपुर, रायपुर, इलाहाबाद, जबलपुर, सिवनी, मंडला, चित्रकूट आदि से सीधी बस सेवाएं अमरकंटक हेतु उपलब्ध हैं।