अंगकोरवाट ( कंबोडिया ): विश्व में भगवान विष्णु का सबसे बड़ा मंदिर अंगकोरबाट कंबोडिया में है, जो भारत और कंबोडिया के प्रगाढ संबंधों का प्रतीक है। यह मंदिर विचार, संकल्पना और शैली में भारतीय है, लेकिन उसकी योजना बनाने और उसे क्रियान्वित करने का कार्य खमेर शिल्पियों ने किया।
कंबोडिया के इतिहास में अंगकोरवाट का महत्त्व इस क्षेत्र पर सन् 1431 में तत्कालीन श्यामदेश के कब्जे के बाद राजधानी नोमपेन्ह स्थानांतरित किए जाने के पश्चात समाप्त हो गया था। शीघ्र ही वनों और वृक्षों ने इस स्थान को ढक लिया और लोगों की स्मृति में इसका नाम लुप्त हो गया। सौभाग्यवश सन् 1860 ई में फ्रांसीसी प्रकृतिविज्ञानी हेनरी मोहार ने इसे पुनः खोज निकाला। अंगकोरवाट के जीर्णोद्धार का कार्य सन् 1878 ई में शुरू हुआ लेकिन सन् 1986 ई . में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने इसके जीर्णोद्धार कार्य को गति प्रदान की और आज यह मंदिर विश्व की धरोहर के रूप में पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के पास अंगकोरवाट मंदिर के जीर्णोद्धार और प्रबंधन की जिम्मेदारी है। उसे अंगकोरवाट से सालाना सत्तर लाख रुपए की आमदनी होती है, जो भारत में उसके अधीन तमाम ऐतिहासिक इमारतों से होने वाली आमदनी से अधिक है। अंगकोरवाट मंदिर आज कंबोडिया की अर्थ – व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। उसे देखने के लिए दुनियाभर के सैलानी प्रतिदिन यहां आते हैं। हेनरी मोहार ने निर्जन वन के बीच में लताओं, बेलों और वृक्षों से आच्छादित इस अनुपम मंदिर को पहली बार देखा तो उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने स्थानीय लोगों से पूछा कि इसका निर्माण किसने किया? उन्हें सवालिया लहजे में उत्तर मिला- दानवों ने अथवा देवदूतों के राजा ने इसका निर्माण किया होगा? दरअसल अंगकोरवाट इतना विशाल, भव्य और गरिमापूर्ण है कि मनुष्य द्वारा निर्मित लगता ही नहीं। अंगकोरवाट मंदिर का निर्माण अंगकोरनरेश सूर्यवर्मन द्वितीय ( 113-50 ) ने शुरू किया था। कंबोडिया में हिंदू राजवंश की स्थापना दूसरी शताब्दी में हो गई थी। इस संबंध में इस क्षेत्र में प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार कंबोडिया में हिंदू राजवंश की स्थापना कौडिण्य नामक ब्राह्मण ने एक स्थानीय राजकुमारी से विवाह करने के बाद की थी।
अंगकोरवाट मंदिर में मेरुपर्वत के बीच भगवान विष्णु के मंदिर को साकार रूप प्रदान किया गया है। अंगकोरवाट मंदिर में पांच शिखर हैं। इनमें से सबसे बड़ा मध्य शिखर 213 फुट ऊंचा है। शेष शिखर 180 फुट ऊंचे हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इन्हीं पांच शिखरों के मध्य हमारी पृथ्वी है। मंदिर एक विशाल चहारदीवारी के भीतर स्थित है। चहारदीवारी के बाहर पानी से भरी खाई है। अंगकोरवाट मंदिर समतल भूमि पर बनाया गया है। समतल भूमि पर महामेरु विचार पर आधारित मंदिर का निर्माण करने के लिए खमेर वास्तुविदों को मनुष्यनिर्मित पर्वत का निर्माण करना था। उन्होंने इसके लिए समतल भूमि को चार स्तरों तक ऊंचा किया। इसके लिए मंदिर के चारों ओर खोदी गई मिट्टी काम आई।
केंद्रीय अथवा पहला क्षेत्र, जिसमें मुख्य मंदिर है, मूलभूमि से 27 मीटर ऊंचा है। यह करने के लिए खमेर वास्तुविदों ने मंदिर निर्माण की योजना और आवश्यकता के अनुसार स्थान स्थान पर भारी मात्रा में मिट्टी डाली। अब अगर वह इस मिट्टी के स्थिर होने का इंतजार करते, तो उन्हें मंदिर का निर्माण शुरू करने के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता। अत : उन्होंने मिट्टी डालने से पहले दूसरे और पहले क्षेत्र की नींव डाल दी। मिट्टी डालने के साथ – साथ नीव भी ऊपर को बढ़ती रही। जब मिट्टी ने निर्धारित ऊंचाई प्राप्त कर ली, तो मिट्टी डालने का कार्य बंद कर दिया गया। इससे नींव बहुत मजबूत हो गई। मंदिर के निर्माण कार्य में अनावश्यक विलंब नहीं हुआ। इससे सदियों तक उपक्षित रहने के बावजूद मंदिर की नींव मजबूत है और वह बुलंदी से खड़ा है।